भारत जैसे विविधता और सहिष्णुता वाले देश में कट्टरपंथ एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। खासकर मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा, जो देश के विभिन्न हिस्सों में समान पैटर्न के साथ देखने को मिलती है। कश्मीर घाटी से लेकर संभल जैसे छोटे शहरों तक, इस हिंसा का एक ही रूप है—हाथों में पत्थर, ज़ुबां पर मज़हबी नारे, और अंत में खुद को पीड़ित बताने का खेल।
कट्टरपंथी हिंसा की शुरुआत
मुस्लिम कट्टरपंथ की हिंसा कोई नई बात नहीं है। इसकी जड़ें कश्मीर में देखी जा सकती हैं, जहां 1990 के दशक में आतंकवाद और कट्टरपंथ के नाम पर कश्मीरी पंडितों को अपने घरों से भगाया गया। उन घटनाओं में पहले दहशत का माहौल बनाया गया, फिर धार्मिक उत्पीड़न का आरोप लगाकर अपनी छवि को पीड़ित के रूप में पेश किया गया।
यह पैटर्न कश्मीर से बाहर अन्य हिस्सों में भी फैल गया। संभल जैसे शहरों में छोटे-छोटे विवादों को मज़हबी रंग देकर हिंसा में बदल दिया जाता है। भीड़ को उकसाने के लिए मज़हबी नारों का इस्तेमाल किया जाता है, और जब कानून अपना काम करता है, तो इसे “धार्मिक भेदभाव” करार दिया जाता है।
पत्थरबाजी: कट्टरपंथी हिंसा का सबसे बड़ा हथियार
पत्थरबाजी महज़ एक हिंसक गतिविधि नहीं, बल्कि एक सटीक रणनीति है। इसके ज़रिए डर का माहौल बनाया जाता है, सुरक्षाबलों को उकसाया जाता है, और फिर हिंसा को धार्मिक भेदभाव का नाम देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाया जाता है। कश्मीर में यह रणनीति दशकों से अपनाई जा रही है। मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन स्थानीय युवाओं को गुमराह कर पत्थरबाजी में शामिल करते हैं।
संभल जैसे इलाकों में भी पत्थरबाजी के मामले बढ़े हैं। धार्मिक नारे लगाकर भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया जाता है। इसके बाद जब प्रशासन सख्त कार्रवाई करता है, तो इसे “मुसलमानों पर अत्याचार” के रूप में प्रचारित किया जाता है।
मज़हबी नारे: हिंसा का मुख्य साधन
मज़हबी नारे मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा का सबसे प्रभावी उपकरण हैं। इन नारों के ज़रिए आम लोगों और युवाओं को भावनात्मक रूप से भड़काया जाता है। धर्म के नाम पर हिंसा को सही ठहराने की कोशिश की जाती है, और इसे एक धर्म की रक्षा का माध्यम बताया जाता है।
युवाओं को गुमराह करने के लिए इन्हीं नारों का सहारा लिया जाता है। हिंसा भड़काने के बाद, जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो इसे सांप्रदायिकता और धार्मिक असहिष्णुता का मुद्दा बनाकर प्रस्तुत किया जाता है।
कश्मीर से संभल तक एक जैसी घटनाएं
कश्मीर में मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा ने सबसे ज्यादा नुकसान किया है। यहां पत्थरबाजी और आतंकवाद का उद्देश्य न केवल सुरक्षाबलों को परेशान करना है, बल्कि स्थानीय निवासियों को डराना और अस्थिरता पैदा करना भी है।
संभल जैसे छोटे शहरों में भी मुस्लिम कट्टरपंथी समूह ऐसे ही तरीके अपनाते हैं। धार्मिक आयोजनों के दौरान हिंसा भड़काने के बाद, प्रशासनिक कार्रवाई को सांप्रदायिक रंग देकर पेश किया जाता है।
मारो, जलाओ और फिर पीड़ित बन जाओ
मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा का यह पैटर्न बेहद खतरनाक है। हिंसा की शुरुआत करने के बाद, कट्टरपंथी संगठन इसे धार्मिक उत्पीड़न का मुद्दा बना देते हैं। मीडिया और सोशल मीडिया के ज़रिए इसे बड़ा करके पेश किया जाता है। इस रणनीति का उद्देश्य न केवल खुद को पीड़ित दिखाना है, बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करना है।
इस पैटर्न के पीछे की साजिश
मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा के पीछे विदेशी ताकतों और स्थानीय संगठनों की मिलीभगत है। ये ताकतें भारत को अस्थिर करना चाहती हैं। बेरोजगारी और शिक्षा की कमी का फायदा उठाकर युवाओं को इस हिंसा का हिस्सा बनाया जाता है।
कट्टरपंथी हिंसा के ज़रिए न केवल धार्मिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाया जाता है, बल्कि इसे राजनीतिक लाभ के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
समाज और सरकार की जिम्मेदारी
कट्टरपंथ से निपटने के लिए समाज और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा। युवाओं को शिक्षा और रोजगार के माध्यम से सही दिशा में प्रेरित किया जा सकता है।
सरकार को सख्त कानून बनाकर ऐसी घटनाओं पर काबू पाना होगा। साथ ही, धार्मिक नेताओं और समुदायों को आपसी संवाद बढ़ाकर शांति और भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए।
मुस्लिम कट्टरपंथी हिंसा देश के लिए एक बड़ी चुनौती है। कश्मीर से संभल तक यह पैटर्न न केवल सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ता है, बल्कि देश की अखंडता के लिए भी खतरनाक है।
हमें मिलकर इस कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ा होना होगा और एक ऐसा समाज बनाना होगा जो शांति, विकास और सहिष्णुता का प्रतीक हो। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं, बल्कि समस्याओं की जड़ है। जब तक समाज इसे नहीं समझेगा, तब तक इस हिंसा का अंत मुश्किल है।