अटूट श्रद्धा: युगों-युगों से नंदी की निश्चल पहरेदारी
‘युगों से मैं यहीं खड़ा हूँ—अचल, निश्चल।’ ‘सदियों से मैं यहाँ बैठा हूँ, बिना पलक झपकाए। मेरी दृष्टि उसी स्थान पर टिकी है जहाँ मेरे प्रभु रहा करते थे। मैं नंदी हूँ—महादेव का अनंत प्रहरी, काशी का मौन साक्षी। साम्राज्य उठे और मिट गए, गंगा का स्वर बदल गया, पर मेरी भक्ति नहीं बदली। मुझे […]
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