7 अक्टूबर 2023 की सुबह, यहूदी त्योहार सिम्खात तोरा के दिन, इज़राइल अपनी दशकों की सबसे काली सुबह के साथ जागा। “अल-अक्सा फ्लड” (Al-Aqsa Flood) नाम के कोड से हमास और उसके सहयोगी उग्रवादी गुटों ने गाज़ा पट्टी से दक्षिणी इज़राइल पर एक बेहद संगठित और योजनाबद्ध हमला किया।
यह कोई साधारण हमला नहीं था — यह एक नरसंहार था। घरों, खेतों और सड़कों पर हत्या, अपहरण और बर्बरता की घटनाएँ हुईं, जिसने न सिर्फ इज़राइल बल्कि पूरी दुनिया के ज़मीर को झकझोर दिया।
हमला कैसे हुआ
सुबह करीब 6:30 बजे सायरन बजने लगे। कुछ ही मिनटों में 5,000 से ज़्यादा रॉकेट दक्षिणी इज़राइल पर बरसाए गए। इसी दौरान, करीब 6,000 हमास लड़ाके बुलडोज़र, विस्फोटक और पैराग्लाइडर की मदद से गाज़ा-इज़राइल सीमा को 100 से ज़्यादा जगहों पर तोड़कर अंदर घुस आए। कुछ ही घंटों में 21 इज़राइली बस्तियाँ और कई सैन्य ठिकाने पूरी तरह कब्ज़े में आ गए।
यह हमला पहले कभी नहीं देखा गया था — सेना से लेकर शांतिपूर्ण किब्बुत्ज़ (कृषि समुदायों) और नोवा म्यूज़िक फेस्टिवल तक, हर जगह तबाही मच गई। इज़राइल की शुरुआती खुफिया और सुरक्षा प्रतिक्रिया असफल रही। कई घंटों तक आतंकवादी आज़ादी से घूमते रहे। जब तक इज़राइली रक्षा बलों (IDF) ने नियंत्रण पाया, तब तक 1,195 लोग मारे जा चुके थे — जिनमें 795 आम नागरिक, 379 सैनिक और पुलिसकर्मी, और 71 विदेशी नागरिक थे। इसके अलावा, 251 लोगों को बंदी बनाकर गाज़ा ले जाया गया।
विनाश के स्थल: ज़मीनी हकीकत
नोवा म्यूज़िक फेस्टिवल (किब्बुत्ज़ रे’ईम के पास): यह जगह सबसे भयावह दृश्य में बदल गई। लगभग 3,000 से 4,000 लोग संगीत उत्सव में शामिल थे, जब हमास के आतंकवादी मोटरसाइकिलों, पिकअप ट्रकों और पैराग्लाइडरों से पहुँचे।
364 नागरिकों की बेरहमी से हत्या कर दी गई और 40 लोगों का अपहरण हुआ। कई लोग झाड़ियों में घंटों छिपे रहे, जबकि भागने की कोशिश करने वालों को पास से गोली मार दी गई। यह स्थल 7 अक्टूबर की त्रासदी का सबसे प्रतीकात्मक चिन्ह बन गया।
किब्बुत्ज़ बे’एरी: 1,100 लोगों वाला यह शांत समुदाय कब्रगाह में बदल गया। 130 निवासियों की हत्या हुई, जिनमें 101 आम नागरिक और 31 रक्षक थे। कई परिवारों को उनके घरों में जिंदा जला दिया गया।
बचे हुए लोगों ने बताया कि आतंकवादी घर-घर जाकर सुरक्षित कमरों में छिपे लोगों पर पेट्रोल डालकर आग लगा रहे थे।
किब्बुत्ज़ कफर अज़ा: यह इलाका अपने शांति अभियानों के लिए जाना जाता था। लेकिन इस दिन यह भीषण नरसंहार का केंद्र बन गया। 80 लोग मारे गए, 19 का अपहरण हुआ और कई घरों को जला दिया गया। IDF को इलाका दोबारा हासिल करने में तीन दिन लग गए।
किब्बुत्ज़ नीर ओज़: यहाँ हर घर तबाही की चपेट में था। 47 लोग मारे गए, 76 का अपहरण हुआ — जिनमें बिबास परिवार के छोटे बच्चे भी शामिल थे, जो बाद में गाज़ा बंदी संकट का प्रतीक बन गए।
नहाल ओज़ सैन्य अड्डा: यह शायद उस दिन का सबसे भयानक सैन्य नरसंहार था। यहाँ महिला सैनिकों की एक यूनिट थी, जिनमें से कई नई-नई भर्ती हुई थीं। आतंकवादियों ने अड्डे पर धावा बोलकर 66 सैनिकों की हत्या कर दी और सात को अगवा कर लिया। कुछ ही महिलाएँ बचीं, जिन्होंने घंटों छिपकर अपनी जान बचाई। बाद में गवाही से पता चला कि वहाँ यौन हिंसा, यातना और शवों के साथ बर्बरता की घटनाएँ हुईं।
मानवीय हानि
इस हमले ने गहरी मानवीय त्रासदी छोड़ी। कुल 1,195 इज़राइली और विदेशी नागरिक मारे गए — जिनमें 795 आम नागरिक, 379 सुरक्षा कर्मी और 71 विदेशी थे। 3,400 से ज़्यादा लोग घायल हुए।
इसके जवाब में शुरू हुए इज़राइल के सैन्य अभियान में गाज़ा में तबाही और भी भयानक रही। अक्टूबर 2025 तक, 42,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके थे और लाखों लोग बेघर हो गए। सैकड़ों परिवार पूरी तरह खत्म हो गए — किब्बुत्ज़ और सीमावर्ती इलाकों में किसी-किसी घर से कोई भी नहीं बचा। इज़राइल और गाज़ा दोनों तरफ मानसिक आघात (PTSD) की लहर दौड़ गई — बचे हुए लोगों में आज भी भय और दुख बना हुआ है।
आर्थिक और सामाजिक असर
इस हमले ने इज़राइल की अर्थव्यवस्था को झटका दिया। 2023 से 2025 के बीच लगभग 67 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। पर्यटन ठप पड़ा, कृषि बर्बाद हुई, और सेना की लामबंदी से विकास रुक गया। दक्षिणी इज़राइल के कई लोग अब भी अपने घरों में लौटने से डरते हैं।
गाज़ा की स्थिति तो और भी भीषण है। लगातार बमबारी ने वहाँ के अस्पतालों, स्कूलों और बिजली-पानी की व्यवस्था को नष्ट कर दिया। लगभग पूरी आबादी — दो मिलियन से ज़्यादा लोग — बेघर हो गए हैं।दोनों समाज गहरे घावों से जूझ रहे हैं — इज़राइल में सदमे और ग़ुस्से के साथ, और गाज़ा में बेबसी और दर्द के साथ।
भू-राजनीतिक असर
इस हमले ने पूरे मध्य पूर्व की राजनीति को हिला दिया। इज़राइल ने तुरंत युद्ध की घोषणा की और गाज़ा पर ज़मीनी कार्रवाई शुरू की। इसके साथ ही, उत्तरी सीमा पर हिज़्बुल्लाह से झड़पें बढ़ीं और ईरान के साथ तनाव चरम पर पहुँचा। दुनिया भर में ‘संघर्ष बनाम मानवीयता’ पर बहस छिड़ गई।
अरब देशों, जिन्होंने पहले इज़राइल से संबंध सामान्य किए थे (Abraham Accords), अब अंदरूनी विरोध और दबाव झेलने लगे। पश्चिमी देशों ने इज़राइल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया, जबकि लाखों लोग सड़कों पर उतरकर फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने लगे।
गाज़ा के भीतर भी माहौल बदल गया। हमास के समर्थन में गिरावट आई — 2023 में जहाँ यह 57% था, 2024 तक यह घटकर 39% रह गया। तबाही ने लोगों को निराश कर दिया। लेकिन इसके बावजूद, संघर्ष का कोई अंत नज़र नहीं आया — बदला, अस्तित्व और शांति की उम्मीद के बीच दुनिया झूलती रही।
महिलाओं की त्रासदी: युद्ध का सबसे काला चेहरा
7 अक्टूबर की घटनाओं में सबसे भयावह खुलासे महिलाओं पर हुई यौन हिंसा से जुड़े थे। संयुक्त राष्ट्र की दूत प्रमिला पटन, ह्यूमन राइट्स वॉच और BBC की जाँचों ने “ठोस सबूत” दिए कि बलात्कार, शरीर विकृति और यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएँ कई जगहों पर हुईं।
नोवा फेस्टिवल और पास के किब्बुत्ज़ में, गवाहों ने बताया कि महिलाओं को सामूहिक बलात्कार, नग्नता में हत्या, और शवों के साथ बर्बरता का सामना करना पड़ा। गाज़ा में बंदी बनी कई महिलाओं ने भी अपमान, हिंसा और भूख से पीड़ित होने की कहानी बताई। संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा’ माना — यानी आतंक फैलाने का सुनियोजित हथियार।
अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की धीमी प्रतिक्रिया पर भी आलोचना हुई। UN Women पर आरोप लगा कि उन्होंने इन हमलों की निंदा करने में कई हफ्ते लगाए — जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
एक ऐसा युद्ध जिसने सब कुछ बदल दिया
7 अक्टूबर का हमला इज़राइल की सुरक्षा व्यवस्था की “अजेय” छवि को तोड़ गया और दुनिया को फिर एक बार इस अंतहीन संघर्ष की आग में झोंक गया। हमास के लिए यह भले एक सामरिक सफलता थी, लेकिन रणनीतिक रूप से यह आत्मघाती साबित हुआ — जिसने गाज़ा को विनाश और अलगाव में धकेल दिया।
इस त्रासदी में लिंग (Gender) एक रेखा बन गया — पुरुषों की सामूहिक हत्या और महिलाओं की देह पर अत्याचार। इस युद्ध ने “घर” और “युद्धभूमि” की सीमा मिटा दी — आतंक अब सिर्फ मोर्चे पर नहीं, बल्कि जीवन के हर कोने में उतर आया।
किब्बुत्ज़, नोवा फेस्टिवल और बंदी शिविरों के बचे हुए लोग आज भी उस भयावह दिन की छाया में जी रहे हैं। 7 अक्टूबर 2023 सिर्फ एक तारीख नहीं — यह याद दिलाती है कि जब विचारधारा इंसानियत को निगल जाती है, तो सबसे पहले मरती है “मानवता” खुद।
विवादित पहलू: क्या यह इज़राइली खुफिया तंत्र की असफलता थी या कुछ और?
हमास के 7 अक्टूबर 2023 के हमलों में 1,195 लोग मारे गए और 251 का अपहरण हुआ। यह घटना इज़राइल के इतिहास की सबसे बड़ी सुरक्षा असफलताओं में गिनी जाती है। मोसाद, शिन बेत और IDF — जिनकी पहचान हमेशा सटीकता और सतर्कता से रही है — वे इतने बड़े ऑपरेशन की भनक कैसे नहीं लगा पाए?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह राजनीतिक अहंकार और आत्मसंतोष का परिणाम था। कुछ इसे “ब्लैक स्वान इवेंट” कहते हैं — यानी ऐसा चौंकाने वाला, अप्रत्याशित हादसा जिसे रोकना लगभग असंभव था।
वहीं, कुछ साजिश सिद्धांतों में दावा किया गया कि सरकार को पहले से चेतावनी मिली थी, लेकिन या तो उसने उसे नज़रअंदाज़ किया या जानबूझकर कार्रवाई नहीं की — ताकि बाद में गाज़ा में कठोर सैन्य कार्रवाई को उचित ठहराया जा सके। दो साल बाद भी यह सवाल बना हुआ है: क्या यह त्रासदी लापरवाही का नतीजा थी — या कुछ और गहरा, जिसे अब तक उजागर नहीं किया गया?
दूरदृष्टि की विफलता या भरोसे का संकट?
7 अक्टूबर के हमलों ने इज़राइल की उस छवि को हिला दिया, जिसे लंबे समय से ‘अभेद्य किला’ कहा जाता था। आलोचकों का कहना है कि यह हमला अचानक नहीं हुआ — इसके संकेत पहले से मौजूद थे। मिस्र से मिली चेतावनियाँ, खुफिया एजेंसियों की आंतरिक रिपोर्टें और कई मेमो पहले ही हमास के बड़े हमले की संभावना जता चुके थे — जिनकी झलक बाद की घटनाओं में साफ़ दिखी।
सरकार के विरोधियों का आरोप है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनका प्रशासन घरेलू राजनीतिक विवादों में उलझा हुआ था, खासकर 2023 में न्यायिक सुधारों को लेकर चले विरोध प्रदर्शनों के दौरान। उनका मानना है कि इस राजनीतिक तनाव और सत्ता बचाने की कोशिशों में राष्ट्रीय सुरक्षा पीछे छूट गई। यह आरोप कि ‘अहंकार और विचारधारा’ ने सुरक्षा एजेंसियों की आँखों पर पट्टी बाँध दी — पूरे इज़राइल समाज को गहराई तक झकझोर गया।
‘ब्लैक स्वान’ सिद्धांत
इज़राइल की खुफिया एजेंसियों के समर्थकों का कहना है कि यह खुफिया असफलता नहीं, बल्कि संचालन (execution) की गलती थी।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस हमले को “ऑपरेशनल सरप्राइज़” कहा — यानी ऐसा हमला जिसकी भविष्यवाणी कर पाना असंभव था।
उनका कहना है कि हमास ने इस बार एक नई रणनीति अपनाई — साधारण साधनों (जैसे बुलडोज़र, बाइक, पैराग्लाइडर) के साथ बहुत उच्च स्तर की योजना और गोपनीयता रखी। CTC Sentinel पत्रिका के अनुसार, यह “असमान युद्ध का नया चरण” था — जहाँ सरल तरीकों ने आधुनिक तकनीक को मात दी।
Atlantic Council ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पश्चिमी तट पर बढ़ती हिंसा, ईरान समर्थित खतरों और देश के भीतर की राजनीतिक अव्यवस्था ने सरकार का ध्यान गाज़ा से हटा दिया।
इन समर्थकों का यह भी कहना है कि ज़रूरत से ज़्यादा दोष देना हमास के प्रचार को ताकत देता है। American Jewish Committee (AJC) ने चेताया कि अगर 7 अक्टूबर को “जानबूझकर की गई लापरवाही” बताया गया, तो इससे एंटी-इज़राइल नैरेटिव को बढ़ावा मिलेगा। उनका तर्क है कि हमले के बाद जिस गति से इज़राइल ने हालात को काबू में किया, वह उसकी संस्थागत ताकत का प्रमाण है — न कि नाकामी का।
आलोचकों का आरोप: लापरवाही, आत्मसंतोष या मिलीभगत?
सरकार के आलोचकों — जिनमें मानवाधिकार संगठन, विपक्षी नेता और स्वतंत्र पत्रकार शामिल हैं — का कहना है कि यह हमला पूरी तरह रोका जा सकता था, अगर चेतावनियों को गंभीरता से लिया जाता।
Human Rights Watch (HRW) और Amnesty International की रिपोर्टों में कहा गया है कि मिस्र ने हमले से पहले इज़राइल को कई बार असामान्य हमास गतिविधियों के बारे में चेताया था। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि इज़राइली खुफिया अधिकारियों ने इन चेतावनियों को “हमास अब ख़तरा नहीं है” सोचकर नज़रअंदाज़ कर दिया।
BBC और Taylor & Francis की रिपोर्टों में कहा गया कि इज़राइली सेना के अंदर भी ऐसे मेमो थे, जिनमें हमास के अभ्यासों का ज़िक्र था — जो बाद में हुए हमले की योजना से लगभग मिलते-जुलते थे। फिर भी इन चेतावनियों को “असंभव” मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
इज़राइल के अंदर भी कड़े आरोप लगे। पूर्व प्रधानमंत्री एहूद बराक ने नेतन्याहू पर “अहंकार और राजनीतिक जड़ता” का आरोप लगाते हुए कहा कि न्यायिक सुधारों और गुटबाज़ी की वजह से सुरक्षा तंत्र का ध्यान भटक गया। बाद में सेना की अपनी जाँचों में भी “संचार और तैयारी में गंभीर कमी” स्वीकार की गई — जिसे आलोचक प्रणालीगत लापरवाही का सबूत मानते हैं।
कुछ मीडिया हलकों में अब भी साजिश सिद्धांत घूम रहे हैं — भले ही उन्हें खारिज किया जा चुका हो। इनमें दावा किया जाता है कि नेतन्याहू सरकार को पहले से खतरे की जानकारी थी, लेकिन उसने कार्रवाई नहीं की ताकि बाद में गाज़ा पर सैन्य हमला उचित ठहराया जा सके। इन अफ़वाहों का बने रहना दिखाता है कि इस हमले ने इज़राइल की “खुफिया साख” को गहराई से चोट पहुँचाई है।
तकनीक, राजनीति और सुरक्षा का भ्रम
7 अक्टूबर को लेकर चल रही बहस सिर्फ खुफिया विफलता पर नहीं, बल्कि इज़राइली सुरक्षा की मिथकीय छवि पर है। कई दशकों से Iron Dome जैसे रक्षा सिस्टम और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ निगरानी तकनीक ने इज़राइल को “अजेय” बना दिया था।
लेकिन उस सुबह की घटनाओं ने यह भ्रम तोड़ दिया।
1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद पहली बार, इज़राइली जनता को यह मानना पड़ा कि तकनीक की भी सीमाएँ होती हैं, और जब राजनीति सुरक्षा पर हावी हो जाती है, तब कोई भी देश पूरी तरह सुरक्षित नहीं रह सकता। अब समाज पहले से कहीं ज़्यादा बँटा हुआ है —
एक पक्ष जवाबदेही और सुधार चाहता है, तो दूसरा मानता है कि अंदरूनी आलोचना दुश्मनों को मज़बूत करती है।
जारी आत्ममंथन
2025 तक आते-आते भी, 7 अक्टूबर से पहले की चूकों की जाँच जारी है। संसद और सेना की जाँच समितियाँ अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँची हैं, और जनता का अपने नेताओं पर भरोसा कमज़ोर हुआ है।
इतना ज़रूर साफ़ है — 7 अक्टूबर ने न सिर्फ़ इज़राइल की सुरक्षा भावना को झकझोरा, बल्कि उसकी खुफिया एजेंसियों की अजेयता की छवि को भी तोड़ दिया। चाहे इसे “दुर्भाग्यपूर्ण गलती” कहा जाए या “राजनीतिक खेल”, यह वह क्षण था जब सबसे आधुनिक सुरक्षा तंत्र भी अपने ही अंधे विश्वास का शिकार बन गया।
बंधक संकट और न खत्म होने वाला युद्ध
हमले के दो साल बाद भी, 7 अक्टूबर 2023 की सबसे गहरी चोटें — बंधक संकट और गाज़ा युद्ध — आज भी कायम हैं।
हालाँकि युद्धविराम के बाद लड़ाई लगभग थम चुकी है, लेकिन शारीरिक, मानसिक और राजनीतिक घाव अब भी भरे नहीं हैं।
बंधकों की कहानी: एक दर्दनाक अंत
7 अक्टूबर को हमास ने 251 लोगों का अपहरण किया — जिनमें नागरिक, सैनिक और विदेशी नागरिक शामिल थे। इन सभी की रिहाई के लिए दो साल तक लगातार बातचीत और विवाद चलता रहा।
आख़िरकार अक्टूबर 2025 की शुरुआत में, अमेरिका की मध्यस्थता से एक युद्धविराम समझौता हुआ, जिसके तहत 20 जीवित बंधकों को रिहा किया गया। समझौते में यह भी तय हुआ कि हमास कैद में मारे गए 28 लोगों के शव 72 घंटे में लौटाएगा।
लेकिन ज़मीनी हालात अलग निकले — अब तक सिर्फ़ 12 शव ही लौटाए गए हैं। हमास का कहना है कि बाकी शव मलबे में दबे हैं, जबकि इज़राइल का आरोप है कि हमास उन्हें सौदेबाज़ी के लिए रोककर रख रहा है।
इससे पहले, नवंबर 2023 में हुई अस्थायी युद्धविराम के दौरान 105 बंधकों की रिहाई हुई थी, और 2024 में भी कुछ और को छोटे समझौतों से छुड़ाया गया। हर बार यह प्रक्रिया बेहद कठिन रही — कभी कैदियों की रिहाई के बदले, तो कभी ईंधन और राहत सामग्री के बदले।
कम से कम 28 बंदी गाज़ा में मारे गए, कुछ चोटों या बीमारियों से, तो कुछ कथित तौर पर इज़राइली हवाई हमलों में। उनके परिवार अब भी जवाब चाहते हैं, जबकि मानवाधिकार संगठन स्वतंत्र जाँच की माँग कर रहे हैं।
महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार
बंधक बनाए गए लोगों में महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक पीड़ित रहे। कईयों को यौन हिंसा, भूख और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
रिहा हुई महिलाओं ने अपमान, भय और कैद की यातना की कहानियाँ बताईं। संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत प्रमिला पटन और अन्य अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं ने यह पुष्टि की कि हमले के दौरान और कैद में दोनों जगह महिलाओं के साथ यौन हिंसा हुई।
गाज़ा से लौटे बच्चों में गंभीर पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस (PTSD) के लक्षण पाए गए — कई अब भी बिना रोशनी या शोर के नहीं सो पाते, क्योंकि उन्हें दोबारा पकड़े जाने का डर रहता है। यह अनुभव अब पूरे इज़राइल के सामूहिक दर्द का हिस्सा बन गया है।
जारी बातचीत और राजनीतिक दबाव
मारे गए बंधकों के शवों की खोज अब भी जारी है और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ इस पर निगरानी रख रही हैं। हाल ही में यरूशलम की यात्रा के दौरान अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने दोनों पक्षों से युद्धविराम की शर्तों का पालन करने की अपील की और चेतावनी दी कि अगर हमास ने सहयोग नहीं किया, तो नए प्रतिबंध या सैन्य कार्रवाई संभव है।
उधर, प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर जनता का दबाव बढ़ता जा रहा है। बंधक परिवारों का आरोप है कि सरकार ने बहुत देर से कार्रवाई की, और उसका रवैया राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित था। अब संसद में माँग उठ रही है कि एक आधिकारिक जांच की जाए — ताकि यह पता चल सके कि अपहरण कैसे हुआ और सरकार ने इस संकट को सुलझाने में क्या चूक की।
इज़राइल–हमास युद्ध: नाज़ुक ज़मीन पर युद्धविराम
7 अक्टूबर के हमलों ने इज़राइल और हमास को ऐसे युद्ध में झोंक दिया जो अब दो साल से ज़्यादा समय से जारी है।
हालाँकि अक्टूबर 2025 की शुरुआत में एक युद्धविराम समझौता लागू हुआ, लेकिन हालात अब भी बेहद अस्थिर और विस्फोटक बने हुए हैं।
संघर्ष विराम
अमेरिका की मध्यस्थता में हुआ यह युद्धविराम बड़े पैमाने पर चल रही लड़ाई को रोकने में सफल रहा। इसके ज़रिए बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता का रास्ता खुला, लेकिन कुछ ही हफ्तों में यह समझौता डगमगाने लगा।
19 अक्टूबर 2025 को इज़राइल के हवाई हमलों में 26 लोग मारे गए। इज़राइली सेना (IDF) का दावा था कि हमास ने युद्धविराम की शर्तें तोड़ीं — शवों की वापसी में देरी की, और युद्धविराम के दौरान हथियार फिर से जमा करने शुरू किए।
इसके जवाब में हमास ने आरोप लगाया कि इज़राइली सैनिकों ने बफ़र ज़ोन का उल्लंघन किया और गुप्त अभियान चलाए। दोनों पक्ष अब इनकार और पलटवार की खतरनाक रस्साकशी में उलझे हैं — जिससे यह समझौता किसी भी पल टूट सकता है।
सैन्य गतिविधियाँ और क्षेत्रीय असर
इज़राइल ने गाज़ा के ज़्यादातर हिस्सों से अपनी सेना हटा ली है, लेकिन अभी भी बफ़र ज़ोन और कुछ सीमित इलाकों में मौजूद है —
जहाँ से वह सुरंगों की निगरानी और लापता लोगों की तलाश कर रहा है।
इज़राइली सेना अभी भी “शेष आतंकी गुटों” पर लक्षित हमले कर रही है। क्षेत्रीय स्तर पर, लेबनान से हिज़्बुल्ला के हमले और ईरानी समर्थित ड्रोन हमले बढ़े हैं, हालाँकि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की वजह से पूरा उत्तर मोर्चा अभी तक बड़े युद्ध में नहीं बदला है।
खुफिया विशेषज्ञों की चेतावनी है कि अगर किसी भी पक्ष ने युद्धविराम की रूपरेखा तोड़ी, तो स्थिति बहुत तेज़ी से नियंत्रण से बाहर जा सकती है।
मानवीय तबाही
गाज़ा में मानवीय हालात अब भी विनाशकारी हैं। इलाके की 70% से ज़्यादा बुनियादी संरचना तबाह हो चुकी है और भुखमरी का संकट गहराता जा रहा है — भले ही राहत सामग्री की आपूर्ति फिर शुरू हुई हो।
करीब 20 लाख लोग अब भी बेघर हैं, जो अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं — जहाँ खाने, दवा और बिजली की गंभीर कमी है।
दुनिया भर से दोनों पक्षों पर दबाव बढ़ता जा रहा है, हालाँकि गाज़ा में जनमत बदल रहा है — हाल के सर्वे बताते हैं कि हमास के प्रति समर्थन तेज़ी से गिरा है और आम जनता थकान व नेतृत्व से नाराज़गी महसूस कर रही है।
राजनीतिक मोड़ — जब सत्ता और जनभावना आमने-सामने आई
इज़राइल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए यह अब तक की सबसे कठिन परीक्षा बन चुकी है। 7 अक्टूबर की असफलताओं, आर्थिक दबाव और नैतिक थकान ने उनकी लोकप्रियता को बुरी तरह गिरा दिया है।
वहीं दूसरी ओर, हमास का नेतृत्व बिखर चुका है — इसके प्रमुख याह्या सिनवार की मौत की अपुष्ट खबरों के बीच संगठन में
अंदरूनी खींचतान और पुनर्निर्माण फंड को लेकर टकराव चल रहा है।
अमेरिका ने अब एक नया प्रस्ताव रखा है — “War of Redemption Framework” —जिसका उद्देश्य गाज़ा को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में स्थिर करनाऔर साथ ही क्षेत्रीय सामान्यीकरण वार्ता को आगे बढ़ाना है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच अविश्वास इतना गहरा है कि वास्तविक सुलह की संभावना बहुत कम दिखती है।
अधूरा युद्ध — जब बंदूकें थमीं, पर संघर्ष ज़िंदा रहा
भले ही बंदूकें अब खामोश हैं, लेकिन इस युद्ध की परछाईं अभी भी बनी हुई है। बंधक संकट, न लौटाए गए शव और गाज़ा का मलबा —
ये सब अब उस संघर्ष के प्रतीक बन चुके हैं जो मैदान से ज़्यादा स्मृति और राजनीति में लड़ा जा रहा है।
युद्धविराम ने हत्या को रोका है, लेकिन संघर्ष को नहीं। इस नाज़ुक शांति के नीचे एक सच्चाई दोनों पक्ष जानते हैं — शांति भी, क़ैद की तरह, किसी भी पल टूट सकती है।
