हेमू विक्रमादित्य: कई देशों की सेना से भी बड़ी थी इस हिन्दू राजा की फौज, अकेले मुगलों को हराकर किया था दिल्ली पर कब्जा

हेमू विक्रमादित्य: कई देशों की सेना से भी बड़ी थी इस हिन्दू राजा की फौज, अकेले मुगलों को हराकर किया था दिल्ली पर कब्जा

हेमू विक्रमादित्य: जब भारत के महान और साहसी राजाओं का नाम लिया जाएगा, तो उसमें हेमू विक्रमादित्य का नाम अवश्य शामिल होगा। 16वीं सदी में, जब मुस्लिम शासक अपनी पकड़ भारत में मजबूत कर रहे थे, हेमू विक्रमादित्य एक ऐसे योद्धा और नेता थे जिन्होंने हिंदू राज की स्थापना की। अपने जीवनकाल में उन्होंने 22 युद्धों में विजय प्राप्त की, जिसके कारण उन्हें ‘मध्यकालीन भारत का समुद्रगुप्त’ कहा जाता है। कुछ इतिहासकारों ने उन्हें ‘मध्यकालीन नेपोलियन’ की उपाधि भी दी है।

साधारण परिवार से राजा बनने की कहानी

हेम चंद्र, जिन्हें दुनिया हेमू के नाम से जानती है, का जन्म 1501 में हरियाणा के रेवाड़ी जिले के कुतुबपुर गाँव में हुआ था। वह किसी शाही परिवार से नहीं, बल्कि एक साधारण व्यापारी परिवार से थे। उनके परिवार का किराने का व्यवसाय था, जिसके चलते अकबर की जीवनी लेखक अबुल फजल ने उन्हें एक साधारण ‘फेरीवाला’ के रूप में तिरस्कार किया, जो कभी रेवाड़ी की गलियों में नमक बेचा करते थे।

लेकिन हेमू की किस्मत कुछ और ही थी। उनकी नेतृत्व क्षमता और सैन्य कौशल ने उन्हें शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह की नजरों में ला खड़ा किया। इस्लाम शाह के दरबार में उनकी स्थिति मजबूत होती गई, और आदिल शाह के शासनकाल में उन्हें ‘वकील-ए-आला’ यानी प्रधानमंत्री का पद प्राप्त हुआ।

दिल्ली पर कब्जे की राह

राजा बनने में  हेमू विक्रमादित्य के सामने एक चुनौती थी. ये चुनौती थी दिल्ली. दरअसल, दिल्ली पर हुमायूं ने वापिस कब्जा कर लिया था और आदिल शाह ने हुमायूं को दिल्ली से बाहर खदेड़ने की जिम्मेदारी हेमू को सौंपी.

आदिल शाह ने हुमायूं को दिल्ली से बाहर करने की जिम्मेदारी हेमू को दी। हेमू ने 50,000 सैनिकों की एक विशाल सेना तैयार की, जिसमें 1,000 हाथी और 51 तोपें शामिल थीं। उनकी सेना इतनी भयंकर थी कि कालपी और आगरा के मुगल गवर्नर डर के मारे अपने शहर छोड़कर भाग गए।

के.के. भारद्वाज की पुस्तक “हेमू: नेपोलियन ऑफ मीडिवल इंडिया” के अनुसार, अक्टूबर 1556 में, हेमू ने दिल्ली पर विजय प्राप्त कर अपने सिर पर शाही छत्र धारण किया और ‘हिंदू राज’ की स्थापना की। इसके साथ ही उन्होंने ‘विक्रमादित्य’ की पदवी ग्रहण की, जो उस समय एक प्रतिष्ठित खिताब माना जाता था।

पानीपत का दूसरा युद्ध और हेमू का बलिदान

हेमू विक्रमादित्य की सबसे प्रसिद्ध और अंतिम लड़ाई पानीपत के दूसरे युद्ध में हुई। अकबर के संरक्षक बैरम खान ने युवा सम्राट अकबर के लिए सेना का नेतृत्व किया। दोनों सेनाओं के बीच भीषण संघर्ष हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश, युद्ध के दौरान एक तीर हेमू की आँख में जा लगा, जिससे वह गम्भीर रूप से घायल हो गए।

हेमू की सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन उनके घायल होने के बाद मुगल सेना को बढ़त मिल गई। उन्हें पकड़ लिया गया और बाद में बैरम खान ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।

हेमू विक्रमादित्य की वीरता और नेतृत्व

हेमू विक्रमादित्य न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक उत्कृष्ट नेता भी थे, जिनकी प्रशासनिक क्षमता और युद्ध रणनीतियाँ अद्वितीय थीं। उन्होंने अपने साहस, नेतृत्व और सैन्य कौशल के दम पर भारतीय इतिहास में एक अलग पहचान बनाई।

हेमू की कहानी यह साबित करती है कि महानता केवल राजघरानों में जन्म लेने से नहीं मिलती, बल्कि अपने कर्म और काबिलियत से हासिल की जाती है। एक साधारण व्यापारी परिवार से होने के बावजूद, उन्होंने मुगल साम्राज्य को हराया और भारतीय इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें इतिहास के महानतम योद्धाओं में स्थान दिलाया है।

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