कुंभ मेला शताब्दियों से अनवरत चली आ रही हमारी सांस्कृतिक यात्रा का पड़ाव है। इसमें कथाएं हैं, संस्कार हैं, अनुष्ठान हैं और अनगिनत आध्यात्मिक और समााजिक चेतनाएं शामिल हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अद्भुत और अप्रतिम यात्रा का 12 साल इंतजार किया जाता है। यह इंतजार 144 साल का हो तो यात्रा बेहद अलौकिक हो जाती है।
तीर्थराज प्रयागराज 13 जनवरी से महाकुंभ में इसी यात्रा का साक्षी बनने जा रहा है। महाशिवरात्रि (26 फरवरी) तक चलने वाले महाकुंभ में दुनिया के करोड़ों लोग संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे। पवित्र नदियों का पुण्य तट होगा, नक्षत्रों की विशेष स्थिति होगी, विशेष स्नान पर्वों का उत्साह होगा, साधु-संत जुटेंगे, धर्म क्षेत्र के सितारे और उनका वैभव होगा, कल्पवासियों की आकांक्षाएं होंगी।
इसके साथ देश-दुनिया से आए बड़े, बच्चों, गरीब, अमीर लोग भी होंगे, जो गंगा, यमुना और सरस्वती में सिर्फ मोक्ष की कामना के साथ डुबकी लगाने आते हैं। इस लोकोत्सव में भारतीय संस्कृति विश्व को स्वयं में समाहित कर लेने की ताकत भी दिखाती है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारतीय अवधारणा सहजता से चरितार्थ होती है।