मिथक और इतिहास से परे: चाणक्य—भारत के पहले और आख़िरी यथार्थवादी
उन्होंने एक वंश को गिराया, एक राज्य की रचना की, एक विजेता को गढ़ा और फिर इतिहास के अँधेरे में गुम होने से इंकार कर दिया। दो हज़ार साल बाद भी भारत चाणक्य को सिर्फ़ स्मृति के रूप में नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक की तरह याद करता है। रणनीति और स्पष्ट सोच के इस दौर में एक प्राचीन दार्शनिक देश का सबसे आधुनिक सलाहकार बना हुआ है।
आज के दौर में जब बदलते गठबंधन, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और वैश्विक सत्ता की खींचतान तेज़ हो चुकी है, यह आश्चर्यजनक है कि आधुनिक भारत के लिए सबसे साफ़ मार्गदर्शन 2300 साल पहले लिखा जा चुका था। कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य और विष्णुगुप्त भी कहा जाता है, मौर्य साम्राज्य के सूत्रधार थे। वह आज सिर्फ़ ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि हर उस समय जीवित हो उठते हैं जब भारत शासन, कूटनीति या राष्ट्रीय सुरक्षा पर सोचता है।
जब दुनिया भर की सरकारें आर्थिक अनिश्चितता, जासूसी ख़तरों, कमज़ोर सीमाओं और कल्याण बनाम कर जैसे सवालों से जूझ रही हैं, तब अर्थशास्त्र किसी प्राचीन ग्रंथ से ज़्यादा एक आधुनिक नीति दस्तावेज़ जैसा लगता है। 1905 में इसकी खोज और 1915 में श्यामशास्त्री द्वारा अंग्रेज़ी अनुवाद ने सिर्फ़ एक ग्रंथ को नहीं, बल्कि भारत को उसके सबसे सशक्त राजनीतिक विचारक से दोबारा परिचित कराया।
कौटिल्य की सबसे बड़ी ताक़त यह थी कि वह राज्य को जैसा है वैसा देखते थे, न कि जैसा नैतिक आदर्शवादी उसे देखना चाहते थे। उनके लिए कूटनीति हितों पर आधारित थी, कर व्यवस्था स्थिरता का औज़ार थी, गुप्तचर तंत्र अनिवार्य था और आर्थिक समृद्धि ही राजनीतिक शक्ति की नींव थी।
उनका सप्तांग सिद्धांत—राज्य के सात स्तंभ—आज भी प्रशासन की उत्कृष्ट रूपरेखा माना जाता है। उनका मंडल सिद्धांत—शत्रु और मित्रों के घेरे—आज की दुनिया में भी उतना ही सच है, जहाँ देश सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों साथ करते हैं। आंतरिक सुरक्षा, भ्रष्टाचार-निरोध और सक्षम नौकरशाही पर उनका ज़ोर आज के भारत के लिए भी उतना ही प्रासंगिक है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह कि कर व्यवस्था पर उनके विचार—प्रगतिशील, व्यावहारिक और जनकल्याण आधारित—आधुनिक वित्तीय सोच से हज़ार साल पहले मौजूद थे।
शासन की कठोर यथार्थवादी कला
चाणक्य पर बात करते हुए अर्थशास्त्र के विवादास्पद पक्षों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जासूसी, गुप्त अभियान, मनोवैज्ञानिक रणनीति और ज़रूरत पड़ने पर हत्या तक—सब कुछ राष्ट्र की सुरक्षा के लिए विस्तार से लिखा गया है। कोई उन्हें निर्दयी कहता है, कोई उन्हें यथार्थवादी।
लेकिन कौटिल्य ने कभी क्रूरता को अपने-आप में लक्ष्य नहीं माना। उनका कठोर यथार्थवाद इस विश्वास से जुड़ा था कि कमज़ोर राज्य जनता को पीड़ा देता है और राजा को स्थिरता, क़ानून और समृद्धि के लिए जो ज़रूरी हो वह करना चाहिए। “मत्स्य न्याय”—जहाँ बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है—उनके लिए अव्यवस्था का प्रतीक था। यही चाणक्य का द्वंद्व है—नैतिक लक्ष्य, अमैतिक साधनों से।
आज के भारत में कौटिल्य क्यों ज़रूरी हैं
आज जब भारत अपनी वैश्विक भूमिका बढ़ा रहा है—व्यापार मार्गों से लेकर भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा तक—तो नीति-निर्माताओं के सामने वही सवाल हैं जो मौर्य काल में थे। राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक खुलेपन में संतुलन कैसे बने, अनिश्चित दौर में गठबंधन कैसे साधे जाएँ, आंतरिक स्थिरता के साथ विकास कैसे बढ़े, और उभरती शक्ति घेराबंदी से कैसे बचे—इन सबका जवाब आज भी चाणक्य की सोच में झलकता है।
भारत की कूटनीति, वैश्विक संतुलन, आत्मनिर्भरता पर ज़ोर—सब कुछ कौटिल्य के दृष्टिकोण से मेल खाता है। कर सुधार से लेकर बाज़ार नियमन तक, अर्थशास्त्र के सिद्धांत आज की नीतियों में साफ़ दिखते हैं—भावना से पहले स्थिरता, विचारधारा से पहले स्पष्टता।
अलौकिक रणनीतिक विरासत
कौटिल्य ने सिर्फ़ चंद्रगुप्त को सम्राट नहीं बनाया, बल्कि शासन की उस विद्या की नींव रखी जिसे दुनिया सदियों बाद समझ पाई। मैकियावेली को राजनीतिक यथार्थवाद का जनक कहा जाता है, लेकिन कौटिल्य उनसे 1800 साल पहले और कहीं अधिक गहराई के साथ यह सब लिख चुके थे।
आज की टूटी हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत के सबसे पुराने राजनीतिक गुरु की यह सीख और भी तीखी लगती है—राज्य अच्छे इरादों से नहीं, अच्छी रणनीति से टिकते हैं।
आज जब भारत एक बड़ी आर्थिक और वैश्विक शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है, तब कौटिल्य की ओर लौटना कोई अकादमिक अभ्यास नहीं, बल्कि रणनीतिक ज़रूरत है। उनका यह वाक्य आज भी उतना ही सटीक है—“राजा अकेले सफल नहीं हो सकता; एक पहिया रथ को नहीं चला सकता।” शासन, कूटनीति, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था—इन सभी पहियों में आज भी भारत को चाणक्य की बुद्धि दिशा दिखाती है।
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों से 2300 साल पहले चाणक्य ने शासन की ऐसी स्पष्ट, कठोर और व्यावहारिक तस्वीर खींची जो आज भी नीति-निर्माताओं को चुनौती देती है। अर्थशास्त्र शक्ति, प्रशासन, युद्ध, न्याय, अर्थव्यवस्था और कानून—सबका यथार्थवादी नक़्शा है। यह आदर्शवाद नहीं, व्यवस्था का निर्विवाद विज्ञान है।
पुस्तक 1 — अनुशासन: आदर्श शासक की रचना
कौटिल्य की सबसे पहली सीख है—राज्य उतना ही अनुशासित होता है, जितना उसका शासक। राजा को काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, घमंड और ईर्ष्या—इन छह शत्रुओं पर विजय पानी होती है। मंत्रियों की नियुक्ति परीक्षा, नैतिकता और निष्ठा के आधार पर होती है। राजा का दिन शासन, सलाह, जनसंपर्क, सुरक्षा और अध्ययन में बँटा होता है। संन्यासी, व्यापारी और गृहस्थ के वेश में फैला गुप्तचर तंत्र राजा को हर बात से अवगत रखता है। निष्कर्ष साफ़ है—राजा का आत्म-संयम ही राज्य की व्यवस्था की जड़ है।
पुस्तक 2 — प्रशासन: राज्य की आर्थिक रीढ़
कौटिल्य ने दुनिया की सबसे शुरुआती आधुनिक नौकरशाही की संरचना खड़ी की।
मुख्य विचार
