योगी आदित्यनाथ: संन्यासी से मुख्यमंत्री तक का सफर — एक भगवा नेता की प्रेरक कहानी

योगी आदित्यनाथ: संन्यासी से मुख्यमंत्री तक का सफर — एक भगवा नेता की प्रेरक कहानी

आधुनिक भारतीय राजनीति में ऐसे बहुत कम नेता हैं जो आस्था और प्रशासन का संगम उतनी सहजता से दिखाते हों जितना योगी आदित्यनाथ जी दिखाते हैं।

उत्तराखंड की शांत हिमालयी घाटियों से लेकर लखनऊ के सत्ता के गलियारों तक — योगी आदित्यनाथ की यात्रा अनुशासन, निष्ठा और रूपांतरण की एक अद्भुत गाथा है। एक साधारण परिवार में जन्मा बालक, जिसने बचपन में ही आध्यात्मिकता का स्पर्श पाया, आगे चलकर उसी आह्वान के बल पर सन्यास का मार्ग चुना और फिर भारतीय राजनीति में एक ऐसी पहचान बनाई, जहाँ धर्म, सेवा और शासन एक सूत्र में बंध गए। यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस विचार की है — जहाँ आध्यात्मिक साधना और जनसेवा एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पौंछुर गांव (जिला पौड़ी गढ़वाल, तब उत्तर प्रदेश, अब उत्तराखंड) में हुआ था। उनका असली नाम अजय सिंह बिष्ट है। वे एक साधारण राजपूत परिवार से थे — पिता आनंद सिंह बिष्ट वन विभाग में रेंजर थे और माता सावित्री देवी गृहिणी थीं जिन्होंने अपने सात बच्चों का पालन-पोषण किया।

हिमालय की सादगीपूर्ण जीवनशैली में पले-बढ़े अजय ने बचपन से ही अनुशासन, शारीरिक दृढ़ता और आध्यात्मिकता के गुण सीखे।उन्होंने स्थानीय विद्यालयों में शिक्षा पाई और फिर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में बी.एससी. (1994) की डिग्री हासिल की।

हालांकि शिक्षा ने उन्हें प्रशासन या अध्यापन के रास्ते की ओर संकेत दिया, लेकिन नियति ने कुछ और तय कर रखा था। उनका मन आध्यात्मिकता और समाज सेवा की ओर झुक चुका था — और यही झुकाव उन्हें सन्यास मार्ग की ओर ले गया।

आध्यात्मिक आह्वान और योगी आदित्यनाथ का जन्म

21 वर्ष की आयु में अजय सिंह बिष्ट ने घर छोड़ दिया और गोरखपुर के गोरखनाथ मठ में प्रवेश किया — जो भारत की सबसे पुरानी नाथ परंपरा का प्रमुख केंद्र है। वहाँ वे महंत अवैद्यनाथ के शिष्य बने — जो न केवल एक पूज्य संत थे बल्कि राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे।

गुरु अवैद्यनाथ के सान्निध्य में अजय ने कठोर आध्यात्मिक साधना की और नाथ संप्रदाय में दीक्षित होकर नया नाम पाया — योगी आदित्यनाथ। यहाँ उनका दृष्टिकोण आकार लेने लगा — धर्म और समाज सेवा का संगम।

1990 के दशक के मध्य तक वे अपने गुरु के साथ सार्वजनिक अभियानों में जाने लगे। उनकी तेजस्वी वाणी, अनुशासित जीवनशैली और हिंदुत्व आधारित सामाजिक सक्रियता ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया।

राजनीति में प्रवेश — गोरखपुर से संसद तक

1998 में, जब महंत अवैद्यनाथ ने चुनावी राजनीति से संन्यास लिया, तो उन्होंने अपने शिष्य योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का आशीर्वाद दिया। सिर्फ 26 वर्ष की उम्र में उन्होंने शानदार जीत दर्ज की — और भारत के सबसे युवा सांसदों में से एक बन गए।

अगले दो दशकों तक (1998–2017) उन्होंने गोरखपुर का प्रतिनिधित्व लगातार पाँच बार किया। वे निडर और मुखर सांसद के रूप में प्रसिद्ध हुए — गाय संरक्षण, धार्मिक रूपांतरण और क्षेत्रीय विकास जैसे मुद्दों पर बेबाक आवाज़ उठाते रहे।

2002 में उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी (HYV) की स्थापना की — एक युवा संगठन जो सामाजिक सेवा, सांस्कृतिक जागरूकता और हिंदू एकता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। यह संगठन जितना समर्थक आधार मजबूत करता गया, उतना ही विवादों में भी रहा — पर योगी आदित्यनाथ का नाम घर-घर तक पहुँच गया।

संघर्ष से शिखर तक: राजनीतिक उदय की यात्रा

योगी आदित्यनाथ का उभार किसी संयोग से नहीं हुआ — यह कई निर्णायक घटनाओं का परिणाम था, जिन्होंने उनकी विचारधारा, अनुशासन और नेतृत्व को आकार दिया।

1. प्रारंभिक सन्यासी जीवन और गुरु-शिष्य परंपरा (1993–1998)

1993 में जब अजय सिंह बिष्ट ने गृह त्याग किया और महंत अवैद्यनाथ के मार्गदर्शन में गोरखनाथ मठ में प्रवेश किया, वहीं से उनकी आध्यात्मिक और राजनीतिक यात्रा की नींव रखी गई। गुरु के सान्निध्य में उन्होंने न केवल धर्म, बल्कि संगठन, अनुशासन और समाज में धर्म की भूमिका को समझा।

राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े अनुभवों ने उनके भीतर हिंदू राष्ट्रवाद की भावना को दृढ़ किया। जब उनके गुरु ने राजनीति छोड़ी, तब योगी आदित्यनाथ ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई।

2. हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना (2002)

2002 में, पूर्वी उत्तर प्रदेश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच, योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना की। इस संगठन ने “लव जिहाद” और धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर आंदोलन किए और शीघ्र ही यह पूर्वांचल की एक प्रमुख ताकत बन गया।

उनकी गिरफ्तारी (2007) जैसे विवाद भी हुए, पर इससे उनकी लोकप्रियता और दृढ़ता दोनों बढ़ी। वे ‘हिंदू पहचान के रक्षक’ के रूप में देखे जाने लगे।

3. मऊ दंगे और मुख्तार अंसारी से टकराव (2005)

2005 के मऊ दंगे योगी आदित्यनाथ के जीवन का निर्णायक मोड़ बने। दंगे में स्थानीय विधायक मुख्तार अंसारी की भूमिका पर आरोप लगे। जब योगी आदित्यनाथ पीड़ितों से मिलने मऊ पहुँचना चाहते थे तो सरकार ने रोक दिया — और यहीं से दोनों के बीच आजन्म संघर्ष शुरू हुआ।

यह टकराव आगे चलकर ‘माफिया बनाम साधु’ की राजनीतिक कथा बन गया — जिसने योगी आदित्यनाथ को “कानून और व्यवस्था के संरक्षक” के रूप में स्थापित किया।

4. आज़मगढ़ हमला (2008)

सितंबर 2008 में योगी आदित्यनाथ की काफिले पर जानलेवा हमला हुआ — जिसे मुख्तार अंसारी के गिरोह से जोड़ा गया।  गोलियां चलीं, गाड़ियाँ जलाई गईं, कई घायल हुए — पर योगी आदित्यनाथ बाल-बाल बचे क्योंकि उन्होंने आखिरी क्षण में अपनी गाड़ी बदल ली थी।

यह घटना उनके जीवन का मोड़ बनी — “कानून का शासन” उनके प्रशासनिक दर्शन का केंद्र बन गया। यही अनुभव आगे चलकर उनकी मशहूर ‘बुलडोज़र नीति’ का आधार बना।

5. गोरखनाथ मठ की विरासत और राजनीतिक उत्कर्ष (2014–2017)

2014 में महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मठ के महंत बने। उसी समय भाजपा का राष्ट्रीय उभार हुआ, और योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक भूमिका तेजी से बढ़ी।

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना गया — भले ही उन्होंने कभी मंत्री पद नहीं संभाला था। यह उनके नेतृत्व और जनता के बीच प्रभाव का प्रमाण था।

2008 का आज़मगढ़ हमला: कैसे योगी आदित्यनाथ बच गए मुख्तार अंसारी गिरोह की सुनियोजित घात से

सितंबर 2008 की एक दोपहर, शांत आज़मगढ़ की हवा अचानक गोलियों की आवाज़ से गूंज उठी। जो रैली राजनीतिक संवाद के लिए रखी गई थी, वह कुछ ही पलों में जानलेवा घात में बदल गई।

निशाना थे — योगी आदित्यनाथ, उस समय के उग्र और लोकप्रिय गोरखपुर सांसद, जिनकी बढ़ती हिंदुत्ववादी लोकप्रियता ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे कुख्यात बाहुबली नेताओं में से एक, मुख्तार अंसारी, के प्रभाव को चुनौती देना शुरू कर दिया था।

यह घटना, जो अब ‘आज़मगढ़ काफिला हमला’ के नाम से जानी जाती है, केवल एक हत्या का प्रयास नहीं थी — यह अपराध, राजनीति और विचारधारा के टकराव का वह बिंदु था, जिसने योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य को आकार दिया।

अपराध और राजनीति का टकराव

योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अंसारी की दुश्मनी अचानक नहीं शुरू हुई थी। इसकी नींव 2005 के मऊ दंगों में पड़ी — पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों में से एक।

मऊ सदर से पाँच बार विधायक, मुख्तार अंसारी, जिनका नाम ताकत और भय दोनों का पर्याय बन चुका था, पर आरोप लगा कि उन्होंने दंगों को भड़काया। चश्मदीदों के मुताबिक़, उन्हें खुले जीप में AK-47 लहराते देखा गया था, जब शहर आग में जल रहा था।

उधर, युवा संन्यासी और सांसद योगी आदित्यनाथ दंगा-पीड़ितों से मिलने मऊ पहुँचना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उन्हें दोहरीघाट पर रोक दिया, कहते हुए कि उनकी मौजूदगी से स्थिति बिगड़ सकती है।

वहीं से शुरू हुई एक कड़वी प्रतिद्वंद्विता — एक तरफ भगवा वस्त्रों में सन्यासी, दूसरी तरफ़ अपराध और राजनीति के गठजोड़ का प्रतीक बाहुबली।

हमले से पहले: वह रैली जिसने चिंगारी भड़काई

2008 तक यह टकराव अपने चरम पर था। योगी आदित्यनाथ ने 7 सितंबर 2008 को आज़मगढ़ के DAV कॉलेज ग्राउंड में एक ‘आतंकवाद विरोधी रैली’ की घोषणा की — उनके संगठन हिंदू युवा वाहिनी (HYV) के बैनर तले।

इस रैली का उद्देश्य था: एक तरफ़ बढ़ते आतंकवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और दूसरी तरफ़ सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाना। लेकिन मुख्तार अंसारी के खेमे के लिए यह रैली उनके प्रभाव-क्षेत्र में सीधी चुनौती थी।

तत्कालीन एडीजी (कानून व्यवस्था) बृजलाल के मुताबिक़, खुफिया इनपुट मिले थे कि कुछ गड़बड़ हो सकती है — लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह इतनी हिंसक होगी।

हमले का दिन: गोलियों की बरसात

7 सितंबर की सुबह, योगी आदित्यनाथ का लगभग 40 वाहनों का काफिला गोरखपुर से आज़मगढ़ के लिए रवाना हुआ। साथ में कार्यकर्ता, समर्थक और सुरक्षा बल भी थे।

जैसे ही काफिला आज़मगढ़ की सीमा में पहुँचा — हमला शुरू हो गया। हमलावर, जिन्हें मुख्तार अंसारी के गिरोह से जुड़ा बताया गया,
ने पत्थरबाज़ी की, फिर पेट्रोल बम फेंके और आखिर में गोलियों की बौछार सीधा योगी आदित्यनाथ की गाड़ी को निशाना बनाते हुए शुरू कर दी।

इसके साथ काफिले में भगदड़ मच गई। सुरक्षा बलों और HYV कार्यकर्ताओं ने जवाबी फायरिंग की। इस मुठभेड़ में एक व्यक्ति की मौत हुई और छह लोग घायल हुए, जिनमें कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल थे।

लखनऊ में मौजूद बृजलाल, जो उस समय सेवानिवृत्त आईपीएस और पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) उत्तर प्रदेश पुलिस थे, तुरंत हेलीकॉप्टर से आज़मगढ़ पहुँचे। हाथ में AK-47 लेकर उन्होंने पुलिस कार्रवाई का नेतृत्व किया। उन्होंने बाद में बताया ‘पहले पत्थर चले, फिर पेट्रोल बम और फिर गोलियाँ — यह हमला पूरी तरह योजनाबद्ध था।

भाग्य का मोड़: एक गाड़ी ने बचाई जान

उस दिन की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि योगी आदित्यनाथ हमले से कुछ मिनट पहले अपनी गाड़ी बदल चुके थे।

उन्होंने अपनी लाल SUV छोड़कर दूसरी कार में बैठना तय किया —और हमलावरों को इसकी भनक नहीं लगी।

उन्होंने उसी लाल SUV पर हमला किया, जो गोलियों से छलनी हो गई और बाद में जलकर राख हो गई।

बृजलाल, जो उस समय सेवानिवृत्त आईपीएस और पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) उत्तर प्रदेश पुलिस थे, ने बाद में कहा:

“अगर उन्होंने गाड़ी न बदली होती, तो शायद आज कहानी कुछ और होती।”

यह संयोग — “11वें घंटे की गाड़ी बदलना” —उनकी जान बचा गया और उनकी छवि को एक “जीवित बचे योद्धा” के रूप में और मज़बूत कर गया।

परिणाम: एक राजनीतिक मोड़

हमले के बाद पूरे प्रदेश में पुलिस ने बड़ी कार्रवाई शुरू की। मुख्तार अंसारी के कई गुर्गे गिरफ्तार हुए और उन पर हत्या के प्रयास, दंगा और साजिश के आरोप लगे।

हालाँकि अंसारी पर सीधे दोष सिद्ध नहीं हुआ, लेकिन इस घटना ने उनके अपराधी साम्राज्य पर और सवाल खड़े किए। दूसरी तरफ़, योगी आदित्यनाथ के लिए यह घटना एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई। उन्होंने प्रण लिया कि राजनीति से अपराध का सफ़ाया करेंगे। यह वही दृढ़ता थी जिसने आगे चलकर उनके “कठोर मुख्यमंत्री” की पहचान बनाई।

2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने संगठित अपराध पर युद्ध छेड़ दिया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, 15,000 से अधिक पुलिस एनकाउंटर, 250 से ज़्यादा अपराधी ढेर और सैकड़ों करोड़ की अवैध संपत्ति ज़ब्त की गई — जिनमें मुख्तार अंसारी के परिवार से जुड़ी संपत्तियाँ भी शामिल थीं। 2024 में जेल में अंसारी की हार्ट अटैक से मौत के साथ यह कहानी मानो एक युग का अंत बन गई।

हमले की विरासत: विरोध से प्रतीक तक

2008 का आज़मगढ़ हमला सिर्फ़ हिंसा की कहानी नहीं थी — यह वह पल था जिसने योगी आदित्यनाथ को एक “क्षेत्रीय नेता” से “राष्ट्रीय प्रतीक” बना दिया।

उनका बच निकलना उनके समर्थकों के लिए ईश्वरीय संरक्षण का प्रमाण बन गया, जबकि उनके विरोधियों के लिए यह एक नए सख़्त नेता का जन्म था। वह दिन साबित कर गया कि राजनीति में कुछ लड़ाइयाँ सिर्फ़ विचारों से नहीं, बल्कि जीवन-मृत्यु के संकल्प से जीती जाती हैं।

“योगी आदित्यनाथ उस दिन गोलियों से नहीं, भाग्य से भी लड़े —और बाहर निकले एक साधक से सैनिक बनकर।”

उत्तर प्रदेश का ‘एनकाउंटर राज’: जब कानून बन गया योगी आदित्यनाथ का मिशन

2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो उन्होंने एक वादा किया था — “उत्तर प्रदेश में अब कोई अपराधी खुला नहीं घूमेगा।” आज आठ साल बाद, वह वादा आँकड़ों और नीतियों में दिखाई देता है।

अभियान का पैमाना

‘द हिंदू’ की 14 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार — 2017 से अब तक 15,726 एनकाउंटर हुए हैं।

इनमें:

  • 256 बड़े अपराधी मारे गए
  • 31,960 गिरफ्तार हुए
  • 10,000 से अधिक लोग (पुलिस और अपराधी दोनों) घायल हुए।

इसके साथ ही गैंगस्टर एक्ट और NSA के तहत सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ जब्त की गईं — जिसे अब लोग “बुलडोज़र न्याय” कहते हैं।

सरकार का दावा: डर से भरोसे तक

राज्य सरकार का कहना है कि “इन कार्रवाइयों ने जनता का कानून पर विश्वास लौटाया है।” कई अपराधियों ने आत्मसमर्पण किया या राज्य छोड़ दिया।

सरकार का तर्क है कि सख़्त कानून व्यवस्था के साथ-साथ निवेश और विकास भी बढ़ा है।  2023 के UP Global Investors Summit में ₹40 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए — जिसे प्रशासन “सुरक्षित यूपी” का परिणाम मानता है।

विवाद और आलोचना

मानवाधिकार संगठनों जैसे Amnesty International और Human Rights Watch ने कई एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं —
कहा गया कि इनमें कुछ “फर्ज़ी मुठभेड़ें” भी हो सकती हैं। विपक्ष ने इसे “राज्य प्रायोजित न्याय” बताया। हालांकि सरकार का कहना है कि हर एनकाउंटर की न्यायिक जाँच अनिवार्य रूप से होती है।

कुछ चर्चित मामले

  • विकास दुबे (2020): कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद मुठभेड़ में मारा गया।
  • अतीक अहमद (2023): हिरासत में गोलीबारी में मारा गया।
  • मुख्तार अंसारी (2024): जेल में दिल का दौरा — अपराधी साम्राज्य का अंत।

संघर्ष से प्रणाली तक

आज का उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में एक नई शासन-शैली का प्रतीक बन गया है — जहाँ अनुशासन, भय, और विश्वास साथ चलते हैं।

समर्थकों के लिए यह कानून की वापसी है, विरोधियों के लिए कठोर शासन का प्रतीक। पर दोनों इस पर सहमत हैं कि अब उत्तर प्रदेश पहले जैसा नहीं रहा। “योगी आदित्यनाथ के यूपी में कानून बात नहीं करता — लागू करता है।”

मुख्यमंत्री योगी: शासन, विकास और अनुशासन

19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उनका प्रशासन तीन स्तंभों पर आधारित रहा —
कानून व्यवस्था, विकास और जनकल्याण।

  1. कानून व्यवस्था:
    उन्होंने अपराध के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेंस नीति’ अपनाई — हजारों पुलिस एनकाउंटर, माफिया संपत्ति जब्ती, और बुलडोज़र अभियान चलाए। समर्थकों के लिए वे ‘सख्त शासक’ हैं, आलोचकों के लिए “कठोर प्रवृत्ति के नेता”।
  2. विकास:
    उन्होंने UP Global Investors Summit 2023 के जरिए ₹40 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव हासिल किए। राज्य में एक्सप्रेसवे, उद्योग गलियारे और पर्यटन परियोजनाएं शुरू कीं।
  3. कल्याण:
    महिला सुरक्षा कार्यक्रम, मुफ्त बस यात्रा, गरीबों के लिए आवास और शिक्षा जैसी योजनाएं चलाईं। साथ ही, शासन में डिजिटल ट्रांसपेरेंसी और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दिया।

2022 में पुनः चुने जाने के साथ वे 37 साल बाद लगातार दो कार्यकाल पूरे करने वाले पहले यूपी सीएम बने।

नेतृत्व दर्शन और व्यक्तित्व

योगी आदित्यनाथ का जीवन आज भी मठ की सादगी में रचा-बसा है। वे आज भी गोरखनाथ मंदिर परिसर में रहते हैं, दिन की शुरुआत ध्यान और पूजा से करते हैं और मानते हैं कि “राष्ट्र धर्म ही सर्वोच्च कर्तव्य” है।

उनके समर्थक उन्हें “निर्णायक और राष्ट्रवादी नेता” मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें “ध्रुवीकरण की राजनीति का चेहरा” कहते हैं। लेकिन दोनों ही मानते हैं — वे भारत की समकालीन राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं।

विरासत और निरंतर यात्रा

आश्रम से लेकर विधानसभा तक, योगी आदित्यनाथ की कहानी भारत के बदलते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिबिंब है — जहाँ धर्म, शासन और पहचान एक साथ चलते हैं।

उनके अनुयायियों के लिए वे अनुशासन, राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भर भारत के प्रतीक हैं; विरोधियों के लिए, वे धर्म और राजनीति के मिश्रण की चुनौती।

फिर भी, हर कोई यह मानता है — हिमालय के एक गणित स्नातक से दो-टर्म के मुख्यमंत्री तक की उनकी यात्रा दृढ़ता और संकल्प की अद्भुत मिसाल है।

जैसा उनके एक सहयोगी ने कहा था —

“योगी आदित्यनाथ के लिए भगवा वस्त्र संन्यास का प्रतीक नहीं, बल्कि कर्तव्य की घोषणा है।”

और शायद यही उन्हें सबसे अलग बनाता है — एक ऐसा संन्यासी जिसने दुनिया को त्यागा नहीं, बल्कि उसे बदलने का संकल्प लिया।

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