सोमवार को जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई पीएम के पद से इस्तीफा देने का एलान किया. खुद को फाइटर बताते हुए ट्रूडो ने लंबी भूमिका रची लेकिन किसी के लिए भी इस्तीफा चौंकाने वाला नहीं था. अमेरिका से लेकर भारत तक से रिश्ते बिगाड़ चुके ट्रूडो अपने देश में भी साख गंवा चुके थे. माना जा रहा है कि अब कनाडा में दक्षिणपंथ आएगा. कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलिवरे खुद को कट्टर दक्षिणपंथी मानते हैं और अक्सर ही वोक लीडरशिप के खिलाफ बोलते रहे. इसका एक मतलब ये भी है कनाडा से लेकर अमेरिका समेत तमाम देशों में फिलहाल दक्षिणपंथ की हवा तेज है.
क्या है इसकी वजह? क्या है दक्षिण और वामपंथ?
आजकल ये दोनों ही शब्द खूब कहे जा रहे हैं. इनकी शुरुआत फ्रांस से हुई. 18वीं सदी के आखिर में वहां के 16वें किंग लुई को लेकर नेशनल असेंबली के सदस्य भिड़ गए. एक हिस्सा राजशाही के पक्ष में था, दूसरा उसके खिलाफ. जो लोग राजसत्ता के विरोध में थे, वे लेफ्ट में बैठ गए, जबकि सपोर्टर राइट में बैठ गए. विचारधारा को लेकर बैठने की जगह जो बंटी कि फिर तो चलन ही आ गया. यहीं से लेफ्ट विंग और राइट विंग का कंसेप्ट दुनिया में चलने लगा.
काफी महीन है दोनों का फर्क
जो भी लोग कथित तौर पर उदार सोच वाले होते हैं, माइनोरिटी से लेकर नए विचारों और LGBTQ का सपोर्ट करते हैं, साथ ही अक्सर सत्ता का विरोध करते हैं, वे खुद को वामपंथी यानी लेफ्ट विंग का बोल देते हैं. इसके उलट, दक्षिणपंथी अक्सर रुढ़िवादी माने जाते हैं. वे देशप्रेम और परंपराओं की बात करते हैं. धर्म और धार्मिक आवाजाही को लेकर भी उनके मत जरा कट्टर होते हैं. यूरोप के संदर्भ में देखें तो वे वाइट सुप्रीमेसी के पक्ष में, और चरमपंथी मुस्लिमों से दूरी बरतने की बात करते हैं.
इन देशों में दक्षिण सोच आगे
यूरोप की बात करें तो फिलहाल वहां इटली, फिनलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी, क्रोएशिया और चेक रिपब्लिक में दक्षिणपंथ की सरकार है. स्वीडन और नीदरलैंड में लिबरल सरकारें लगभग बैसाखी पर हैं. यहां तक कि यूरोपियन पार्लियामेंट में भी राइट विंग का दबदबा दिख रहा है. अमेरिका में तो खुले तौर पर ट्रंप लिबरल्स से दूरी बताते हैं.
कब कमजोर पड़ने लगा था राइट विंग
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी समेत दक्षिणपंथी सोच को तगड़ी पटखनी मिली थी, जिसके बाद ये विचारधारा पीछे छूटने लगी. शीत युद्ध के खत्म होते-होते यानी नब्बे के दशक में सोवियत संघ टूटकर कई टुकड़े हो चुका है. अब अमेरिका दुनिया का लीडर था और उसकी छाया तले लिबरल्स फलने-फूलने लगे. यहां तक कि रूस से टूटे देश भी लिबरल हो गए.
बीच-बीच में एक और विचारधारा भी जोर मारती है, जिसे रेडिकल सेंट्रिज्म कहते हैं. ये लोग दावा करते हैं कि वे न तो पूरी तरह राइट हैं, न लेफ्ट. वे खुद को ज्यादा संतुलित बताते हैं. लेकिन इस सोच को मानने वालों की स्थिति दो पाटों के बीच फंसे हुओं से ज्यादा नहीं. इसका कोई लीडर भी नहीं है, ग्लोबल स्तर पर दिखाई दे सके.