तंजावुर के ब्राह्मण मराठा साम्राज्य के इतिहास में एक अनमोल धरोहर हैं। 1675 में व्यंकोजी भोंसले ने तंजावुर में मराठा शासन की नींव रखी, और इन ब्राह्मणों ने ज्ञान, शौर्य, और संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये विद्वान न केवल धार्मिक गुरु थे, बल्कि प्रशासनिक सलाहकार और साहित्यिक संरक्षक भी बने। व्यंकोजी के बाद शासकों जैसे तुलजाजी और सरफोजी द्वितीय के शासन में इन ब्राह्मणों ने राजाओं का साथ दिया। उनकी बुद्धि ने मराठा राजाओं को शक्ति दी, और उनकी भक्ति ने हिंदू संस्कृति को जीवित रखा। तंजावुर, जो कला और साहित्य का केंद्र था, इन ब्राह्मणों और शासकों की साझा मेहनत से फला-फूला। उनकी कहानी मराठा साम्राज्य की समृद्धि और हिंदू गौरव का प्रतीक है।
विदेशी आक्रमणों के खिलाफ प्रतिरोध
17वीं और 18वीं सदी में दक्षिण भारत पर यूरोपीय शक्तियों और स्थानीय विरोधियों का खतरा बढ़ा। तंजावुर के मराठा शासक व्यंकोजी और उनके उत्तराधिकारी तुलजाजी को फ्रांसीसी और ब्रिटिश प्रभाव से निपटना पड़ा। इस कठिन समय में तंजावुर के ब्राह्मणों ने राजाओं का साथ दिया। वे न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते थे, बल्कि युद्ध रणनीतियों में भी सलाहकार बने।
तुलजाजी के शासन (1763-1787) में इन ब्राह्मणों ने मराठा सेना को प्रेरित किया और हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए प्रयास किया। उनके ज्ञान ने राजाओं को साहस दिया, जिससे वे विदेशी आक्रमणों का मुकाबला कर सके। यह प्रतिरोध हिंदू अस्मिता और मराठा शौर्य का संगम था।
रणनीति और साहित्य का योगदान
तंजावुर के ब्राह्मणों की रणनीति और बौद्धिकता ने मराठा साम्राज्य को मजबूती दी। वे मराठा शासकों के दरबार में सलाहकार के रूप में कार्य करते थे, जहाँ उन्होंने कर प्रणाली और न्याय व्यवस्था को सुधारा। साथ ही, इन ब्राह्मणों ने साहित्य को समृद्ध किया, जिसमें संस्कृत और तमिल ग्रंथों का संरक्षण शामिल था। राजा सरफोजी द्वितीय (1798-1832) के शासन में इन विद्वानों ने पुस्तकालयों का विकास किया और तंजावुर मराठा पेंटिंग को प्रोत्साहन दिया। सरफोजी ने ब्राह्मण विद्वानों के साथ मिलकर शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिसने तंजावुर को ज्ञान का केंद्र बनाया। उनकी रणनीति में शिक्षा और कला को बढ़ावा देना था, जो मराठा संस्कृति को नई ऊंचाइयों पर ले गया। यह ज्ञान और शौर्य का अनोखा मेल था।
वीरता का बलिदान
18वीं सदी के अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तंजावुर पर कब्जे की कोशिश की। इस संघर्ष में तंजावुर के ब्राह्मणों ने मराठा शासकों, खासकर सरफोजी द्वितीय के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा। कई ब्राह्मणों ने अपनी जान गंवाई, जब ब्रिटिश सेना ने मंदिरों और विद्या केंद्रों पर हमले किए।
सरफोजी के शासन में ब्राह्मणों ने सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की कोशिश की, लेकिन 1799 में तंजावुर का ब्रिटिश नियंत्रण में चला जाना उनके बलिदान को कम नहीं करता। ये ब्राह्मणों की वीरता ने मराठा प्रतिरोध को प्रेरित किया। उनकी कुर्बानी हिंदू संस्कृति और मराठा गौरव का प्रतीक बनी।
सांस्कृतिक गौरव
तंजावुर के ब्राह्मणों की विरासत आज भी जीवित है। उनके साहित्यिक योगदान ने तंजावुर को कला और ज्ञान का केंद्र बनाया, जहाँ आज भी संग्रहालय और मंदिर उनकी याद दिलाते हैं। व्यंकोजी और तुलजाजी के समय से शुरू हुई यह परंपरा सरफोजी द्वितीय के साथ चरम पर पहुँची, जिन्होंने ब्राह्मणों के साथ मिलकर तंजावुर मराठा पेंटिंग और संगीत को विश्व विख्यात बनाया। उनकी प्रशासनिक कुशलता ने मराठा शासन को स्थिरता दी, जो बाद के इतिहासकारों द्वारा सराहा गया।
हिंदू संस्कृति का आधार रखने वाले ये ब्राह्मण मराठा साम्राज्य की शक्ति के पीछे का मस्तिष्क थे। उनकी याद में तंजावुर के मंदिर आज भी उनकी भक्ति और ज्ञान को संजोए हुए हैं। हम इन संरक्षकों को याद करते हैं, जिन्होंने शौर्य और साहित्य से इतिहास रचा। उनकी गाथा हमें प्रेरणा देती है कि ज्ञान और बलिदान से संस्कृति को जीवित रखा जा सकता है।