1966 का गोरक्षा आंदोलन भारतीय इतिहास का एक ऐसा आंदोलन है जिसे गौ-भक्तों और साधु-संतों के अद्वितीय समर्पण के लिए याद किया जाता है। यह आंदोलन 7 नवंबर 1966 को हुआ था, जिसमें देशभर के साधु-संत और गौ-रक्षकों ने संसद भवन के बाहर प्रदर्शन किया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था गाय की रक्षा और इसके वध पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग।
आंदोलन का कारण
भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, और यह भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1966 में देश के कई हिस्सों में गोवंश की हत्या और मांस व्यापार को रोकने के लिए साधु-संतों ने सरकार से कानून बनाने की मांग की। हालांकि, सरकार ने इस पर तत्काल कदम नहीं उठाया, जिससे लोगों में नाराजगी बढ़ी। इसके चलते, गौ-रक्षकों और साधु-संतों ने एक बड़े आंदोलन का आयोजन किया, जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
संसद के बाहर प्रदर्शन
7 नवंबर 1966 को लाखों साधु-संत और गौ-भक्त संसद भवन के बाहर इकट्ठा हुए। उन्होंने गाय के वध पर प्रतिबंध लगाने की मांग की और शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने का प्रयास किया। यह एक ऐतिहासिक दृश्य था, जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग और समाज के अलग-अलग वर्ग के लोग गाय की रक्षा के लिए एकजुट हुए थे।
हिंसा का माहौल
हालांकि यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ था, लेकिन भीड़ इतनी अधिक हो गई कि स्थिति को संभालना मुश्किल हो गया। सरकार ने स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस को बुलाया। प्रदर्शन को नियंत्रित करने के प्रयास में, पुलिस ने भीड़ पर फायरिंग की। इस गोलीबारी में कई साधु-संतों और गौ-भक्तों की जान चली गई और कई घायल हो गए। इस घटना के बाद संसद भवन और इसके आसपास का क्षेत्र गौ-भक्तों के खून से लहूलुहान हो गया।
आंदोलन का प्रभाव
इस आंदोलन ने पूरे देश में हलचल मचा दी। गौ-भक्तों की शहादत ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया, जिससे बाद में गाय की रक्षा के लिए कई राज्यों में कानून बनाए गए। हालांकि, यह आंदोलन उस समय अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हो सका, लेकिन इसने भारतीय समाज में गहरी छाप छोड़ी। इस आंदोलन के बाद गाय के प्रति लोगों का प्रेम और सम्मान और बढ़ गया, और यह मुद्दा राजनीतिक और धार्मिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण बन गया।
समाज पर प्रभाव
1966 का गोरक्षा आंदोलन यह दर्शाता है कि भारतीय समाज में गाय का कितना महत्व है। इस घटना के बाद से गाय की रक्षा के लिए कई संस्थाएं और संगठनों का गठन हुआ। इस आंदोलन ने सरकार और समाज को यह संदेश दिया कि गाय की रक्षा के प्रति भारतीय समाज कितना संवेदनशील है।
1966 का गोरक्षा आंदोलन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो गौ-रक्षा और साधु-संतों की समर्पण भावना को दर्शाता है। इस आंदोलन के माध्यम से गाय की रक्षा और हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं को समझने का एक अवसर मिला। यह घटना भारतीय संस्कृति और परंपरा की गहरी जड़ों को दर्शाती है और हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के प्रति सजग रहने की प्रेरणा देती है।