RSS प्रमुख गोलवलकर: गौ रक्षा को राष्ट्रीय आंदोलन बनाकर हिंदू संस्कृति के गौरव की रक्षा

RSS के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी एम.एस. गोलवलकर ने गौ रक्षा को एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया और हिंदू संस्कृति के गौरव की रक्षा का बीड़ा उठाया। उनके 33 साल के नेतृत्व में RSS ने गौ हत्या के खिलाफ एक शक्तिशाली आवाज बनाई, जो हिंदू एकता और संस्कृति की रक्षा का प्रतीक बनी। यह लेख उनके गौ रक्षा आंदोलन, उनकी रणनीतियों, और इसके हिंदू समाज पर प्रभाव को उजागर करता है, जो हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

गौ रक्षा आंदोलन की शुरुआत

गोलवलकर ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में गौ रक्षा को RSS का प्रमुख लक्ष्य बनाया। 1940 के दशक में, जब भारत आजादी की ओर बढ़ रहा था, गौ हत्या एक संवेदनशील मुद्दा बन गई थी। गोलवलकर ने इसे हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग माना और इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने RSS के स्वयंसेवकों को संगठित किया और गौ रक्षा को हिंदू समाज की पहचान से जोड़ा। यह आंदोलन उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक था, जो बाद में राष्ट्रीय स्तर पर फैला।

रणनीति और संगठन

गोलवलकर ने गौ रक्षा को प्रभावी बनाने के लिए एक सुनियोजित रणनीति अपनाई। उन्होंने देश भर में गौशालाओं की स्थापना को प्रोत्साहित किया, जहाँ गायों की देखभाल और पालन के लिए प्रशिक्षण दिया गया। RSS ने गौ रक्षा समितियों का गठन किया, जो स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाती थीं। उन्होंने स्वयंसेवकों को गौ हत्या के खिलाफ जनजागरण अभियान चलाने का प्रशिक्षण दिया, जिसमें सभाएँ, रैलियाँ, और हस्ताक्षर अभियान शामिल थे। उनकी रणनीति में गौ रक्षा को आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में मजबूत करना था, जो हिंदू समाज को एकजुट करने में सफल रही।

1966 का गौ रक्षा आंदोलन

1966 में गौ रक्षा आंदोलन अपने चरम पर पहुँचा, और गोलवलकर ने इसे राष्ट्रीय मंच पर लाया। उस समय भारत सरकार पर गौ हत्या बंदी का दबाव बढ़ रहा था। गोलवलकर ने RSS के लाखों स्वयंसेवकों को सक्रिय किया, और दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। स्वयंसेवकों ने भगवा ध्वज के साथ मार्च निकाले और गौ माता की रक्षा की मांग की। इस आंदोलन में साधु-संतों और हिंदू संगठनों ने भी भाग लिया, जिससे यह एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया। गोलवलकर ने कहा, “गौ हमारी माता है, और उसकी रक्षा हिंदू संस्कृति का कर्तव्य है।” यह घटना RSS की शक्ति और गोलवलकर के नेतृत्व का प्रमाण थी।

हिंदू संस्कृति के गौरव की रक्षा

गोलवलकर ने गौ रक्षा को हिंदू संस्कृति के गौरव से जोड़ा। उन्होंने गाय को हिंदू जीवनशैली का प्रतीक माना, जो कृषि, अर्थव्यवस्था, और आध्यात्मिकता से जुड़ा है। RSS ने गौ आधारित उत्पादों, जैसे गोबर और गोमूत्र, को बढ़ावा दिया, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मददगार साबित हुए। उन्होंने हिंदू त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में गौ पूजा को प्रोत्साहित किया, जो हिंदू चेतना को मजबूत करता था। यह प्रयास हिंदू समाज को संगठित करने और उसकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सफल रहा।

चुनौतियाँ और प्रतिरोध

गौ रक्षा आंदोलन को लागू करने में गोलवलकर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1948 में गांधी हत्या के बाद RSS पर प्रतिबंध लगा, जिसने गौ रक्षा कार्यों को प्रभावित किया। लेकिन गोलवलकर ने संगठन को भूमिगत रखकर आंदोलन जारी रखा। 1966 के प्रदर्शनों के दौरान पुलिस कार्रवाई और राजनीतिक विरोध भी हुए, लेकिन उनकी दृढ़ता ने आंदोलन को रोके नहीं। उनका कहना था, “हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए हर बलिदान सहर्ष दिया जाएगा।” यह समर्पण RSS की शक्ति को दर्शाता है।

आंदोलन का प्रभाव

गोलवलकर के प्रयासों से गौ रक्षा आंदोलन ने हिंदू समाज में नई जागरूकता पैदा की। 1966 के बाद कई राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा, जो उनके नेतृत्व की सफलता थी। RSS ने गौशालाओं की संख्या बढ़ाई, और गौ आधारित उद्योगों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन किया। यह आंदोलन हिंदू एकता को मजबूत करने के साथ-साथ हिंदू संस्कृति के गौरव को बनाए रखने में महत्वपूर्ण था। उनके कार्यों ने RSS को एक सांस्कृतिक और सामाजिक शक्ति बनाया।

समाज सेवा और एकता

गोलवलकर ने गौ रक्षा के साथ समाज सेवा को जोड़ा। आपदा के समय, जैसे 1967 की बिहार बाढ़, स्वयंसेवकों ने गौ रक्षा के साथ राहत कार्य किए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में गौशालाओं के माध्यम से गरीबों को सहायता दी। उनका कहना था, “गौ सेवा से समाज सेवा जुड़ी है।” यह दृष्टिकोण RSS को समाज का अभिन्न हिस्सा बनाया।

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