नाखून उखड़े, आँखें फोड़ीं, फिर भी न झुके: संभाजी महाराज, जिन्होंने हिंदुस्तान को हिंदू बनाए रखा

नाखून उखड़े, आँखें फोड़ीं, फिर भी न झुके: संभाजी महाराज, जिन्होंने हिंदुस्तान को हिंदू बनाए रखा

भारत की पवित्र धरती पर हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अनगिनत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें छत्रपति संभाजी महाराज का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है, जिन्होंने 39 दिनों तक अमानवीय यातनाएँ सहकर भी अपने धर्म और स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उनका बलिदान मराठा साम्राज्य की नींव को अटल रखने वाला और हिंदू जाति के गौरव का प्रतीक है, जो आज भी हमें प्रेरित करता है।

संभाजी महाराज: एक अडिग योद्धा का उदय

छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र संभाजी का जन्म 14 मई, 1657 को माता सोयराबाई की कोख से हुआ। शिवाजी ने हिंदवी स्वराज की स्थापना कर हिंदुओं में आत्मगौरव का संचार किया था। उनके देहांत के बाद, 3 अप्रैल, 1680 को संभाजी ने हिंदवी साम्राज्य का भार संभाला। उनके सामने चुनौतियाँ अपार थीं—एक ओर औरंगजेब जैसे क्रूर शासक का खतरा, तो दूसरी ओर आंतरिक राजनीतिक षड्यंत्र।

संभाजी अपने पिता की तरह दूरदर्शी राजनेता थे। इसके साथ ही उनकी वीरता और साहस बेजोड़ थे। दस वर्षों तक उन्होंने औरंगजेब की विशाल सेना को छकाया, मराठा साम्राज्य को टूटने से बचाया। कभी मराठा सेना का पलड़ा भारी रहता, तो कभी मुगल सेना हावी होती। लेकिन संभाजी ने कभी हार नहीं मानी। उनकी युद्ध नीति ने औरंगजेब को दक्कन में बेबस कर दिया।

मुगल कैद: क्रूरता की पराकाष्ठा

15 फरवरी, 1689 का वह काला दिन था, जब संगमेश्वर में एक मुखबिर की सूचना पर मुगल सेनापति मुकर्रबखान ने 3,000 सैनिकों के साथ संभाजी और उनके मित्र कवि कलश को घेर लिया। रायगढ़ की ओर भागने का प्रयास विफल हुआ, और संभाजी मुगलों के हत्थे चढ़ गए। औरंगजेब ने इसे हिंदू शक्ति को कुचलने का अवसर माना। संभाजी को चीथड़े पहनाकर, ऊँट पर उल्टा बैठाकर औरंगजेब के सामने लाया गया।

औरंगजेब ने प्रलोभन दिया: “इस्लाम स्वीकार कर लो, तुम्हारा राज्य वापस मिलेगा, कोई कर नहीं लिया जाएगा।” लेकिन संभाजी ने दहाड़कर कहा, “सिंह सियारों की जूठन नहीं खाते। मैं हिंदू हूँ और हिंदू ही मरूँगा।” इस दृढ़ता से क्रोधित औरंगजेब ने यातनाओं का क्रूर सिलसिला शुरू किया।

पहला दिन: नाखून उखाड़े गए, चमड़ी नोंची गई, घावों पर नमक डाला गया।

दूसरा दिन: सभी दाँत तोड़ दिए गए।

तीसरा दिन: उंगलियाँ काट दी गईं।

चौथा दिन: दोनों कान काटे गए।

पाँचवाँ दिन: दहकती लोहे की छड़ से आँखें फोड़ दी गईं।

40 दिनों तक: जीभ उखाड़ी गई ताकि वे ‘हर हर महादेव’ न बोल सकें। गर्म चिमटों से शरीर दागा गया, 200 किलो की जंजीरों में जकड़ा गया।

हर बार उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा गया, पर संभाजी अडिग रहे। उनके मुँह से आह तक नहीं निकली। उनकी दृढ़ता ने औरंगजेब की क्रूरता को और भड़काया।

बलिदान: मराठा प्रतिशोध की ज्वाला

39 दिनों की यातनाओं के बाद, 11 मार्च, 1689 (फागुन कृष्ण अमावस्या) को औरंगजेब ने संभाजी की हत्या का आदेश दिया। अगले दिन गुडी पाड़वा था, और वह चाहता था कि महाराष्ट्र शोक में डूब जाए। बहूकोरेगांव के बाजार में कवि कलश की जीभ काटकर, फिर सिर धड़ से अलग किया गया। इसके बाद संभाजी के हाथ-पैर तोड़े गए, और उनका सिर काट दिया गया।

मुगल सैनिकों ने उनके सिर को भाले पर उठाकर नाचना शुरू किया, फिर उसे कूड़े में फेंक दिया। लेकिन मराठा वीरों ने हार नहीं मानी। खंडोबल्लाल और अन्य वीरों ने वेश बदलकर संभाजी का मस्तक उठाया और यथोचित अंतिम संस्कार किया।

संभाजी की शहादत ने महाराष्ट्र में प्रतिशोध की आग भड़का दी। हर मराठा ने उनकी शहादत का बदला लेने की शपथ ली। इस बलिदान ने मराठों में ऐसी ज्वाला जलाई कि उन्होंने मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी। औरंगजेब को अपनी अंतिम साँस तक मराठों से लड़ना पड़ा, और अंततः मुगल साम्राज्य का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया।

हिंदुस्तान का हिंदू स्वाभिमान

संभाजी महाराज का बलिदान केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी; यह हिंदू धर्म और स्वाभिमान की रक्षा का प्रतीक था। औरंगजेब की मंशा थी कि हिंदुस्तान से हिंदू धर्म मिटा दिया जाए, मराठों को इस्लाम में मिला लिया जाए। लेकिन संभाजी ने मृत्यु चुनी, धर्म नहीं छोड़ा।

ज़रा इंडोनेशिया का उदाहरण देखिए—वहाँ के राजा ने इस्लाम स्वीकार किया, और आज वह मुस्लिम देश है। यदि संभाजी झुक जाते, तो भारत की नियति कुछ और होती। उनके बलिदान ने हिंदुस्तान को हिंदू बनाए रखा। मराठों ने पूरे भारत में मुगलों की कब्र खोद दी, और शिवाजी की हिंदवी स्वराज की धरोहर को अक्षुण्ण रखा।

1680 से 1707 तक का 27 वर्षों का कालखंड हिंदू इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। औरंगजेब के पास 8 लाख सैनिक, 22 प्रांत, और असीमित धन था, फिर भी मराठों ने हिंदवी स्वराज की रक्षा की और मुगल साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया। यह संभाजी की शहादत की प्रेरणा थी, जिसने मराठों को अडिग रखा।

इतिहास की साज़िश और संभाजी का अपमान

दुखद है कि वामपंथी इतिहासकारों और कथित बुद्धिजीवियों ने संभाजी महाराज की वीरता को दबाने की कोशिश की। इतिहास की किताबों में उनका नाम न के बराबर मिलता है। लेकिन सत्य को मिटाया नहीं जा सकता। संभाजी का बलिदान हर उस हिंदू के दिल में जीवित है, जो अपने धर्म, संस्कृति, और मातृभूमि से प्रेम करता है।

संभाजी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और स्वाभिमान के लिए कोई भी यातना सहने की शक्ति हमारे भीतर होनी चाहिए। आज के आधुनिक युग में, जब हम वैश्वीकरण के दौर में जी रहे हैं, उनकी कहानी हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है। उनका बलिदान यह बताता है कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलते हुए कोई कठिनाई हमें झुका नहीं सकती।

वीर संभाजी को नमन

छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान हिंदू समाज के लिए एक अनमोल प्रेरणा है। उनका साहस, दृढ़ता, और स्वाभिमान हमें सिखाता है कि चाहे कितनी विपत्तियाँ आएँ, हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। वीर सं

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