मणिपुर में अशांति: विदेशी मिशनरियों का षड्यंत्र और कांग्रेस की मोदी पर दबाव की राजनीति

मणिपुर में अशांति: विदेशी मिशनरियों का षड्यंत्र और कांग्रेस की मोदी पर दबाव की राजनीति

मणिपुर में जारी जातीय तनाव और हिंसा ने देश का ध्यान खींचा है, और अब यह मुद्दा केवल राज्य के अंदर तक सीमित नहीं रह गया है।

विदेशी ताकतें और पश्चिमी एनजीओ, विशेषकर अमेरिकी बैपटिस्ट चर्च से जुड़े संगठन, मणिपुर की जातीय दरारों को और गहरा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े किए हैं, खासकर उस भूमिका को लेकर जो पश्चिमी मिशनरियां और विदेशी प्रचारक इस संवेदनशील स्थिति में निभा रहे हैं।

मणिपुर की जातीय स्थिति का संक्षिप्त परिचय:

मणिपुर एक ऐसा राज्य है जो विभिन्न जातीय समूहों से भरा हुआ है, जिनमें प्रमुख हैं मैतेई और कुकी। मैतेई समुदाय ज्यादातर हिंदू धर्म का पालन करता है और मणिपुर की घाटी में बसता है, जबकि कुकी समुदाय मुख्यतः ईसाई धर्म को मानता है और राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहता है। वर्षों से, इन दोनों समुदायों के बीच आपसी विवाद रहे हैं, लेकिन हालिया हिंसा ने इन संबंधों को और भी खराब कर दिया है।

विदेशी ताकतों की भूमिका:

Sputnik India की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी बैपटिस्ट चर्च द्वारा समर्थित पश्चिमी मिशनरियां मणिपुर में जातीय तनाव को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मिशनरियों ने मणिपुर की जातीय दरारों का फायदा उठाकर लोगों को भड़काने का प्रयास किया है।

विशेष रूप से, डैनियल स्टीफ़न कॉरनी नामक एक अमेरिकी “सड़क उपदेशक” का नाम सामने आया है, जिसे भारत सरकार ने काली सूची में डाला हुआ है। उसे 2017 में भारत से निर्वासित कर दिया गया था क्योंकि उसने पर्यटक वीज़ा का उल्लंघन करते हुए धार्मिक गतिविधियों में भाग लिया था। लेकिन इसके बावजूद, पिछले अगस्त में वह भारत में घुसने में कामयाब रहा और मणिपुर के कुकी शरणार्थी शिविर में जाकर भड़काऊ भाषण दिए।

कॉरनी का भड़काऊ भाषण:

कॉरनी ने अपने भाषण में कुकी लोगों को भारत सरकार और मैतेई हिंदुओं के खिलाफ उकसाया। उसने उन्हें “दुश्मन” कहकर संबोधित किया, जिससे समुदायों के बीच पहले से मौजूद तनाव और भी बढ़ गया। कॉरनी के इस भाषण के कुछ ही हफ्ते बाद मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क उठी, जो कि आज भी रुकने का नाम नहीं ले रही है। यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्यों विदेशी ताकतें इस हिंसा में इतनी रुचि ले रही हैं और मणिपुर के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं।

पश्चिमी मिशनरियों की मंशा:

यह कोई नई बात नहीं है कि पश्चिमी मिशनरियां और एनजीओ लंबे समय से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। उनकी मंशा वहां की गरीब और हाशिए पर खड़ी जनसंख्या की मदद करना होती है, लेकिन इसके साथ-साथ वे धार्मिक रूपांतरण और ईसाई धर्म का प्रचार करने में भी सक्रिय रहते हैं। मणिपुर जैसी संवेदनशील जगहों पर ये गतिविधियाँ वहां की सामाजिक स्थिति को और जटिल बना देती हैं। कुकी समुदाय में पहले से ही ईसाई धर्म का बड़ा प्रभाव है, और ऐसे में मिशनरियों का हस्तक्षेप इस प्रभाव को और भी मजबूत करता है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया:

भारत सरकार पहले भी ऐसे कई मामलों में सख्त रही है, खासकर जब बात विदेशी प्रचारकों और मिशनरियों की गतिविधियों की हो। डैनियल स्टीफ़न कॉरनी जैसे प्रचारकों को पहले भी भारत से निष्कासित किया जा चुका है, और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है। इसके बावजूद, यह चिंताजनक है कि ऐसे व्यक्तियों को देश में प्रवेश करने का मौका मिल जाता है और वे इस तरह के भड़काऊ कार्यों को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं।

राजनीतिक पहलू:

मणिपुर की इस जटिल स्थिति को लेकर कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी ने लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए हैं। राहुल गांधी का कहना है कि प्रधानमंत्री को मणिपुर जाकर स्थिति का जायजा लेना चाहिए और इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान निकालना चाहिए। लेकिन इस राजनीतिक दबाव के पीछे एक और सच छुपा हुआ है – पश्चिमी एनजीओ और मिशनरियों की भूमिका, जो आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।

कांग्रेस और विदेश नीति:

कांग्रेस पार्टी ने लंबे समय तक विदेशी एनजीओ और मिशनरियों के साथ नरम रवैया अपनाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मणिपुर जाने के लिए दबाव डालने के पीछे विदेशी मिशनरियों का कोई संबंध है? क्या यह एक सोची-समझी साजिश है, जिसमें विदेशी ताकतें और उनके एजेंट भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं?

समाधान और आगे की राह:

मणिपुर की स्थिति को सामान्य करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा। जातीय तनाव और हिंसा का समाधान केवल राजनीतिक बयानबाजी से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, भारत सरकार को पश्चिमी मिशनरियों और विदेशी प्रचारकों की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए, ताकि वे मणिपुर जैसे संवेदनशील इलाकों में और अधिक नुकसान न पहुंचा सकें।

इसके अलावा, यह जरूरी है कि मणिपुर की जनता को भी इस बात की समझ हो कि बाहरी ताकतें केवल अपने हित साधने के लिए उनकी भावनाओं का फायदा उठा रही हैं। उन्हें इस सच्चाई से अवगत कराया जाना चाहिए कि उनके बीच का भाईचारा ही उन्हें इन मुश्किलों से बाहर निकाल सकता है, न कि बाहरी उकसावे या विदेशी एजेंडा।

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