पिछले साल के लोकसभा चुनावों में तालमेल की दिक्कतों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक बार फिर अपने सबसे अहम काम में जुट गया है – अपनी पकड़ मजबूत करना. चुनावी माहौल बनाने से लेकर संगठन में एकता बनाए रखने तक, संघ ने एक बार फिर अपने संगठनों और अपनी राजनीतिक शाखा – बीजेपी पर अपना दबदबा साबित किया है. पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र और अब दिल्ली में, संघ की विचारधारा की मजबूती, सुव्यवस्थित अभियान चलाने और कार्यकर्ताओं में एकता सुनिश्चित करने की क्षमता ने बीजेपी और उसके राजनीतिक भविष्य के लिए उसे एक मजबूत आधार बना दिया है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संघ प्रमुख मोहन भागवत और संगठन महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के साथ बैठक की, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे. यह बैठक दिल्ली में संघ के नए कार्यालय ‘केशव कुंज पथ’ में हुई. इसी बैठक के बाद पार्टी ने शाम को रेखा गुप्ता को दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित किया.
रेखा गुप्ता क्यों आरएसएस की पसंद?
रेखा गुप्ता का आरएसएस से गहरा नाता रहा है, उनकी राजनीति की शुरुआत एबीवीपी (RSS का छात्र संगठन) से हुई थी. यह उनकी विचारधारा और पार्टी के मूल मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
कई वरिष्ठ बीजेपी नेता, जिनमें कुछ बड़े नाम भी शामिल थे, मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन संघ ने साफ कर दिया कि वह नहीं चाहता कि बीजेपी को ‘वंशवाद’ को बढ़ावा देने वाली पार्टी के तौर पर देखा जाए. इसी वजह से चर्चित नेता का नाम रद्द कर दिया गया. संघ ने यह भी दोहराया कि वह एक नया चेहरा चाहता है, जो ‘मातृशक्ति’ (जैसा कि RSS महिला नेताओं को कहता है) हो और जो सबको साथ लेकर चल सके. संघ ने विजेंदर गुप्ता का भी समर्थन किया, जिन्हें अब दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक जमीनी स्तर पर काम किया है और संगठन को ‘एकजुट’ रखा है.
हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली- कैसे आरएसएस ने मजबूत की पकड़?
हालिया विधानसभा चुनावों और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आरएसएस ने अपनी भूमिका बढ़ा दी है, चाहे वह हरियाणा में व्यापक जमीनी काम के जरिए हो, महाराष्ट्र में नेतृत्व संतुलन बनाकर हो या फिर दिल्ली में अपनी विचारधारा की पकड़ मजबूत करके. बीजेपी के चुनावी अभियान और सरकार चलाने की रणनीति के पीछे आरएसएस का मार्गदर्शन अब साफ दिखाई देता है.
हरियाणा लंबे समय से ऐसा राज्य रहा है, जहां आएसएस-बीजेपी का नेटवर्क साथ मिलकर काम करता रहा है, खासकर गैर-जाट वोटों को संगठित करने और हिंदुत्व की भावना को मजबूत करने में. बीजेपी के अंदरूनी संघर्षों के बावजूद, आरएसएस ने स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई, जिससे पार्टी अपनी विचारधारा से जुड़ी रही.
हाल ही के चुनावों में, संघ से जुड़े संगठन और उसके सहयोगी बूथ स्तर पर काम करने से लेकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल थे.
महाराष्ट्र में, संघ की भूमिका सिर्फ कार्यकर्ता जुटाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसने गठबंधन बनाने और राजनीतिक समीकरण तय करने में भी अहम भूमिका निभाई. शिवसेना के विभाजन के बाद, आरएसएस ने यह सुनिश्चित किया कि बीजेपी महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्र में बनी रहे. संघ का प्रभाव इस बात से साफ़ झलकता है कि इसने कैसे गुटबाजी को नियंत्रित किया और यह सुनिश्चित किया कि हिंदुत्व जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर मुख्य चुनावी मुद्दा बना रहे.
दिल्ली दूसरे राज्यों के मुकाबले बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती और हमेशा से एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य रही है. यहां आरएसएस की उपस्थिति अब पहले से कहीं ज़्यादा साफ़ दिखाई दे रही है. चाहे वह संगठनात्मक शिविर हों, विचारधारा से जुड़े प्रशिक्षण सत्र हों या फिर बीजेपी की दिल्ली की रणनीति में सीधे तौर पर शामिल होना हो, आरएसएस यह सुनिश्चित कर रहा है कि उसके संगठन और कार्यकर्ता उसकी मूल विचारधारा से न भटकें.
झंडेवालान में आरएसएस के दिल्ली मुख्यालय ‘केशव कुंज पथ’ का पुनर्निर्माण भी राजधानी और देश की राजनीति पर उसके बढ़ते नियंत्रण का संकेत माना जा रहा है. इसके अलावा, बड़े बीजेपी नेताओं को आरएसएस के साथ अपने सीधे संबंधों को फिर से मजबूत करते हुए देखा जा रहा है, जिससे पार्टी आरएसएस के दीर्घकालिक विजन के साथ बनी रहे.