1947 का नवंबर, जब कश्मीर की वादियां दुश्मन की साजिशों से दहल रही थीं, एक सच्चा शूरवीर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए खड़ा हुआ। मेजर सोमनाथ शर्मा, भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता, ने एक हाथ में प्लास्टर और दूसरे में मशीन गन थामकर 700 दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाया कि उनकी रूह कांप गई। गोली लगने के बावजूद, उन्होंने अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी और कश्मीर को पाकिस्तानी घुसपैठियों के चंगुल से बचाया। उनकी यह दास्तां हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है, जो साहस, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल पेश करती है।
कश्मीर पर संकट: 1947 का युद्ध
1947 में, भारत की आजादी के तुरंत बाद, पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जे की साजिश रची। जनजातीय कबायलियों के वेश में पाकिस्तानी सैनिकों ने श्रीनगर पर हमला बोला। भारतीय सेना को तुरंत कार्रवाई के लिए बुलाया गया। 4 कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा को अपनी डेल्टा कंपनी के साथ बडगाम हवाई अड्डे की रक्षा का जिम्मा सौंपा गया। यह हवाई अड्डा श्रीनगर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था, और इसे बचाना भारत की रणनीति का आधार था।
3 नवंबर 1947 को, मेजर शर्मा अपनी टुकड़ी के साथ बडगाम पहुंचे। उनका दायां हाथ एक हादसे में घायल था, जिसके कारण प्लास्टर बंधा हुआ था। डाक्टरों ने उन्हें आराम की सलाह दी थी, लेकिन सोमनाथ ने कहा, “मेरे देश को मेरी जरूरत है, मैं पीछे नहीं हटूंगा।” उनकी यह जिद और देशभक्ति उनकी वीरता की नींव थी।
बडगाम का रण: 700 दुश्मनों के सामने अडिग
3 नवंबर की दोपहर, बडगाम में अचानक 700 से अधिक पाकिस्तानी घुसपैठियों ने हमला बोल दिया। मेजर शर्मा के पास केवल 100 सैनिक थे, और उनके पास भारी हथियारों की कमी थी। दुश्मन की संख्या और ताकत कई गुना ज्यादा थी, लेकिन सोमनाथ का हौसला अटल था। उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित करते हुए कहा, “दुश्मन चाहे कितना भी ताकतवर हो, हम अपनी माटी का एक इंच भी नहीं छोड़ेंगे!”
सोमनाथ ने एक हाथ में प्लास्टर के बावजूद मशीन गन संभाली और मोर्चे पर डट गए। उन्होंने अपनी टुकड़ी को रणनीतिक रूप से तैनात किया और दुश्मन पर ताबड़तोड़ हमले शुरू किए। उनकी मशीन गन की गोलियां दुश्मन के लिए यमदूत बन गईं। कई घंटों तक चली इस भीषण लड़ाई में, सोमनाथ ने दर्जनों दुश्मनों को ढेर किया। उनकी टुकड़ी ने 300 से अधिक घुसपैठियों को मार गिराया, जिससे पाकिस्तानी हमलावरों में खलबली मच गई।
गोली लगने के बावजूद अंतिम सांस तक लड़ाई
लड़ाई के दौरान, मेजर शर्मा को कई गोलियां लगीं। उनका शरीर खून से लथपथ था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। एक मौके पर, जब दुश्मन उनकी स्थिति की ओर बढ़ रहा था, सोमनाथ ने अपने सैनिकों को बचाने के लिए खुद मोर्चा संभाला। उन्होंने मशीन गन से गोलियां बरसाईं और दुश्मन को पीछे धकेला। उनकी यह वीरता देखकर सैनिकों का जोश दोगुना हो गया।
अंत में, एक गोली उनके सीने में लगी, लेकिन तब तक उन्होंने बडगाम हवाई अड्डे को सुरक्षित कर लिया था। अपनी अंतिम सांस लेते हुए, उन्होंने अपने सैनिकों को रेडियो पर संदेश दिया, “आखिरी गोली तक लड़ो, हिंदुस्तान का सिर ऊंचा रखो!” 3 नवंबर 1947 को, 29 वर्ष की आयु में, मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गए, लेकिन उनकी शहादत ने श्रीनगर को बचाया और कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाए रखा।
पाकिस्तान में खौफ: सोमनाथ का नाम
मेजर सोमनाथ शर्मा की वीरता ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के दिल में ऐसा खौफ बिठाया कि वे उनकी टुकड़ी से डरने लगे। एक घायल सैनिक, जिसका हाथ प्लास्टर में बंधा था, ने 700 दुश्मनों को नाकों चने चबवा दिए। उनकी रणनीति और साहस ने पाकिस्तानी हमलावरों की योजना को ध्वस्त कर दिया। बडगाम की हार ने पाकिस्तान को कश्मीर में अपनी साजिशों को और आगे बढ़ाने से रोक दिया। सोमनाथ का नाम दुश्मन के लिए एक दहशत बन गया, और उनकी शहादत ने सिद्ध किया कि भारत का सैनिक अपनी मातृभूमि के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
परमवीर चक्र: भारत का पहला सम्मान
मेजर सोमनाथ शर्मा की अदम्य वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र, भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया। वे इस सम्मान के पहले प्राप्तकर्ता थे, जिसने भारतीय सेना की शौर्य परंपरा को नया आयाम दिया। उनके बलिदान ने कश्मीर युद्ध में भारतीय सेना को प्रेरित किया और सिद्ध किया कि साहस और देशभक्ति किसी भी हथियार से ज्यादा ताकतवर है।
उनके परिवार की सैन्य परंपरा भी गौरवशाली थी। उनके पिता, मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा, और भाई, लेफ्टिनेंट जनरल सुरिंदर नाथ शर्मा, ने भी सेना में सेवा की। सोमनाथ की शहादत ने उनके परिवार और देश को गर्व से भर दिया।
विरासत और प्रेरणा
मेजर सोमनाथ शर्मा की दास्तां आज भी भारतीय सेना के हर सैनिक के लिए प्रेरणा है। उनकी वीरता की कहानी स्कूलों, सैन्य अकादमियों और देशभक्तों के बीच गर्व से सुनाई जाती है। कश्मीर के बडगाम में उनका स्मारक उनकी शहादत की गवाही देता है। उनकी गाथा राइट विंग विचारकों के लिए एक प्रतीक है, जो भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक गौरव को विश्व मंच पर देखना चाहते हैं।
मेजर सोमनाथ शर्मा, एक हाथ में प्लास्टर और दूसरे में मशीन गन थामे, 700 दुश्मनों के सामने डटकर लड़े। उनकी वीरता ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को कश्मीर की धरती पर धूल चटाई और भारत का सिर ऊंचा किया। पहले परमवीर चक्र विजेता की यह दास्तां साहस, बलिदान और देशभक्ति की अनुपम मिसाल है। शहीद होकर भी, सोमनाथ शर्मा हर भारतीय के दिल में जिंदा हैं। उनकी शहादत हमें सिखाती है कि सच्चा सैनिक वह है, जो अपनी मातृभूमि के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़े। मेजर सोमनाथ शर्मा को कोटि-कोटि नमन!