नेपाल, भारत का पड़ोसी देश, हाल के दिनों में चीन के साथ कथित गुप्त शर्तों के जाल में फंसता दिखाई दे रहा है, जिससे भारत के लिए गंभीर सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं। खास तौर पर लिपुलेख सीमा विवाद और सोशल मीडिया पर बढ़ती तनातनी ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है।
लिपुलेख विवाद ने भारत-नेपाल संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। हाल ही में भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे से व्यापार फिर शुरू करने का फैसला लिया, जिसे नेपाल ने अपने क्षेत्र का हिस्सा बताते हुए विरोध जताया। नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इस मुद्दे पर बात की, लेकिन चीन ने इसे भारत-नेपाल का द्विपक्षीय मामला बताकर दूरी बना ली। सूत्रों के अनुसार, नेपाल ने चीन से समर्थन की उम्मीद की थी, लेकिन बीजिंग ने स्पष्ट कर दिया कि वह इस विवाद में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
इस बीच, सोशल मीडिया पर नेपाल और भारत के बीच तनाव और बढ़ गया है। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर दोनों देशों के यूजर्स के बीच लिपुलेख और कालापानी को लेकर तीखी बहस छिड़ी है। नेपाली यूजर्स ने भारत पर अपने क्षेत्र पर कब्जे का आरोप लगाया, जबकि भारतीय यूजर्स ने ऐतिहासिक दावों और सुगौली संधि का हवाला देकर पलटवार किया। यह डिजिटल बवाल भारत-नेपाल संबंधों को और नाजुक बना रहा है।
भारत के लिए खतरे कई हैं। लिपुलेख पर चीन की बढ़ती मौजूदगी और नेपाल के साथ उसका नजदीकी रिश्ता भारत की उत्तरी सीमा पर जोखिम पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन नेपाल को कर्ज और निवेश के जरिए अपने प्रभाव में ले रहा है, जो भारत के लिए रणनीतिक खतरा है। साथ ही, सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों से जनता में गलतफहमी बढ़ रही है, जो दोनों देशों के बीच विश्वास को कमजोर कर सकती है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत ने नेपाल के साथ कूटनीतिक वार्ता शुरू करने की कोशिश की है, लेकिन ओली सरकार का रुख सख्त बना हुआ है। दूसरी ओर, चीन की तटस्थता ने नेपाल को अलग-थलग महसूस कराया है, जिससे स्थिति और उलझ सकती है। भारत को अब अपनी सीमा सुरक्षा और नेपाल के साथ संवाद को मजबूत करने की जरूरत है, ताकि इस जटिल मसले का हल निकाला जा सके।