कैद में भी न झुके शिवाजी: आगरा से निकलकर हिंदू स्वराज की चिंगारी, औरंगज़ेब को दिया कड़ा प्रतिकार!

छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक के रूप में दर्ज है, जिन्होंने अपनी वीरता, बुद्धिमानी, और देशभक्ति से न केवल हिंदू स्वराज की स्थापना की, बल्कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब जैसे अत्याचारी शासक को भी कड़ा प्रतिकार दिया।

1666 में औरंगज़ेब ने उन्हें आगरा में कैद कर लिया था, लेकिन शिवाजी ने अपनी चतुराई से खुद को आज़ाद कराकर हिंदू स्वराज की चिंगारी को और भड़का दिया। यह कहानी हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है। आइए, इस ऐतिहासिक घटना को विस्तार से जानते हैं, जिसमें शिवाजी ने औरंगज़ेब को साबित कर दिया कि सच्चा योद्धा कभी हार नहीं मानता।

औरंगज़ेब की चाल और आगरा का न्योता

1665 में शिवाजी ने मराठा साम्राज्य को मज़बूत करने के लिए मुग़लों से संधि की, जिसे पुरंदर की संधि कहा जाता है। इस संधि के तहत उन्हें अपने 23 किलों को मुग़लों को सौंपना पड़ा और अपने बेटे संभाजी को मुग़ल दरबार में भेजना पड़ा। औरंगज़ेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया। उसकी मंशा थी कि वह शिवाजी की बढ़ती ताकत को कुचल दे। औरंगज़ेब जानता था कि शिवाजी हिंदू स्वराज का सपना देख रहे हैं, और यह उसके शासन के लिए खतरा था।

मई 1666 में शिवाजी अपने बेटे संभाजी और कुछ विश्वासपात्र सरदारों के साथ आगरा पहुँचे। 12 मई को औरंगज़ेब का 50वाँ जन्मदिन था, और दरबार में भव्य समारोह आयोजित किया गया। लेकिन औरंगज़ेब ने शिवाजी का अपमान करने की साजिश रची। दरबार में उन्हें पीछे की पंक्ति में खड़ा कर दिया गया, जो उनके रुतबे के खिलाफ था। शिवाजी ने इस अपमान को बर्दाश्त नहीं किया और दरबार से बाहर चले गए। औरंगज़ेब ने इसे मौका समझा और उन्हें कैद करने का आदेश दे दिया।

कैद में भी अडिग रहे शिवाजी

शिवाजी को आगरा में जयसिंह के बेटे रामसिंह की निगरानी में नज़रबंद कर दिया गया। उनकी हर हरकत पर नज़र रखी जा रही थी। औरंगज़ेब ने सोचा कि वह शिवाजी को डरा लेगा और उनकी हिम्मत तोड़ देगा। लेकिन शिवाजी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने धैर्य और बुद्धिमानी का परिचय दिया। कई महीनों तक वे नज़रबंद रहे, लेकिन इस दौरान उन्होंने भागने की एक चतुर योजना बनाई।

शिवाजी ने बीमारी का बहाना बनाया। उन्होंने खबर फैलाई कि वे गंभीर रूप से बीमार हैं। इस दौरान वे मिठाइयों की टोकरियाँ मंदिरों में दान के लिए भेजने लगे। ये टोकरियाँ उनके विश्वासपात्र सैनिक ले जाते थे। औरंगज़ेब के सैनिकों को इस पर कोई शक नहीं हुआ। 19 अगस्त 1666 को शिवाजी ने अपनी योजना को अंजाम दिया। वे और उनके बेटे संभाजी उन टोकरियों में छुप गए और आगरा से भाग निकले। जब तक औरंगज़ेब को इसकी खबर हुई, तब तक शिवाजी बहुत दूर निकल चुके थे।

हिंदू स्वराज की चिंगारी को दी हवा

आगरा से भागने के बाद शिवाजी मथुरा, प्रयागराज, और बनारस होते हुए मराठा क्षेत्र में पहुँचे। उन्होंने फिर से अपनी सेना को संगठित किया और हिंदू स्वराज की स्थापना के लिए औरंगज़ेब के खिलाफ जंग छेड़ दी। 1667 में उन्होंने उन 23 किलों को वापस जीत लिया, जो पुरंदर की संधि में मुग़लों को सौंपे गए थे। इसके बाद उन्होंने 35 सालों में 300 से ज्यादा किलों पर कब्ज़ा किया और मराठा साम्राज्य को दक्षिण भारत तक फैलाया।

शिवाजी की इस चतुराई और वीरता ने औरंगज़ेब को हिला कर रख दिया। औरंगज़ेब ने कई बार अपनी सेना भेजी, लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध तकनीक ने मुग़ल सेना को परेशान कर दिया। औरंगज़ेब, जो खुद को विश्व का बादशाह कहता था, एक मराठा योद्धा के सामने बेबस हो गया। शिवाजी ने न केवल हिंदू स्वराज की रक्षा की, बल्कि हिंदुओं के आत्मसम्मान को भी जगाया।

औरंगज़ेब का अत्याचार और शिवाजी की रणनीति

औरंगज़ेब एक अत्याचारी शासक था। उसने हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया, मंदिरों को तोड़ डाला, और धर्म परिवर्तन के लिए लोगों को मजबूर किया। उसकी हिंदू-विरोधी नीतियाँ पूरे देश में अत्याचार का प्रतीक बन गईं। लेकिन शिवाजी ने उसके अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने अपनी सेना को पहाड़ी इलाकों में प्रशिक्षित किया और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई। उनकी सेना तेज़ी से हमला करती और फिर गायब हो जाती, जिससे मुग़ल सेना को भारी नुकसान होता।

शिवाजी ने कभी भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया। उनकी सेना में मुस्लिम सैनिक भी थे, और उन्होंने अपने शासन में सभी धर्मों का सम्मान किया। लेकिन औरंगज़ेब की हिंदू-विरोधी नीतियों के खिलाफ वे हमेशा डटे रहे। 1674 में उन्होंने रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्रपति की उपाधि ली। यह हिंदू स्वराज की स्थापना का एक ऐतिहासिक क्षण था।

शिवाजी की विरासत और आज का संदेश

शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ में हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जिंदा है। उन्होंने हमें सिखाया कि साहस, बुद्धि, और एकता से किसी भी अत्याचार को हराया जा सकता है। औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली शासक को उन्होंने बार-बार हराकर यह दिखाया कि सच्चाई और धर्म की रक्षा करने वाला कभी हार नहीं मानता।

आज, जब हम भारत की आज़ादी और एकता की बात करते हैं, तो शिवाजी महाराज की कहानी हमें प्रेरित करती है। उनकी वीरता और चतुराई की मिसालें हमें यह सिखाती हैं कि मुश्किल हालातों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। शिवाजी ने औरंगज़ेब को कड़ा प्रतिकार देकर यह साबित किया कि सच्चा योद्धा वही है, जो अपने सिद्धांतों के लिए लड़ता है।

एक प्रेरणा, एक गर्व

शिवाजी महाराज की यह कहानी न केवल इतिहास का एक हिस्सा है, बल्कि हर भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है। उनकी आगरा से भागने की घटना हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत और बुद्धि से रास्ता निकाला जा सकता है। औरंगज़ेब जैसे अत्याचारी शासक को उन्होंने जो जवाब दिया, वह आज भी हर भारतीय को प्रेरणा देता है।

आज हम शिवाजी महाराज को याद करते हैं और उनके बलिदान को सलाम करते हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अपने धर्म, अपनी संस्कृति, और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। छत्रपति शिवाजी महाराज की जय!

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