बागेश्वर बाबा

तीर्थ की ज्योति: बागेश्वर बाबा और भारत का आध्यात्मिक जागरण

छतरपुर की संकरी गलियों से लेकर लाखों श्रद्धालुओं से भरे विशाल मंचों तक — यह यात्रा किसी दिव्य नियति जैसी लगती है, जो कभी मंदिर में शांत भाव से सेवा करते थे, आज उनकी आवाज़ पूरे भारत में गूँजती है — लोगों के मनों में विश्वास जगाती, दुख हरती और हृदयों को जोड़ती हुई। लोग उन्हें बागेश्वर बाबा कहते हैं — वह संत जिन्होंने भक्ति को जन-जन तक पहुँचा दिया।

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें बागेश्वर बाबा या बागेश्वर धाम सरकार के नाम से जाना जाता है, 21वीं सदी के भारत के सबसे प्रसिद्ध और चर्चित आध्यात्मिक व्यक्तित्वों में से एक हैं। मध्य प्रदेश के एक साधारण ग्रामीण परिवेश से उठकर उन्होंने अपनी राम कथा, दिव्य दरबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से करोड़ों लोगों तक पहुँच बनाई।

लाखों भक्तों के लिए वे दिव्य शक्ति और आधुनिक भारत में आस्था की निरंतरता के प्रतीक हैं, जबकि आलोचकों के लिए वे आध्यात्मिकता और तर्कवाद के बीच चल रहे संघर्ष का चेहरा।

प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक नींव (1996–2010)

धीरेंद्र कृष्ण गर्ग का जन्म 4 जुलाई 1996 को गड़ा गाँव, ज़िला छतरपुर (मध्य प्रदेश) में एक साधारण सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता रामकृपाल गर्ग किसान थे और माँ सरोज गर्ग घर संभालती थीं।

परिवार की आध्यात्मिक परंपरा उनके दादा भगवानदास गर्ग (जिन्हें स्नेह से संन्यासी बाबा कहा जाता था) से जुड़ी थी, जो बागेश्वर धाम मंदिर में भगवान हनुमान (बालाजी सरकार) के पुजारी थे।

सीधे-सादे जीवन और सीमित साधनों के बीच बड़े होते हुए, छोटे धीरेंद्र का संसार मंदिर की आरती, कथा-पाठ और रामायण-महाभारत की कहानियों में रमा रहता था। कहा जाता है कि बचपन से ही उन्हें पूजा-पाठ में गहरी रुचि थी और वे दादा की पूजा में सहायता करते थे।
शास्त्री के अनुसार, बचपन में ही उन्हें भगवान हनुमान के दिव्य दर्शन होने लगे, जिसने उनके जीवन का मार्ग तय कर दिया।

उन्होंने गाँव के विद्यालय में आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने औपचारिक पढ़ाई छोड़कर धार्मिक अध्ययन और मंदिर सेवा को जीवन का लक्ष्य बना लिया। किशोरावस्था में ही उन्होंने छोटी धार्मिक कथाएँ सुनाना आरंभ कर दिया, जिससे वे स्थानीय स्तर पर पहचाने जाने लगे।

धार्मिक वक्ता और मंदिर नेतृत्व की ओर उदय (2010–2016)

सन् 2010 के आसपास जब उनके दादा का देहांत हुआ, तब मात्र 14 वर्ष की आयु में धीरेंद्र ने बागेश्वर धाम की ज़िम्मेदारी संभाली और उसके पीठाधीश्वर बन गए। कम उम्र के बावजूद उनमें अद्भुत वक्तृत्व, आत्मविश्वास और जनता से जुड़ने की क्षमता थी।

उनकी शुरुआती राम कथाएँ — जिनमें वे भक्ति, नीति और दैवी न्याय पर बल देते थे — आसपास के गाँवों में तेजी से लोकप्रिय होने लगीं।
इसी दौर में उन्होंने दिव्य दरबार की परंपरा शुरू की — ऐसे सार्वजनिक आयोजन जहाँ भक्त अपनी समस्याओं के समाधान और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए आते थे। कहा जाता है कि इन दरबारों में वे भगवान हनुमान की प्रेरणा से लोगों के जीवन की बातें पहले से ही लिख देते थे। यह अनोखी शैली ही आगे चलकर उनकी पहचान और लोकप्रियता का केंद्र बनी।

स्थानीय लोगों के अनुसार, 2015–2016 के दौरान उन्होंने लगभग एक वर्ष तक सार्वजनिक जीवन से दूरी बनाई और गहन साधना में समय बिताया। जब वे लौटे, तो उनमें पहले से अधिक आत्मविश्वास और आध्यात्मिक आभा थी, जिसने शीघ्र ही नए भक्तों, राजनेताओं और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया।

राष्ट्रीय पहचान और डिजिटल युग में उदय (2017–2022)

सोशल मीडिया का दौर उनके जीवन में निर्णायक मोड़ साबित हुआ। दिव्य दरबार और राम कथा के छोटे-छोटे वीडियो क्लिप्स जब YouTube, Facebook और Instagram पर फैलने लगे, तो वे रातों-रात एक राष्ट्रीय चेहरा बन गए।

2018 से 2020 के बीच, बागेश्वर धाम मंदिर एक साधारण गाँव के मंदिर से एक प्रमुख तीर्थस्थल में बदल गया।
देशभर से हज़ारों श्रद्धालु उनकी कथाओं में शामिल होने और अपनी समस्याओं का समाधान पाने आने लगे।
मंदिर परिसर का विस्तार हुआ, नए हॉल, अतिथि गृह और सभा स्थलों का निर्माण हुआ — सब भक्तों के स्वैच्छिक दान से।

उनका संदेश — हनुमान भक्ति, नैतिक आचरण और राष्ट्रप्रेम — भारत के ग्रामीण समाज में गहराई से गूँज उठा।
कोविड-19 महामारी के दौरान जब सब कुछ ठहर गया था, तब उन्होंने अपनी कथाएँ ऑनलाइन प्रसारित करनी शुरू कीं, जिससे लाखों लोग वर्चुअल माध्यम से जुड़ गए।

विवाद और महाराष्ट्र चुनौती (2023)

2023 की शुरुआत में उनकी लोकप्रियता के साथ विवाद भी उभरे।महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (ANS) — जो अंधविश्वास के खिलाफ काम करती है — ने उन्हें नागपुर में अपने “दिव्य चमत्कार” सार्वजनिक रूप से सिद्ध करने की चुनौती दी।

शास्त्री ने पहले सहमति जताई, पर बाद में सुरक्षा कारणों और राजनीतिक साज़िशों का हवाला देकर कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए।
आलोचकों ने इसे टालमटोल कहा, जबकि समर्थकों का मत था कि आध्यात्मिक अनुभवों को प्रयोगशाला में नहीं आँका जा सकता।
यह विवाद कई हफ्तों तक देशभर की सुर्खियों में रहा और विडंबना यह रही कि इससे उनकी प्रसिद्धि और बढ़ गई।

तर्कवादी समूहों ने उन्हें लोकभावनाओं का उपयोग करने वाला प्रदर्शनकारी कहा, वहीं भक्तों के लिए वे विश्वास पर चोट झेलने वाले आधुनिक संत बन गए।

विस्तार, प्रभाव और हिंदू एकता अभियान (2024–2025)

विवादों के बावजूद, बागेश्वर बाबा का प्रभाव लगातार बढ़ता गया। उनकी राम कथाएँ और दिव्य दरबार अब मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तक फैल चुके हैं। 2024–2025 में उन्होंने “सनातन हिंदू एकता पदयात्रा” शुरू की — एक धार्मिक-सामाजिक अभियान, जिसका उद्देश्य हिंदू एकता और धर्मांतरण के विरोध को लेकर जनजागरण करना था।

उनके कार्यक्रमों में अब न सिर्फ आम लोग, बल्कि शिखर धवन, द ग्रेट खली जैसे सेलिब्रिटी और मनोहर लाल खट्टर जैसे नेता भी शामिल होने लगे। इससे उनकी पहुँच धार्मिक मंचों से आगे बढ़कर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों तक फैल गई।

आर्थिक रूप से, यद्यपि उनकी व्यक्तिगत आय का अनुमान लगभग ₹19–25 लाख वार्षिक बताया जाता है, लेकिन मंदिर और ट्रस्ट को मिलने वाले दान में भारी वृद्धि हुई है। इनसे भोजन वितरण, शिक्षा सहायता और क्षेत्रीय विकास जैसे कई कार्य संचालित किए जा रहे हैं।

विश्लेषण: बागेश्वर बाबा का घटनाक्रम

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का उदय 21वीं सदी के भारत में आस्था, डिजिटल संस्कृति और जनभावनाओं के अनोखे संगम को दर्शाता है। उनकी लोकप्रियता इस बात में निहित है कि वे कठिन आध्यात्मिक विचारों को सरल और भावनात्मक भाषा में प्रस्तुत करते हैं, जो आम जनमानस से सीधा जुड़ाव बनाती है।

भक्तों के लिए वे भगवान हनुमान के जीवंत माध्यम हैं — जो उनके दुख-दर्द समझते हैं और उन्हें दैवी न्याय का भरोसा देते हैं। उनकी अपील हर वर्ग में फैली है — ग्रामीण बुज़ुर्गों से लेकर युवाओं तक, जो उनके करिश्माई व्यक्तित्व और आधुनिक प्रस्तुतिकरण से प्रभावित हैं।

हालांकि, उनकी विधियों और दावों को लेकर आलोचना भी उतनी ही तीव्र है। तर्कवादी संगठन उन्हें अंधविश्वास फैलाने वाला व्यक्ति बताते हैं, जबकि कुछ पर्यवेक्षक धर्म और राजनीति के मेल को लेकर चिंता जताते हैं। समर्थक कहते हैं कि वे भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक गौरव को फिर से जीवित कर रहे हैं — ऐसे समय में जब समाज भौतिकता और नैतिक पतन से जूझ रहा है।

समाजशास्त्रीय दृष्टि से, बागेश्वर बाबा एक डिजिटल युग के संत हैं — जो परंपरा को तकनीक के साथ जोड़ते हैं, जहाँ चमत्कार लाइव प्रसारित होते हैं और आस्था एल्गोरिद्म से फैलती है। उनकी यात्रा केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि उस सामूहिक खोज का प्रतीक है जो लोग आज भी पहचान, विश्वास और दैवी जुड़ाव के रूप में करते हैं।

गाँव के एक छोटे मंदिर में दीप जलाने वाले बालक से लेकर देशभर में करोड़ों अनुयायियों वाले धार्मिक प्रतीक तक, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की कहानी बताती है कि आस्था की शक्ति आज भी जीवित है। चाहे उन्हें संत कहा जाए, प्रदर्शनकारी या नव-धार्मिक प्रतीक, उनका प्रभाव असंदिग्ध है।

डिजिटल शोर और वैचारिक विभाजन के इस युग में, बागेश्वर बाबा का उदय हमें एक गहरी सच्चाई याद दिलाता है — भारतीय समाज की आस्था यात्रा अब भी जारी है, बस उसके स्वरूप और माध्यम बदल गए हैं, पर उसकी जड़ें अब भी भक्ति, पहचान और आशा में गहराई से बसी हैं।

दिव्य कृपा और चमत्कारी अनुभव: बागेश्वर बाबा (धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री)

लाखों लोगों द्वारा भगवान हनुमान की जीवित कृपा-प्रेरणा माने जाने वाले बागेश्वर बाबा (धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री) आज के भारत में आस्था, आशा और दिव्य हस्तक्षेप के प्रतीक बन चुके हैं। मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित पवित्र बागेश्वर धाम को केंद्र बनाकर उनका आध्यात्मिक कार्य प्राचीन भक्ति और आधुनिक पहुँच का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है — जो पीड़ा, निराशा या अनसुनी प्रार्थनाओं से जूझते लोगों को सांत्वना देता है।

भारत और विदेशों में फैले असंख्य भक्तों के लिए शास्त्री केवल कथावाचक या पुजारी नहीं हैं, बल्कि वह दैवी माध्यम हैं जिनके ज़रिए “बालाजी सरकार” (भगवान हनुमान) स्वयं संवाद करते हैं, उपचार करते हैं और जीवन का मार्ग दिखाते हैं। उनके दिव्य दरबार आज ऐसे पवित्र स्थल बन चुके हैं जहाँ श्रद्धा और चमत्कार एक साथ अनुभव किए जाते हैं। कई लोग बताते हैं कि उन्होंने वहाँ ऐसे दिव्य अनुभव देखे हैं जिन्हें सामान्य तर्क से समझाना कठिन है।

बागेश्वर धाम में दिव्य हस्तक्षेप की अवधारणा

बागेश्वर बाबा हमेशा यह कहते हैं कि उनके धाम में घटने वाली असाधारण घटनाएँ उनकी नहीं, बल्कि भगवान हनुमान की इच्छा हैं।
उनके अपने शब्दों में —

“मैं कुछ नहीं करता, यह सब बालाजी सरकार करते हैं। मैं तो बस एक माध्यम हूँ।”

यह विनम्रता ही उनके पूरे दर्शन की नींव है — कि मानव की पीड़ा मनुष्य नहीं, ईश्वर ही दूर करता है, और यह तभी संभव है जब व्यक्ति स्वयं को पूर्ण रूप से दिव्य चरणों में समर्पित कर दे। उनके दिव्य दरबार इसी भावना का जीवंत रूप हैं। देशभर से हज़ारों लोग, कभी-कभी कई दिनों की यात्रा कर, अपनी “अर्ज़ियाँ” लेकर पहुँचते हैं — जिनमें उनके दुख, बीमारी, पारिवारिक झगड़े, कर्ज या मानसिक पीड़ा का उल्लेख होता है।

बाबा शांति से बैठते हैं और कहते हैं कि भगवान की कृपा से उन्हें लोगों की समस्याएँ पहले से ही ज्ञात हो जाती हैं। वे अक्सर भक्तों की बातें बोले बिना ही लिख देते हैं — और भक्तों के लिए यह कोई जादू नहीं, बल्कि हनुमान जी की सर्वज्ञता का प्रमाण है।

दिव्य कृपा के प्रकट रूप: बताए गए चमत्कार

समय के साथ कई ऐसी घटनाएँ जुड़ी हैं जो बागेश्वर बाबा की आध्यात्मिक यात्रा को परिभाषित करती हैं — जहाँ आस्था और करुणा, दोनों का मेल दिखाई देता है।

1. मन पढ़ना और छिपे दुख उजागर करना

कहा जाता है कि दिव्य दरबारों में बाबा भक्तों की समस्याएँ बिना पूछे जान लेते हैं — चाहे वह बीमारी हो, आर्थिक परेशानी हो या मन की उलझन। वे समाधान बताते हैं — जैसे विशिष्ट मंत्रजप, हनुमान मंदिर में आराधना या पवित्र ताबीज धारण करना

भक्तों के लिए यह प्रमाण है कि ईश्वर हर पीड़ा देखता है और भक्त की भक्ति उसे बुलाती है। वे इसे “भक्ति का बल” कहते हैं — वह शक्ति जिसके माध्यम से दिव्यता मानव सीमाओं को पार कर जाती है।

2. रोगों का उपचार और निराशा से उबरना

देशभर से हज़ारों लोगों के अनुभवों में ऐसे प्रसंग मिलते हैं जहाँ गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोग बाबा के आशीर्वाद से ठीक हुए बताते हैं।कैंसर, लकवा, बाँझपन, अवसाद — इन सबमें सुधार के अनेक दावे भक्तों द्वारा किए जाते हैं।

उदाहरणस्वरूप —

  • मध्य प्रदेश की एक महिला, जो लकवे से ग्रस्त थीं, ने दिव्य दरबार में प्रसाद पाने के बाद स्वस्थ होने का दावा किया।

  • उत्तर प्रदेश के एक कैंसर पीड़ित ने कहा कि लगातार हनुमान पूजा से उसकी बीमारी में सुधार हुआ।

  • अनेक परिवार जिन्होंने मानसिक तनाव या नशे की समस्या झेली, उन्होंने शांति और सुधार का अनुभव बताया।

वैज्ञानिक प्रमाण भले न हों, पर ये कथाएँ आज लोकविश्वास का हिस्सा बन चुकी हैं — और करोड़ों भक्तों के विश्वास को और मजबूत करती हैं कि बालाजी की कृपा बाबा के माध्यम से प्रवाहित होती है।

3. समृद्धि, पारिवारिक सुख और शांति के वरदान

भक्तों का विश्वास है कि बाबा की कृपा न केवल स्वास्थ्य देती है, बल्कि सौभाग्य और एकता भी लाती है। व्यापारी अचानक लाभ की बात करते हैं, बेरोज़गार युवाओं को अप्रत्याशित नौकरी मिलने की कथा बताते हैं, और टूटे हुए परिवार फिर से एकजुट हो जाते हैं।

हर अनुभव का एक ही निष्कर्ष है — भक्ति ने केवल जीवन नहीं, मन की शांति भी लौटाई। बाबा सिखाते हैं कि सच्ची समृद्धि वही है जो धर्म, अनुशासन और भक्ति के साथ जुड़ी हो।

4. टूटी ज़िंदगियों में फिर से आशा जगाना

कई लोग चमत्कार देखने नहीं, बल्कि जीवन में अर्थ खोजने बागेश्वर धाम पहुँचते हैं। बाबा की राम कथा — विशेष रूप से रामचरितमानस पर आधारित प्रवचन — लोगों को साहस, नैतिकता और ईश्वर पर विश्वास के साथ जीवन का सामना करना सिखाते हैं।

वे अक्सर कहते हैं —

“जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं, तब बालाजी का रास्ता खुलता है।”

उनके दरबारों का समापन “जय श्री राम” और “जय हनुमान” के सामूहिक उद्घोष से होता है, जो वातावरण को भक्ति और उत्साह से भर देता है।

दिव्य अनुभव: श्रद्धालुओं द्वारा बताई गई घटनाएँ

वर्षों में कई ऐसी घटनाएँ प्रचलित हुई हैं जिन्हें भक्त बालाजी की कृपा के साक्ष्य मानते हैं —

  • बालक का उपचार (2022): राजस्थान का एक बच्चा, जो दुर्लभ तंत्रिका रोग से पीड़ित था, हनुमान चालीसा के नियमित पाठ और बाबा के आशीर्वाद के बाद चलने लगा।

  • किसान का चमत्कार: बुंदेलखंड के एक किसान ने बताया कि बाबा के बताए विधि-विधान करने के बाद उसकी सूखी ज़मीन पर वर्षा हुई।

  • नशे से मुक्ति: कई प्रवचनों में लोग गवाही देते हैं कि बाबा की प्रेरणा से उन्होंने शराब और नशे की लत छोड़ दी।

  • पारिवारिक मेल-मिलाप: अनेक परिवार बताते हैं कि वर्षों पुराने संपत्ति विवाद या रिश्तों की कड़वाहट बाबा के दरबार में समाप्त हो गई।

चाहे इन्हें चमत्कार कहा जाए या संयोग, इन घटनाओं ने असंख्य लोगों में विश्वास और मानसिक शांति की भावना को गहराई दी है।
इसी कारण बागेश्वर धाम आज आध्यात्मिक सांत्वना का केंद्र बन गया है।

चमत्कारों के पीछे का आध्यात्मिक अर्थ

भक्तों के लिए ये घटनाएँ दृश्य तमाशे नहीं, बल्कि हनुमान जी की कृपा के जीवंत प्रतीक हैं। उनका मानना है कि सच्ची भक्ति ही वह सेतु है जिससे दिव्यता सक्रिय होती है — कि हनुमान जी सच्चे मन से पुकारने वालों की सुनते हैं, और बाबा उनके माध्यम बनकर आशीर्वाद देते हैं। हर दिव्य दरबार यह स्मरण कराता है कि ईश्वर दूर नहीं है; वह सच्ची श्रद्धा से पुकारने पर स्वयं उत्तर देता है।

बाबा बार-बार अपने श्रोताओं को याद दिलाते हैं —

“बालाजी दया करते हैं उन पर जो अपनी शक्ति पर नहीं, प्रभु की कृपा पर भरोसा करते हैं।”

इस शिक्षा के माध्यम से धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री चमत्कारों को आत्मसमर्पण, विनम्रता और अडिग आस्था का संदेश बना देते हैं —
यह बताते हुए कि सच्चा चमत्कार वही है, जहाँ मनुष्य अपनी सीमाएँ छोड़कर भगवान की शक्ति में विश्वास करना सीखता है।

तर्क से परे आस्था — जब भक्ति बनती है उपचार

आलोचकों का कहना है कि बागेश्वर बाबा की शक्तियाँ विज्ञान की सीमाओं से परे हैं। पर उनके भक्तों का उत्तर सदा एक ही रहता है — “श्रद्धा तर्क से नहीं, अनुभव से समझी जाती है।” उनके लिए बाबा के दरबार कोई प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उपचार स्थल हैं — जहाँ समर्पण, प्रार्थना और सामूहिक भक्ति मिलकर ऐसी ऊर्जा और सकारात्मकता पैदा करती हैं, जो थके हुए मन को नई शक्ति देती है।

हर सप्ताह बागेश्वर धाम में उमड़ने वाली भीड़ एक जैसी अनुभूति का वर्णन करती है — “आँसू बन जाते हैं राहत, भय बदल जाता है विश्वास में, और निराशा रूपांतरित हो जाती है शांति में।” उनकी दृष्टि में वास्तविक चमत्कार कोई अलौकिक घटना नहीं, बल्कि मानव हृदय का परिवर्तन है — जब मनुष्य दर्द से नहीं, प्रभु-स्मरण से जुड़ता है।

सार — आस्था की शक्ति और करुणा की विरासत

चाहे कोई इन घटनाओं को चमत्कार माने, संयोग या श्रद्धा की परिणति — बागेश्वर बाबा का कार्य आज उस पीढ़ी में भक्ति को फिर से जीवित कर रहा है जो अर्थ की तलाश में भटक रही थी। उनके दिव्य दरबारों और कथाओं ने साधारण लोगों को न केवल एक आध्यात्मिक मार्ग दिया, बल्कि उन्हें अपने भीतर की शक्ति और हनुमान की जीवंत उपस्थिति का अनुभव कराया।

रोगियों को स्वास्थ्य मिला, बिखरे परिवार एक हुए, और जो जीवन की दिशा खो चुके थे, उन्हें राह मिली। उनकी विरासत किसी प्रदर्शन में नहीं, बल्कि श्रद्धा के माध्यम से सेवा में निहित है।भक्तों के शब्दों में — “बालाजी के इस युग में बाबा उनके जीवित प्रतिनिधि हैं।”

अपने वचनों, प्रार्थनाओं और करुणा के माध्यम से, बागेश्वर बाबा मानवता और दैवत्व के बीच सेतु बन गए हैं। उन्होंने यह प्रमाणित किया है कि आधुनिक युग की शंका, विभाजन और निराशा के बीच भी — भक्ति अब भी उपचार करती है, आशा अब भी जन्म लेती है, और हनुमान का हाथ अब भी रक्षण करता है।

हिंदू एकता — जागरण और समरसता का अभियान

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के सार्वजनिक जीवन का सबसे प्रमुख उद्देश्य रहा है — “हिंदू एकता”, अर्थात् समाज, क्षेत्र और भाषा की सीमाओं से परे सनातन धर्म का सामूहिक जागरण। अपनी कथाओं, यात्राओं और मंदिर आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होंने स्वयं को केवल कथा-वाचक या पुरोहित नहीं, बल्कि संस्कृतिक एकता के संवाहक के रूप में प्रस्तुत किया है।

उनका संदेश सरल है —

“हिंदू धर्म का सबसे बड़ा संकट बाहर नहीं, भीतर की दूरी और भेदभाव में है।”

सनातन हिंदू एकता पदयात्रा (2024–2025) — एकात्मता की यात्रा

नवंबर 2024 में, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने “सनातन हिंदू एकता पदयात्रा” प्रारंभ की — यह यात्रा दिल्ली से वृंदावन तक लगभग 160 किलोमीटर लंबी रही। 7 नवंबर 2024 से शुरू होकर यह फरीदाबाद, पलवल और मथुरा जैसे प्रमुख नगरों से गुज़री।
इस यात्रा में “एक भारत, एक सनातन” के नारे तले लाखों लोग जुड़े — किसी राजनीतिक आंदोलन की तरह नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण के रूप में।

शास्त्री ने बार-बार कहा कि इस यात्रा का उद्देश्य “डर या विभाजन नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और आध्यात्मिक एकता जगाना” था।
उन्होंने जाति और वर्ग के भेद मिटाने का आह्वान किया और कहा कि सच्ची पहचान भक्ति, सेवा और राष्ट्रभक्ति में है। यात्रा के दौरान भजन, सामूहिक हनुमान चालीसा, और “वंदे मातरम्” के जयघोष धार्मिक अभिव्यक्ति को देशभक्ति के भाव से जोड़ते गए।

यात्रा के अंत में वृंदावन में एक विशाल सामूहिक प्रार्थना हुई, जहाँ उन्होंने कहा —

“हिंदू एकता कोई राजनीति नहीं, यह हमारी सभ्यता की आवश्यकता है।”

सनातन पदयात्रा 2.0 (2025) — एकता का विस्तार

पहली यात्रा की सफलता के बाद, मध्य 2025 में उन्होंने “सनातन पदयात्रा 2.0” आरंभ की। इस चरण में उन्होंने विशेष रूप से धर्मांतरण के विरोध, सनातन मूल्यों के प्रसार और आदिवासी समाज के मुख्यधारा में पुनर्संलयन पर ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने मंदिरों और समाज में “वंदे मातरम्” के सामूहिक गायन की परंपरा शुरू करने का आह्वान किया — यह किसी धर्म की परीक्षा नहीं, बल्कि राष्ट्रप्रेम की पहचान के रूप में देखा गया। यात्रा के मार्ग में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई क्षेत्र शामिल थे, जहाँ उनके प्रवचनों में भक्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संगम दिखा।

उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समुदायों को सनातन धर्म की संतानों के रूप में देखा जाना चाहिए, अलग धार्मिक वर्ग के रूप में नहीं।
उनका उद्देश्य, उनके शब्दों में —

“विभाजन नहीं, समावेश — यही सनातन का मर्म है।”

कृष्ण जन्मभूमि संकल्प और हिंदू राष्ट्र की दृष्टि

इन यात्राओं के दौरान शास्त्री ने हिंदू एकता को पवित्र स्थलों की पुनर्स्थापना और संस्कृतिक संरक्षण से भी जोड़ा। उनकी सबसे चर्चित घोषणा थी — मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प। उन्होंने इसे राजनीतिक नहीं, बल्कि “सभ्यता का धर्म” बताया।

हालांकि, इस विचार ने न्यायपालिका और राजनीति के क्षेत्र में बहस को जन्म दिया। शास्त्री ने कहा —

“हिंदू राष्ट्र का अर्थ किसी का विरोध नहीं,
बल्कि एक ऐसा राष्ट्र जहाँ धर्म, संस्कृति और नैतिकता का सम्मान हो।”

उनका मत था कि हिंदू राष्ट्र कोई सत्ता की परिभाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता की परिकल्पना है।

सामाजिक सेवा — भक्ति को कर्म में बदलने की पहल

अपनी यात्राओं के समानांतर, शास्त्री ने बागेश्वर धाम ट्रस्ट के माध्यम से कई जनकल्याणकारी कार्य भी आरंभ किए। इनमें शामिल हैं —

  • गरीब परिवारों के लिए सामूहिक विवाह आयोजन, जिससे दहेज बोझ और जातिगत भेद घटे।

  • निःशुल्क चिकित्सा शिविर, जो ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में उपचार पहुँचाते हैं।

  • युवाओं के लिए नैतिक और धार्मिक शिक्षा कार्यक्रम, जो आत्मनिर्भरता और अनुशासन सिखाते हैं।

  • कथाओं में भेदभाव-मुक्त भागीदारी का संदेश, जहाँ सभी जातियों को पूजा और सेवा में समान रूप से आमंत्रित किया जाता है।

इन कार्यों ने उन्हें भक्तों की दृष्टि में “कर्मयोगी संत” के रूप में स्थापित किया — जो केवल प्रवचन नहीं करते, बल्कि समाज को सुधारने का प्रयास भी करते हैं।

प्रभाव और बहस — श्रद्धा और विमर्श के बीच

इन पदयात्राओं ने उत्तर और मध्य भारत में हिंदू पुनर्जागरण की लहर पैदा की। जहाँ समर्थक इसे संस्कृतिक पुनर्जागरण मानते हैं,
वहीं आलोचक इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दिशा में एक कदम बताते हैं। फिर भी, बागेश्वर बाबा के प्रयासों ने यह स्पष्ट किया है कि
आधुनिक भारत में धार्मिक नेतृत्व का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि पहचान, नैतिकता और एकता का पुनर्निर्माण भी है। उन्होंने भक्ति को मंदिर की दीवारों से निकालकर एक सामाजिक और राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दे दिया है।

उनकी दृष्टि में हिंदू एकता कोई नारा नहीं, बल्कि आत्मबोध की यात्रा है — एक ऐसी यात्रा जो हर व्यक्ति को अपने भीतर के धर्म और देशभक्ति से जोड़ती है।

निष्कर्ष: आस्था, राष्ट्र और मानवता को समर्पित जीवन

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें देशभर में बागेश्वर बाबा के नाम से जाना जाता है, आज केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व नहीं बल्कि विश्वास, एकता और आशा का प्रतीक बन चुके हैं। उनके लिए आध्यात्म केवल पूजा-पाठ या अनुष्ठान तक सीमित नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्ग है जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ते हुए समाज और राष्ट्र की सेवा की प्रेरणा देता है।

शास्त्री का संदेश सीधा और सशक्त है —

“धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर कर्म में होना चाहिए।”

उन्होंने सोना या सत्ता नहीं, बल्कि विश्वास का एक मंदिर बनाया — जहाँ हर कथा, हर दरबार, हर आशीर्वाद एक ही संदेश देता है —

“सनातन धर्म कोई पुरानी परंपरा नहीं,
बल्कि आज के युग की भी जीवित शक्ति है।”

उनके लिए धर्म शक्ति नहीं, कर्तव्य था — और हिंदू एकता का अर्थ था समानता और सद्भावना। उन्होंने दिखाया कि सच्चा धर्म भागने का नहीं, बनाने का मार्ग है।

बागेश्वर धाम के माध्यम से उन्होंने भक्ति को सेवा का रूप दिया — बीमारों की मदद, गरीबों का विवाह, भटके लोगों को दिशा देना। उनके दरबार आशा के मंदिर बन गए, जहाँ पीड़ा प्रार्थना में बदल जाती है।

वे कहते हैं —

“मैं कुछ नहीं करता, सब बालाजी सरकार करते हैं।”

यह वाक्य केवल विनम्रता नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।

आज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सनातन चेतना के पुनर्जागरण का प्रतीक हैं — यह विश्वास कि आधुनिक युग में भी भक्ति की ज्योति बुझी नहीं  और हनुमान जी की कृपा अब भी जीवित है।

गाँव की शांत दीयों से लेकर लाखों भक्तों की गर्जना तक, बागेश्वर बाबा की भक्ति की यह ज्योति आज भी जल रही है — एक ऐसी अनंत लौ, जो राष्ट्र, धर्म और आत्मा — तीनों को दिशा देती है।

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