हाल ही में एक फिल्म ‘Maha’ के पोस्टर ने धार्मिक भेदभाव के आरोपों को जन्म दिया है, जहां एक मुस्लिम निर्देशक ने हिंदू और मुस्लिम पात्रों को भिन्न-2 दृष्टिकोण से पेश किया है। इस फिल्म में मुस्लिम लड़की को धार्मिक और आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि हिंदू साध्वी को नशेड़ी और सामाजिक मानदंडों से परे दिखाया गया है।
इस पोस्टर ने दर्शकों और समीक्षकों के बीच विवाद उत्पन्न किया है। फिल्म में मुस्लिम लड़की का चित्रण एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में किया गया है, जो अपने धर्म के प्रति समर्पित और अनुशासित है। वहीं हिंदू साध्वी को नशेड़ी और अव्यवस्थित जीवन जीते हुए दिखाया गया है।
इस प्रकार की प्रस्तुति ने दर्शकों के बीच धार्मिक संवेदनाओं को आहत किया है और फिल्म पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि ये सारा प्रोपेगेंडा का काम एक मुस्लिम डायरेक्टर UR Jameel द्वारा किया जा रहा है। निश्चित तौर पर इसकी वजह से कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
यह विवाद विशेष रूप से इसलिए गंभीर हो गया है क्योंकि फिल्म की विषयवस्तु और प्रस्तुति ने धार्मिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देने का काम किया है। इस प्रकार की चित्रण से न केवल धार्मिक समुदायों के बीच तनाव पैदा होता है, बल्कि समाज में ध्रुवीकरण भी बढ़ता है। फिल्म की इस प्रस्तुति ने न केवल धार्मिक आलोचना को जन्म दिया है, बल्कि समाज में सह-अस्तित्व की भावना को भी कमजोर किया है।
आखिर क्यों फिल्म जगत द्वारा किया जा रहा हिन्दू धर्म का अपमान?
मुस्लिम डायरेक्टर UR Jameel की फिल्म ‘मह’ के पोस्टर में एक हिंदू साध्वी द्वारा धूम्रपान करते हुए चित्रण ने बड़ा सवाल उठा दिया है। आखिर क्यों बार बार हिंदूओं का अपमान फिल्म के द्वारा किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ दूसरे मजहब को अच्छा बतलाने की कोशिश की जा रही है।
धार्मिक भूमिका का विवाद
फिल्म के पोस्टर में अभिनेत्री को जब बतौर मुस्लिम लड़की में दिखाया गया तो ये नजर आया कि वो अपनी मजहब नहीं भूली। वहीं दूसरी तरफ हिन्दू साध्वी को अपना धर्म याद नही रहा। उसे नशेड़ी गंजेड़ी के तौर पर दिखाया गया। इस चित्रण ने दर्शकों और समीक्षकों के बीच तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। कुछ लोगों ने इसे एक संवेदनशील और सम्मानजनक धार्मिक चित्रण के रूप में देखा है, जबकि अन्य ने इसे सांप्रदायिक भेदभाव का कारण मानते हुए आलोचना की है।
धूम्रपान के विवाद और धार्मिक चित्रण दोनों ही सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। पहले विवाद ने जहां स्वास्थ्य संबंधी नियमों के उल्लंघन की ओर इशारा किया, वहीं दूसरे विवाद ने धार्मिक संवेदनाओं को प्रभावित किया। दोनों ही मामलों में हंसिका और उनके फिल्म निर्माताओं को कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा है, और इससे जुड़े विवादों ने समाज में ध्रुवीकरण और संवेदनशीलता की समस्या को उजागर किया है।
इन विवादों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि फिल्म उद्योग में संवेदनशील विषयों का चित्रण करते समय एक उच्च स्तर की जिम्मेदारी और सावधानी की आवश्यकता है। धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित चित्रणों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि वे समुदायों के बीच समझ और सम्मान को बढ़ावा दें, न कि भेदभाव और विवाद को।