अयोध्या में राम मंदिर के बनने की तैयारियां चल रही हैं। 22 जनवरी को अयोध्या के नए राम मंदिर में रामलला विराजेंगे। पांच दशकों तक चले राम मंदिर आंदोलन में महिला साध्वी भी सुर्खियों में रहीं, जिन्हें फायर ब्रांड नेता और वक्ता माना गया। उनमें से एक साध्वी ऋतंभरा भी थी, जिनके भाषण 90 के दशक में काफी लोकप्रिय हुए।
साध्वी ऋतंभरा का जन्म 2 जनवरी, 1964 को पंजाब के दोराहा में हुआ था। उनका बचपन आर्थिक तंगी में बीता। उनके पिता एक हलवाई थे। साध्वी ऋतंभरा ने अपनी स्कूली शिक्षा दोराहा में ही पूरी की।
साध्वी ऋतंभरा का जीवन तब बदल गया जब वे 16 साल की थीं। उस समय उनके गांव में युग पुरुष महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज पधारे थे। साध्वी ऋतंभरा ने उनसे दीक्षा ली और साध्वी बन गईं।
साध्वी ऋतंभरा ने अपनी साधना और सेवा के माध्यम से हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने कई धरने और प्रदर्शनों का नेतृत्व किया।
साध्वी ऋतंभरा की ललकार से विरोधी भी जय श्री राम बोलते थे। वे अपने भाषणों में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठाती हैं। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख भी लिखे हैं।
साध्वी ऋतंभरा ने कई सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया है। उन्होंने कई अनाथालयों, आश्रमों और स्कूलों की स्थापना की है। वे महिला सशक्तिकरण और बाल संरक्षण के लिए भी काम करती हैं।
साध्वी ऋतंभरा के प्रमुख कार्य:
- अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से भागीदारी
- कई धरने और प्रदर्शनों का नेतृत्व
- हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठाना
- कई पुस्तकें और लेख लिखना
- कई अनाथालयों, आश्रमों और स्कूलों की स्थापना
- महिला सशक्तिकरण और बाल संरक्षण के लिए काम
कैसे साध्वी बनीं ऋतंभरा, मोदी-योगी से पूछा था, क्या राम रहेंगे टाट में?
साध्वी ऋतंभरा एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिनका जीवन कई रूपों में परिलक्षित होता है। एक तरफ वे एक फायर ब्रांड नेता हैं जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरी तरफ वे एक अनाथ बच्चों की सेवा में समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
साध्वी ऋतंभरा का जन्म 2 जनवरी, 1964 को पंजाब के दोराहा में हुआ था। उनका बचपन आर्थिक तंगी में बीता। उनके पिता एक हलवाई थे। साध्वी ऋतंभरा ने अपनी स्कूली शिक्षा दोराहा में ही पूरी की।
साध्वी ऋतंभरा का जीवन तब बदल गया जब वे 16 साल की थीं। उस समय उनके गांव में युग पुरुष महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज पधारे थे। साध्वी ऋतंभरा ने उनसे दीक्षा ली और साध्वी बन गईं।
साध्वी ऋतंभरा ने अपनी साधना और सेवा के माध्यम से हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने कई धरने और प्रदर्शनों का नेतृत्व किया।
साध्वी ऋतंभरा की ललकार से विरोधी भी जय श्री राम बोलते थे। वे अपने भाषणों में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवाज उठाती हैं। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख भी लिखे हैं।
साध्वी ऋतंभरा ने कई सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया है। उन्होंने कई अनाथालयों, आश्रमों और स्कूलों की स्थापना की है। वे महिला सशक्तिकरण और बाल संरक्षण के लिए भी काम करती हैं।
राम मंदिर आंदोलन के बाद साध्वी ऋतंभरा ने वृंदावन में अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। तीन दशक से अधिक समय से अनाथ बच्चों और बुजुर्गों को एक साथ लाकर परिवार के संकल्पना के साथ सेवा में जुटी रहीं। इस दौरान उन्होंने राजनीति बयानों और कार्यक्रम से दूरी बना ली। वात्सल्य ग्राम के बच्चे उन्हें दीदी मां के नाम से पुकारते हैं। वह रामकथा और श्रीमदभगवत को लेकर भी प्रवचन करती हैं। आज भी उनके लाखों अध्यात्मित फॉलोअर हैं।
साध्वी ऋतंभरा की विरासत:
साध्वी ऋतंभरा एक विवादास्पद व्यक्तित्व हैं। लेकिन, उनकी हिंदू राष्ट्रवादी विचारों और सामाजिक कार्यों के लिए लाखों लोग उन्हें आदर करते हैं। वे एक ऐसा व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने जीवन में कई लोगों को प्रभावित किया है।