दिवाली जैसे हिंदू त्यौहारों के आने से पहले पर्यावरण को लेकर चर्चाएं बढ़ जाती हैं। हर साल दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध और प्रदूषण के खिलाफ कदम उठाने की मांग की जाती है। इसी संदर्भ में, हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने सवाल उठाया कि पर्यावरण के नाम पर केवल हिंदू त्यौहारों का विरोध क्यों किया जाता है?
भागवत का मानना है कि पर्यावरण संरक्षण एक आवश्यक मुद्दा है और इसे केवल हिंदू त्यौहारों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में अलग-अलग त्यौहार मनाए जाते हैं, और सभी के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। उनके अनुसार, हिंदू धर्म में हमेशा से ही प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करने की परंपरा रही है। भारत में वृक्षों, नदियों, पहाड़ों और जानवरों का पूजन इस परंपरा का हिस्सा है।
दिवाली के समय पटाखों पर जो जोर दिया जाता है, उसके पीछे कुछ वास्तविक चिंताएं हैं, जैसे प्रदूषण का स्तर, परंतु केवल हिंदू त्यौहारों को पर्यावरणीय हानि का कारण मानना अनुचित है। भागवत के इस बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी त्यौहारों में समान नियमों का पालन किया जाना चाहिए?
यह स्पष्ट है कि त्यौहारों का विरोध किसी एक समुदाय तक सीमित न रहकर, सभी धर्मों के त्यौहारों के साथ समान रूप से किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य सभी समुदायों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सामूहिक रूप से प्रकृति की रक्षा के लिए प्रयास करना होना चाहिए।