माँ भारती की गोद में जन्मे वीर शिवा काशीद का जीवन मराठा गौरव की मिसाल बना। एक साधारण नाई से योद्धा बने शिवा ने अपने हृदय में हिंदू शौर्य और शिवाजी महाराज के प्रति निष्ठा को संजोया।
1660 के दौर में, जब बीजापुरी सेनाएँ मराठा क्षेत्र पर छाया बन रही थीं, शिवा ने अपने प्राणों को दांव पर लगाने का बीड़ा उठाया। उनकी यह शुरुआती प्रेरणा बाद में एक ऐसे बलिदान की नींव बनी, जो 300 मराठा वीरों के साथ 1 लाख की शत्रु फौज को ठहराने की गाथा रचने वाली थी।
रणनीति का बलिदान: शिवाजी की रक्षा का मार्ग
1660 के मध्य में, जब अली आदिलशाह ने अपने जनरल सिद्धि जौहर को शिवाजी के खिलाफ भेजा और पन्हाला किले की घेराबंदी हुई, शिवा काशीद ने एक अद्भुत रणनीति अपनाई। आधी रात को शिवाजी किले से निकलने की योजना बनाई, और शिवा ने स्वयं राजा की भाँति वेश धारण कर शत्रु को भ्रमित करने का फैसला लिया।
उनकी शक्ल शिवाजी से मिलती थी, और उन्होंने जानबूझकर खुद को पकड़वाया ताकि मराठा सम्राट सुरक्षित विशालगढ़ की ओर बढ़ सकें। यह बलिदान मराठा इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय बना, जो शिवाजी की रक्षा के लिए उनके अटूट समर्पण को दर्शाता है।
वीरता का जोहर: 300 मराठों का शत्रु पर प्रहार
जब 300 मराठा योद्धाओं ने सिद्धि जौहर की विशाल सेना का सामना किया, शिवा काशीद का बलिदान उनके हौसले को और मजबूत कर गया। नेताजी पालकर के प्रयासों के बावजूद घेराबंदी तोड़ना मुश्किल था, लेकिन बाजी प्रभु देशपांडे, शंभू सिंह जाधव, और फूलजी जैसे वीरों ने 300 सैनिकों के साथ मोर्चा संभाला।
तूफानी पूर्णिमा की रात, उन्होंने शत्रु की 1 लाख फौज को रोका, समय खरीदा, और शिवाजी को सुरक्षित मार्ग प्रदान किया। घोड़खिंड के दर्रे में 18 घंटे तक चली यह लड़ाई मराठा शौर्य का अनुपम उदाहरण बनी, जहाँ 300 ने लाखों को ठहराया और इतिहास रचा।
विजय का मार्ग: मराठा एकता का प्रकाश
शिवा काशीद के बलिदान और 300 मराठों की वीरता ने शिवाजी को नई शक्ति दी। बीजापुरी सेना के पीछे हटने के बाद, शिवाजी ने विशालगढ़ की ओर बढ़ते हुए सूर्यपुरा सुर्वे और जसवंतराव दलवी को पराजित किया।
नेताजी पालकर की सेना ने बीजापुर की ओर प्रहार किया, और मराठों ने पन्हाला पर फिर कब्जा जमा लिया। यह मराठा एकता और शौर्य का प्रकाश था, जो शत्रु को परास्त करने और मराठा साम्राज्य को मजबूत करने का आधार बना। शिवा का त्याग और 300 वीरों का बलिदान हिंदू गौरव की अमर गाथा बन गया।
शौर्य का सम्मान
वीर शिवा काशीद, शिवाजी महाराज की जान बचाने के लिए बलिदान देने वाला योद्धा, और 300 मराठों की वीरता, जो 1 लाख की फौज को रोका, मराठा इतिहास का गौरवशाली पर्व है।
उनकी कुर्बानी ने शिवाजी को विजय का मार्ग दिखाया और मराठा शौर्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। आइए, उनके बलिदान को सलाम करें और मराठा गौरव को संजोएँ, ताकि उनकी वीरता की ज्योति हमेशा प्रज्ज्वलित रहे और माँ भारती का मान बना रहे।