Inheritance Tax: राहुल गांधी के बयानों और कांग्रेस के घोषणा-पत्र के बाद लोकसभा चुनाव में ‘विरासत कर’ या संपदा शुल्क यानी Inheritance tax बड़ा मुद्दा बन गया है। कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के बयान ने आग में घी का काम किया है।
कांग्रेस जिस ‘विरासत कर’ को लागू करने की बात कह रही है, दरअसल, वह कानून पहले करीब 3 दशकों तक देश में लागू था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस कानून को खत्म किया था।
इंदिरा गांधी की संपत्ति पोते-पोती को दिलाने के लिए राजीव गांधी ने खत्म किया था कानून: पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के मुरैना में यह मुद्दा उठाया। पीएम मोदी ने कहा- जब देश की एक प्रधानमंत्री इंदिरा जी नहीं रही, तो उनकी जो प्रॉपर्टी थी, वो उनकी संतानों को मिलनी थी, लेकिन पहले ऐसा कानून था कि वो उनको मिलने से पहले सरकार एक हिस्सा ले लेती थी। उस प्रॉपर्टी को बचाने के लिए, उस समय के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने पहले जो Inheritance कानून था, उसको समाप्त कर दिया था।
भारत में लागू था ऐसा ‘विरासत कर’
- 1953 के संपदा शुल्क अधिनियम के तहत संपत्ति की विरासत पर टैक्स लगता था।
- यह टैक्स विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का 85% तक हो सकता था।
- जैसे अभी इनकम टैक्स में स्लैब हैं, उसी तरह संपदा शुल्क के स्लैब बने थे।
- जिस प्रॉपर्टी की कीमत जितनी ज्यादा होती थी, उस पर उतना अधिक टैक्स लगता था।
- जैसे 20 लाख रुपए से ऊपर की संपत्तियों पर 85% टैक्स लगता था, जिसका मतलब है कि मालिक की मृत्यु के बाद लगभग सभी संपत्ति सरकार द्वारा हड़प ली जाती थी। हालांकि इस व्यवस्था का वैसा लाभ नहीं हुआ, जैसे कांग्रेस ने सोचा था।
राजीव गांधी ने कब और कैसे खत्म किया कानून
संपत्ति शुल्क अधिनियम 1953 को राजीव गांधी सरकार के पहले बजट में ही समाप्त कर दिया गया। उस समय वीपी सिंह वित्त मंत्री थे। इस अधिनियम को 1 अप्रैल 1984 की तारीख से समाप्त कर दिया गया था। ठीक एक महीने बाद यानी 2 मई 1984 को इंदिरा गांधी की वसीयत प्रकाशित हुई
वसीयत के अनुसार, इंदिरा गांधी की लगभग 21.50 लाख से अधिक की संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों (राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और वरुण गांधी) को सौंप दी गई थी।