नालंदा विश्वविद्यालय: खण्डहरों से साकार होता ज्ञानपुंज और मुस्लिम आक्रांताओं की ढाल बनते वामपंथी इतिहासकार

नालंदा विश्वविद्यालय: क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय जहां विश्व के अनेक देशों से आए 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी और लगभग 2000 अध्यापक ज्ञान साधना में रत रहे हों और जो लगभग 800 वर्षों तक ज्ञान का प्रकाश फैलाता रहा हो, सदियों तक जमीन में दबा रहा?

इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के संस्मरणों का जब फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद हुआ तो विश्व को इस ज्ञान केन्द्र नालंदा की जानकारी हुई।

300 बड़े कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 90 लाख पुस्तकों की विशाल ज्ञान संपदा को समेटे 9 मंजिला पुस्तकालय-कितना विशाल और भव्य रहा होगा?

खुदाई में विश्वविद्यालय के अवशेष एक लाख 50 हजार वर्ग फीट में फैले मिले हैं। एक अनुमान के अनुसार यह तो विशाल परिसर का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही माना जा रहा है।

इन अवशेषों में से प्रादुर्भाव हुआ है एक आधुनिक-विशाल नवीन नालंदा विश्वविद्यालय का, खंडहरों के नजदीक ही बनाया गया है।

गत 19 जून को विश्वविद्यालय के इस नवीन परिसर का उद्घाटन करते समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा “नालंदा इस सत्य का उद्घोष है कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं, लेकिन वे ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं। ”
ये आग की लपटें तुर्क-अफगान आक्रांता बख्तियार खिलजी ने सन 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस करने के बाद पुस्तकालय में लगाई थी। ज्ञान के दुश्मन एक क्रूर आक्रांता ने इस ज्ञान-विज्ञान की ज्योति को हमेशा के लिए बुझाने का प्रयास किया।

वामपंथी इतिहासकार कैसे विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं के पक्ष में नैरेटिव बनाते हुए भारत के इतिहास को विकृत करते रहे हैं, इसका एक अच्छा उदाहरण नालंदा विश्वविद्यालय है।

वामपंथी इतिहासकार डीएन झा ने लिखा है कि नालंदा विश्वविद्यालय में आग हिंदू कट्टरपंथियों ने लगाई क्योंकि वहां से
बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हो रहा था। इस आग से नालंदा विश्वविद्यालय बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ ।
खिलजी ने तो नालंदा के पास एक अन्य ‘विहार’ (बौद्ध ज्ञान केन्द्र व बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान) को ध्वस्त किया था। वह कभी नालंदा गया ही नहीं।

प्रसिद्ध लेखक अरुण शौरी ने डीएन झा की उपरोक्त अवधारणा का खंडन अपनी पुस्तक ‘एमिनेंट हिस्टोरियंस : देयर टेक्नोलॉजी, देयर लाइन, देयर-फ्रॉड्स’ में किया है।

वे नालंदा-विध्वंस के समकालीन रहे मौलाना मिन्हाज-उद्-दीन सिराज की पुस्तक ‘तबकात-ए-नासिरी’ का उल्लेख करते हैं जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बख्तियार खिलजी 200 घुड़सवारों के साथ आया, नालंदा पर हमला
किया और स्थानीय ब्राह्मणों (भिक्षुओं) के सिर मुंडवाकर उन्हें मार डाला।

इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि “मुहम्मद-ए-बख्तियार लूट के बड़े माल के साथ लौटा और सुल्तान कुतुब-उद्-दीन ऐबक के दरबार में आया, जहां उसे बहुत सम्मान और गौरव प्राप्त हुआ।”

उल्लेखनीय है कि बाबा साहेब भीमराव रामजी अंबेडकर भी नालंदा को खिलजी द्वारा नष्ट किया जाना मानते हैं ।
इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने समकालीन दस्तावेजों को उद्धृत करते हुए बताया है कि कैसे बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जलाकर नष्ट कर दिया था और कैसे उसने वहां के सभी ब्राह्मणों के सिर मुंडवाकर उन्हें मार डाला था।

यह भी कहा जाता है कि इस क्रूर तुर्क बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय के आसपास रह रहे बौद्धों, अनेक धर्माचार्यों और भिक्षुओं का कत्लेआम किया, और यह भी कि, खिलजी ने बिहार में चुन-चुन कर सभी बौद्ध मठों को नष्ट किया था तथा लोगों को इस्लाम कबूल करने को मजबूर किया।

जब खिलजी ने विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया उस समय उसके पास 200 घुड़सवार सैनिक ही थे जबकि विश्वविद्यालय में दस हजार युवा विद्यार्थी एवं डेढ़ दो हजार प्राध्यापक थे।

उन्होंने खिलजी का प्रतिरोध क्यों नहीं किया?

निहत्थे और अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि ज्ञान और शास्त्रों की रक्षा के लिए शस्त्रों की भी आवश्यकता होती है।

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