वामपंथी और हिंदू-विरोधी ताकतों का दोहरा चरित्र: शर्मिष्ठा पनोली पर हमले ने खोल दी सेक्युलरिज़्म की पोल

पुणे की 22 साल की लॉ स्टूडेंट और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी ने देश में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। कोलकाता पुलिस ने उन्हें 30 मई 2025 को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया और 31 मई को अलीपुर कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

यह मामला 14 मई को उनके एक इंस्टाग्राम वीडियो से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर पर बॉलीवुड सेलेब्रिटीज की चुप्पी की आलोचना की थी। लेकिन वीडियो में कथित तौर पर इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ करने का आरोप लगा, जिसके बाद साइबर लिंचिंग और कानूनी कार्रवाई शुरू हुई। इस मामले ने वामपंथी, लिबरल, और हिंदू-विरोधी ताकतों के कथित दोहरे मापदंडों को उजागर कर दिया है।

वीडियो से शुरू हुआ विवाद

शर्मिष्ठा पनोली पुणे लॉ यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं और इंस्टाग्राम पर 93,000 से ज्यादा फॉलोअर्स के साथ एक जानी-मानी इन्फ्लुएंसर थीं। 14 मई 2025 को उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया, जो एक पाकिस्तानी यूजर के सवाल का जवाब था। यह सवाल ऑपरेशन सिंदूर को लेकर था, जो 7 मई को शुरू हुआ एक सैन्य अभियान था। यह अभियान 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले (जिसमें 26 लोग मारे गए थे) के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले करने के लिए चलाया गया था।

शर्मिष्ठा ने अपने वीडियो में बॉलीवुड सेलेब्रिटीज से सवाल किया कि वे इस मामले पर चुप क्यों हैं। लेकिन विवाद तब भड़क उठा, जब उन्होंने कथित तौर पर “72 हूर” और पैगंबर मुहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं। यह टिप्पणी मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद आहत करने वाली थी। वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया। कई यूजर्स ने इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला बताया। शर्मिष्ठा को ट्रोल किया गया, और उनके खिलाफ बलात्कार और जान से मारने की धमकियाँ दी गईं। हैशटैग #ArrestSharmistha ट्रेंड करने लगा।

माफी के बाद भी साइबर लिंचिंग

वीडियो के वायरल होने के बाद शर्मिष्ठा ने इसे डिलीट कर दिया और 15 मई को एक बिना शर्त माफी जारी की। उन्होंने लिखा, “मैं बिना शर्त माफी माँगती हूँ। जो कुछ भी मैंने कहा, वह मेरी निजी भावनाएँ थीं, और मेरा इरादा किसी को ठेस पहुँचाने का नहीं था। मैं भविष्य में सावधानी बरतूँगी।” लेकिन उनकी माफी का कोई असर नहीं हुआ। सोशल मीडिया पर साइबर लिंचिंग जारी रही। कई लोगों ने इसे इस्लामिक कट्टरपंथ से जोड़ा और कहा कि माफी के बावजूद शर्मिष्ठा को निशाना बनाया जा रहा है।

कोलकाता पुलिस की कार्रवाई

शर्मिष्ठा की माफी के बावजूद कोलकाता के गार्डन रीच पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई। FIR में भारतीय न्याय संहिता की धारा 196(1)(a) (धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने की मंशा से किए गए कार्य), धारा 352 (शांति भंग करने की मंशा से अपमान), और धारा 353(1)(c) (सार्वजनिक उपद्रव भड़काने वाले बयान) के तहत मामला दर्ज किया गया।

पुलिस ने शर्मिष्ठा और उनके परिवार को कई बार कानूनी नोटिस भेजने की कोशिश की, लेकिन पुलिस का कहना है कि वे हर बार गायब पाए गए। इसके बाद कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। 30 मई 2025 को कोलकाता पुलिस ने उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया। 31 मई को अलीपुर कोर्ट में पेशी के बाद उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

कोर्ट में क्या हुआ?

शर्मिष्ठा के वकील मोहम्मद समीमुद्दीन ने जमानत याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि शर्मिष्ठा ने अपनी गलती स्वीकार कर माफी माँग ली है। लेकिन कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। कोलकाता पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी को कानूनी बताते हुए कहा कि सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया। पुलिस ने एक बयान में कहा, “सोशल मीडिया पर कुछ लोग इसे गैरकानूनी गिरफ्तारी बता रहे हैं, जो गलत और भ्रामक है।”

बंगाल पुलिस की भूमिका पर सवाल

इस मामले में बंगाल पुलिस की कार्रवाई पर कई सवाल उठ रहे हैं। बंगाल पुलिस पहले भी मुर्शिदाबाद दंगों (2023) में अपनी संदिग्ध भूमिका के लिए आलोचना झेल चुकी है। कई लोगों का कहना है कि पुलिस ने इस मामले में जल्दबाजी दिखाई और शर्मिष्ठा को माफी के बाद भी गिरफ्तार कर लिया। कुछ का यह भी आरोप है कि यह कार्रवाई वोटबैंक की राजनीति का हिस्सा है।

राजनेताओं और सेलेब्रिटीज की प्रतिक्रिया

शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी के बाद कई बड़े नेताओं और हस्तियों ने अपनी राय दी। बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने उनकी रिहाई की माँग की। उन्होंने कहा, “शर्मिष्ठा ने कुछ अप्रिय शब्दों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने माफी माँग ली। उन्हें और परेशान करने की जरूरत नहीं।” आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने कहा, “पश्चिम बंगाल पुलिस को निष्पक्षता से जांच करनी चाहिए। जब टीएमसी के सांसद सनातन धर्म का मजाक उड़ाते हैं, तब कार्रवाई क्यों नहीं होती?” बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे “वोटबैंक की राजनीति” करार दिया।

वहीं, समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने सख्त कानून की माँग की। उन्होंने कहा, “ऐसे लोगों के खिलाफ 10 साल की सजा का कानून बनना चाहिए।” कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने इसे पुलिस शक्ति का दुरुपयोग बताया।

वामपंथी और हिंदू-विरोधी ताकतों पर सवाल

यह मामला वामपंथी, लिबरल, और हिंदू-विरोधी ताकतों के कथित दोहरे मापदंडों को उजागर करता है। कई लोगों का कहना है कि अगर कोई हिंदू धर्म के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करता है, तो वामपंथी और लिबरल इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताते हैं। लेकिन जब बात इस्लाम की आती है, तो वही लोग सख्त कार्रवाई की माँग करते हैं। शर्मिष्ठा की माफी के बाद भी साइबर लिंचिंग और गिरफ्तारी ने सेक्युलरिज़्म की आड़ में छुपे इस पाखंड को बेनकाब कर दिया है।

सोशल मीडिया पर बहस

शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर दो धड़े बन गए हैं। कुछ लोग #ReleaseSharmistha और #IStandWithSharmistha के साथ उनका समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। वहीं, कुछ लोग उनकी गिरफ्तारी का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वालों को सजा मिलनी चाहिए।

आगे क्या?

शर्मिष्ठा के वकील ने ऊपरी अदालत में अपील करने की बात कही है। दूसरी ओर, कोलकाता पुलिस ने उनके फोन और लैपटॉप को जब्त कर लिया है, ताकि और जाँच की जा सके। यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है, और आने वाले दिनों में इस पर और बहस होने की संभावना है।

एक बड़ा सवाल

शर्मिष्ठा पनोली का यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है। क्या सेक्युलरिज़्म की आड़ में हिंदू-विरोधी ताकतें अपने दोहरे मापदंड छुपा रही हैं? क्या अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह है कि कोई भी कुछ भी कह सकता है? यह मामला डिजिटल युग में जिम्मेदारी और आजादी के बीच संतुलन की जरूरत को रेखांकित करता है।

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