राजा पोरस: विदेशी लुटेरों को भगाने वाले हिंदू योद्धा, राष्ट्र की स्वतंत्रता का प्रतीक

प्रारंभ और जीवन यात्रा: हिंदू शौर्य की नींव से युद्ध की तैयारी तक

राजा पोरस भारतीय इतिहास के वह महान हिंदू योद्धा थे, जिन्होंने विदेशी लुटेरों को भगाकर राष्ट्र की स्वतंत्रता का अमर प्रतीक बनाया। 326 ई.पू. में हाइडेस्पिस नदी के किनारे अलेक्जेंडर महान को धूल चटाने वाले पोरस ने हिंदू गौरव और राष्ट्रीय एकता की मिसाल कायम की। उनका जीवन एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो हिंदू धर्म की रक्षा, स्वदेशी शक्ति, और विदेशी आक्रमण के खिलाफ अडिग संघर्ष को दर्शाती है। यह लेख उनके जन्म से लेकर युद्ध की तैयारी तक की यात्रा को विस्तार से प्रस्तुत करता है, जो हर देशभक्त और हिंदू हृदय के लिए गर्व का स्रोत है। आज, 29 अक्टूबर 2025 को, हम उनके शौर्य को याद करते हुए राष्ट्र स्वतंत्रता के आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।

राजा पोरस, जिनका असली नाम पुरुषोत्तम था, का जन्म लगभग 380 ई.पू. में पंजाब के पुरु राज्य में एक शक्तिशाली राजपूत परिवार में हुआ था। उनका राज्य हाइडेस्पिस (झेलम) नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित था, जो उस समय हिंदू संस्कृति, वेदों, और वैदिक परंपराओं का प्रमुख केंद्र था। पोरस के पिता एक धर्मनिष्ठ हिंदू राजा थे, जिन्होंने उन्हें बचपन से ही युद्धकला, शासनकला, और धर्म रक्षा की शिक्षा दी। पोरस ने स्थानीय गुरुकुलों में वेद, पुराण, और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनकी बुद्धिमत्ता, साहस, और नेतृत्व क्षमता ने सभी को प्रभावित किया। युवावस्था में ही वे राज्य के उत्तराधिकारी बने और हिंदू योद्धाओं की एक विशाल सेना गठित की, जिसमें 30,000 पैदल सैनिक, 4,000 घुड़सवार, 300 युद्ध रथ, और 200 विशाल युद्ध हाथी शामिल थे। ये हाथी हिंदू शौर्य का प्रतीक थे, जो दुश्मन को थर-थर कँपाने में सक्षम थे।

पोरस ने अपने राज्य में मंदिरों का निर्माण कराया, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए, तथा हिंदू संस्कृति को मजबूत किया। उन्होंने स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया और विदेशी व्यापार पर नियंत्रण रखा, जो राष्ट्र की आर्थिक स्वतंत्रता का आधार था। जब अलेक्जेंडर का भारत आक्रमण हुआ, तब पोरस ने हिंदू राजाओं को एकजुट करने का प्रयास किया। विदेशी लुटेरों की खबर सुनकर उनके योद्धा उत्साहित हुए, क्योंकि पोरस का नाम ही दुश्मनों में भय पैदा करता था। उन्होंने हाइडेस्पिस नदी के किनारे रक्षा पंक्ति बनाई और बारिश के मौसम का इंतजार किया, ताकि नदी का तेज बहाव अलेक्जेंडर के लिए बाधा बने। पोरस की तैयारी इतनी मजबूत थी कि विदेशी लुटेरे उनके नाम से थर-थर काँपने लगे। यह तैयारी हिंदू शौर्य और राष्ट्र स्वतंत्रता की नींव थी, जो युद्ध में विजय का आधार बनी।

हाइडेस्पिस युद्ध: लुटेरों को भगाने का महासंग्राम

हाइडेस्पिस युद्ध (326 ई.पू.) राजा पोरस की जीवन गाथा का शिखर था, जहाँ उन्होंने विदेशी लुटेरों को भगाकर हिंदू योद्धा की छवि अमर कर दी। अलेक्जेंडर की सेना, जो फारस और मध्य एशिया जीत चुकी थी, भारत की संपदा लूटने आई थी। उसकी सेना में 40,000 पैदल सैनिक, 7,000 घुड़सवार, और हजारों सहायक थे, लेकिन लंबी यात्रा से थकी हुई थी। पोरस ने नदी के किनारे मोर्चा संभाला और बारिश के कारण नदी का जलस्तर ऊँचा होने दिया, जो अलेक्जेंडर के लिए प्राकृतिक बाधा बना।

युद्ध की शुरुआत में अलेक्जेंडर ने चालाकी से नदी पार की और रात में हमला किया, लेकिन पोरस की खुफिया व्यवस्था ने उन्हें सतर्क कर दिया। पोरस ने अपनी सेना को रणनीतिक रूप से तैनात किया—हाथी आगे, घुड़सवार पीछे, और पैदल सैनिक पक्षों में। जैसे ही अलेक्जेंडर की सेना आगे बढ़ी, पोरस के युद्ध हाथियों ने गर्जना की, जिससे ग्रीक घोड़े भयभीत होकर भागने लगे। विदेशी लुटेरे थर-थर काँपते थे, क्योंकि हाथियों ने उनके घुड़सवारों को कुचल डाला। पोरस व्यक्तिगत रूप से अपने हाथी पर सवार होकर मोर्चा संभाल रहे थे, उनकी तलवार और भाला दुश्मनों पर कहर बरपा रहा था। अलेक्जेंडर ने पलटवार किया, लेकिन पोरस की सेना ने डटकर मुकाबला किया। युद्ध तीन दिन तक चला, जिसमें हजारों ग्रीक सैनिक मारे गए। अलेक्जेंडर की सेना थककर चूर हो गई और पीछे हटने पर मजबूर हुई।

अंत में अलेक्जेंडर ने संधि की पेशकश की। पोरस ने गर्व से कहा, “एक राजा की तरह व्यवहार करो।” अलेक्जेंडर ने पोरस को उनका राज्य लौटाया और उन्हें अपना मित्र बना लिया। पोरस ने विदेशी लुटेरों को भगा दिया और भारत की सीमाओं की रक्षा की। यह युद्ध हिंदू शौर्य का प्रमाण था, जहाँ एक हिंदू योद्धा ने विश्व विजेता को पराजित कर राष्ट्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित की। विदेशी लुटेरे थर-थर काँपते भागे, और पोरस का नाम इतिहास में अमर हो गया।

विरासत और सम्मान: राष्ट्र स्वतंत्रता का अमर प्रतीक

राजा पोरस की विरासत आज भी हिंदू गौरव और राष्ट्र स्वतंत्रता का अमर प्रतीक है। उनकी विजय ने अलेक्जेंडर को भारत के आगे बढ़ने से रोका और हिंदू संस्कृति की रक्षा की। पोरस ने हिंदू योद्धाओं की एकता दिखाई, जो RSS जैसे संगठनों के लिए प्रेरणा है। पंजाब में उनके स्मारक और कथाएँ जीवित हैं, जो युवाओं को विदेशी आक्रमण के खिलाफ लड़ने का संदेश देती हैं। उनकी कहानी स्कूलों में पढ़ाई जाती है और राष्ट्रवादी कार्यक्रमों में गाई जाती है।

पोरस का जीवन सिखाता है कि हिंदू शौर्य से कोई विदेशी लुटेरा भारत को लूट नहीं सकता। उनकी सेना की संगठित शक्ति हिंदू एकता का प्रतीक थी। आज, जब विदेशी प्रभाव बढ़ रहा है, पोरस की गाथा हमें स्वदेशी और राष्ट्र स्वतंत्रता की याद दिलाती है। 29 अक्टूबर 2025 को, हम उनके शौर्य को नमन करते हैं और हिंदू गौरव को मजबूत करने का संकल्प लेते हैं। राजा पोरस ने विदेशी लुटेरों को भगाया, और उनका नाम थर-थर काँपाने वाला अमर रहेगा।

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