क्या बदला जाएगा बांग्लादेश का नाम और संविधान? शरीया कानून लागू करने की तैयारी, शहीद मीनार पर जुटेंगे 30 लाख लोग

बांग्लादेश में एक बार फिर छात्र आंदोलन उभरकर सामने आया है, जिसने पहले शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंका था। इस बार ढाका के शहीद मीनार पर छात्र नेता एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रहे हैं, जिसमें लगभग 30 लाख लोग जुटने की उम्मीद जताई जा रही है। इस रैली का प्रचार कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी ने बड़े पैमाने पर किया है, और माना जा रहा है कि यह घटना बांग्लादेश की राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकती है।

जुलाई क्रांति का ऐलान

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ‘जुलाई क्रांति’ का एलान करने की योजना बनाई थी, जिसे राजनीतिक दलों और छात्र संगठनों की मदद से तैयार किया जाना था। हालांकि, छात्र नेताओं ने इसे चुनौती दी और कहा कि यह क्रांति उनकी ओर से शहीद मीनार पर आयोजित रैली में घोषित की जाएगी। इस घोषणा के बाद, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इससे हाथ खींचते हुए कहा कि उनकी ओर से ऐसी कोई तैयारी नहीं की जा रही है।

संविधान में बदलाव और नए प्रस्ताव

छात्र नेता बांग्लादेश के संविधान में बदलाव की तैयारी कर रहे हैं। उनकी पहली कोशिश बांग्लादेश का नाम बदलने की है, और इसमें इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश या इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईस्ट पाकिस्तान जैसे नामों पर विचार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश में सुन्नत और शरीया कानून लागू करने की भी योजना है। साथ ही, सत्ता पर काबिज होने के लिए राष्ट्रपति और आर्मी चीफ से इस्तीफा लेने की चर्चाएं भी हो रही हैं। मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश का नया राष्ट्रपति बनाने की संभावना भी जताई जा रही है।

नए संविधान की ओर

छात्र नेताओं का मानना है कि बांग्लादेश को नया संविधान बनाना चाहिए। उनका कहना है कि 1972 का संविधान, जिसे ‘मुजीबिस्ट चार्टर’ कहा जाता है, भारत को बांग्लादेश पर प्रभावी शासन करने का मौका देता है और इसे पूरी तरह से नष्ट किया जाना चाहिए। हालांकि, बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीएनपी इस बदलाव के पक्ष में नहीं है और उनका कहना है कि यदि संविधान में कोई खामी है, तो उसे सुधारा जा सकता है, लेकिन उसे पूरी तरह से नष्ट करना उचित नहीं होगा।

सार्वजनिक समर्थन और भविष्य की दिशा

वर्तमान में, छात्र नेताओं ने ‘जुलाई क्रांति’ को ‘मार्च फॉर यूनिटी’ के रूप में पुनः प्रस्तुत किया है, जो एक नए बांग्लादेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह आंदोलन देश के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण सवालों को उठाता है और बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति को नई दिशा दे सकता है।

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