1965 और 1971 की जंग के वीर योद्धा की पीड़ा: देश के लिए दिया बलिदान, अब जीने के लिए दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर

1965 और 1971 की जंग के वीर योद्धा की पीड़ा: देश के लिए दिया बलिदान, अब जीने के लिए दो वक्त की रोटी के लिए मजबूर

यह तस्वीर हाल ही में सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से चर्चा का विषय बनी है। इसमें एक पूर्व सैनिक नजर आ रहा है, जिसने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लिया था। अब वह एक दुर्घटना के बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है। यह तस्वीर उनके संघर्ष की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जो यह बताती है कि अपने देश के लिए समर्पित जीवन बिताने के बावजूद, वृद्धावस्था में कई सैनिक आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। इस तस्वीर ने कई लोगों को भावुक कर दिया है और इसने देश में सैनिकों के समर्थन तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाल के वर्षों में, इस तरह की समस्याओं का समाधान करने के लिए युद्ध सम्मान योजना 2024 जैसी योजनाएँ लाई गई हैं। इस योजना का उद्देश्य युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों को आर्थिक सहायता देना है। इसके तहत पात्र सैनिकों को ₹15 लाख की एकमुश्त राशि और ₹30,000 की मासिक पेंशन प्रदान की जाती है। यह लाभ उन सैनिकों और उनके परिवारों के लिए है, जिन्होंने 1965 और 1971 के युद्धों में अपनी सेवाएँ दीं, ताकि उन्हें वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा मिल सके​।

पूर्व सैनिकों की वर्तमान स्थिति

गौरलतब है कि भारत में हर साल लगभग 60,000 से 70,000 सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं, जिनमें से अधिकांश की उम्र 40 वर्ष से कम होती है। अपनी युवावस्था में देश की रक्षा के लिए कठोर परिस्थितियों में सेवा देने वाले ये सैनिक सेवा के बाद अक्सर आर्थिक तंगी का सामना करते हैं। इसके पीछे एक मुख्य कारण है कि उनकी पेंशन और अन्य सुविधाएं उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में पर्याप्त नहीं होतीं​

वन रैंक, वन पेंशन (OROP) और सरकारी प्रयास

सरकार ने पूर्व सैनिकों की सहायता के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) जैसी योजनाएं लागू की हैं, ताकि उन्हें समान रैंक और सेवा अवधि के आधार पर एक समान पेंशन मिले। इसके साथ ही, SPARSH जैसी योजनाएं भी शुरू की गई हैं, जिनका उद्देश्य डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से पेंशन वितरण को आसान और पारदर्शी बनाना है। ‘प्रोजेक्ट नमण’ के अंतर्गत CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) खोले जा रहे हैं, जिससे पेंशन सेवा प्राप्त करने में आसानी हो​।

समाज की भूमिका और चिंताएँ

हालांकि सरकार और सेना के कई प्रयास हैं, लेकिन इस तस्वीर में दिख रही स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कहीं न कहीं समाज भी अपनी भूमिका निभाने में असफल हो रहा है। पूर्व सैनिकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाएँ ही नहीं, बल्कि समाज को भी सहयोग और संवेदना का हाथ बढ़ाना होगा।

देश के लिए अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा समर्पित करने के बाद, किसी सैनिक को वृद्धावस्था में आर्थिक संघर्ष करते देखना दुखद है। इस स्थिति से बचने के लिए हमें न केवल सरकारी स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी जिम्मेदारी लेनी होगी। जब तक हम सैनिकों की कठिनाइयों को समझकर उन्हें उचित सहायता और सम्मान प्रदान नहीं करते, तब तक उनकी यह कहानी हमारे समाज के लिए एक कड़वी सच्चाई बनी रहेगी।

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