आज 28 मई 2025 है और यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है। आज हम स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर की जन्मजयंती मना रहे हैं। सावरकर, जिन्हें “वीर सावरकर” के नाम से जाना जाता है, एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रप्रेम की मशाल को जलाकर भारत की आत्मा को जगाया।
उनकी विचारधारा, उनके बलिदान, और उनकी वीरता आज भी कांग्रेस और वामपंथी विचारधाराओं के लिए एक चुनौती बने हुए हैं। आइए, इस खास मौके पर सावरकर के जीवन और उनके योगदान की कहानी को जानें, जो हर हिंदुस्तानी के दिल को गर्व से भर देती है।
सावरकर का प्रारंभिक जीवन: राष्ट्रप्रेम की जड़ें
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। उनके पिता दामोदर सावरकर और माता राधाबाई थीं। बचपन से ही सावरकर में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी थी। 1897 में जब प्लेग की महामारी ने उनके माता-पिता को छीन लिया, तब वे मात्र 14 साल के थे। लेकिन इस दुख ने उन्हें कमजोर नहीं, बल्कि और मजबूत बनाया।
सावरकर ने अपनी पढ़ाई पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में शुरू की, जहां वे शिवाजी और लोकमान्य तिलक जैसे नायकों की कहानियों से प्रेरित हुए। 1906 में वे वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन गए, लेकिन वहां उन्होंने “अभिनव भारत” संगठन बनाकर क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और काला पानी की सजा दी। अंडमान की सेलुलर जेल में सावरकर ने अमानवीय यातनाएं सहीं, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनकी कविताएं, जैसे “जयोस्तुते”, आज भी हमें राष्ट्रप्रेम का संदेश देती हैं।
हिंदुत्व की परिभाषा: सावरकर का अनमोल योगदान
सावरकर ने “हिंदुत्व” की ऐसी परिभाषा दी, जो भारत की सांस्कृतिक एकता का आधार बनी। 1923 में अपनी किताब “हिंदुत्व: हू इज ए हिंदू?” में उन्होंने साफ कहा कि हिंदू वह है जो भारत को अपनी मातृभूमि और पवित्र भूमि मानता है। इस परिभाषा में सनातन धर्म के साथ-साथ जैन, बौद्ध, सिख जैसे सभी भारतीय मूल के धर्म शामिल थे।सावरकर का हिंदुत्व धर्म से ज्यादा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक था।
उनका मानना था कि हिंदू समाज की कमजोरी उसकी असंगठितता है। सदियों से हिंदुओं को बांटकर शासक उन्हें गुलाम बनाते रहे। सावरकर ने हिंदुओं को एकजुट करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, “हमें हिंदू राष्ट्र की स्थापना करनी होगी, जहां हर नागरिक को अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व हो।” यह विचारधारा कांग्रेस और वामपंथी नेताओं को हमेशा खटकती रही, क्योंकि वे धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदुत्व को दबाना चाहते थे।
कांग्रेस और वामपंथियों का डर: सावरकर की ताकत
सावरकर की हिंदुत्व और राष्ट्रप्रेम की विचारधारा कांग्रेस और वामपंथियों के लिए हमेशा से एक चुनौती रही है। कांग्रेस ने सावरकर को हमेशा “साम्प्रदायिक” करार देने की कोशिश की, लेकिन सच्चाई यह है कि सावरकर का हिंदुत्व समावेशी था। वे कहते थे, “हिंदुत्व का मतलब किसी का विरोध करना नहीं, बल्कि अपनी पहचान को मजबूत करना है।”
1948 में जब गांधी की हत्या हुई, तब कांग्रेस ने सावरकर को झूठा फंसाने की कोशिश की। उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। फिर भी, कांग्रेस ने सावरकर के खिलाफ दुष्प्रचार जारी रखा। वामपंथी इतिहासकारों ने भी सावरकर को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे उन्हें “माफीवीर” कहकर तंज कसते हैं, क्योंकि सावरकर ने जेल से रिहाई के लिए ब्रिटिश सरकार को याचिका दी थी।
लेकिन सच यह है कि यह याचिका एक रणनीति थी, ताकि वे बाहर आकर क्रांतिकारी गतिविधियों को और तेज कर सकें।
आज भी, 28 मई 2025 को, सावरकर की जन्मजयंती पर उनकी विचारधारा कांग्रेस और वामपंथियों को डराती है। सावरकर का हिंदुत्व आज भारत में एक शक्तिशाली विचारधारा बन चुका है। हिंदू समाज में स्वाभिमान की भावना जागी है, और लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने लगे हैं। कांग्रेस और वामपंथी, जो लंबे समय तक भारत की सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर करने की कोशिश करते रहे, सावरकर की इस विरासत से बेचैन हैं।
सावरकर का राष्ट्रप्रेम: एक प्रेरणा
सावरकर का राष्ट्रप्रेम उनकी हर सांस में बसा था। उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि देश की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का भी काम किया। अंडमान की जेल में रहते हुए उन्होंने दीवारों पर कविताएं लिखीं, जो आज भी हमें प्रेरित करती हैं। उनकी किताब “1857 का स्वातंत्र्य समर” ने भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को सही मायने में इतिहास में जगह दी।
सावरकर का मानना था कि भारत तभी सशक्त होगा, जब उसकी सांस्कृतिक जड़ें मजबूत होंगी। उन्होंने हिंदुओं को संगठित करने के लिए हिंदू महासभा को मजबूत किया और सामाजिक सुधारों की वकालत की। वे छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ थे। उनका सपना था एक ऐसा भारत, जहां हर नागरिक अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करे और देश के लिए जीए।
सावरकर की अमर विरासत
आज 28 मई 2025 को, सावरकर की जन्मजयंती पर हमें उनके बलिदान और विचारधारा को याद करना चाहिए। सावरकर एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रप्रेम की मशाल जलाकर भारत को एक नई दिशा दी। उनकी विचारधारा आज भी कांग्रेस और वामपंथियों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि यह भारत की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करती है। सावरकर का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा राष्ट्रप्रेम वही है, जो अपनी संस्कृति और पहचान पर गर्व करे।
सावरकर की यह गाथा हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी जन्मजयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे और भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाएंगे। वीर सावरकर अमर रहें!