यूरोप के कई देश लंबे समय तक दया और सहानुभूति के आधार पर शरणार्थियों को अपने देशों में बसाते रहे। ये शरणार्थी अपने मूल देशों में असुरक्षा, युद्ध या आर्थिक तंगी से भागकर यूरोप आए थे।
शुरू में, यूरोप के देशों ने इन्हें इंसानियत के नाते अपने यहां जगह दी, लेकिन समय के साथ स्थिति बदलने लगी। शरणार्थियों की बड़ी संख्या ने यूरोप के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ताने-बाने पर गंभीर प्रभाव डाला। इनमें से कई शरणार्थियों में आपराधिक और आतंकवादी गतिविधियों के जुड़ने की खबरें भी सामने आईं।
इस स्थिति से निपटने के लिए, अब यूरोप के कई देशों ने कठोर निर्णय लिए हैं। उन्होंने शरणार्थियों को अपने देशों से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू की है।
यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि ये देश अब महसूस कर रहे हैं कि कुछ शरणार्थी उनके समाज और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। उनके बढ़ते अपराध और चरमपंथी गतिविधियों ने यूरोप के देशों को मजबूर किया है कि वे शरणार्थियों की नीति पर पुनर्विचार करें और ऐसे कदम उठाएं जो उनके समाज और राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में हों।
भारत सहित अन्य देशों को भी यूरोप की इस नीति से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह समझने की आवश्यकता है कि शरणार्थियों की समस्या सिर्फ मानवता की दृष्टि से नहीं देखी जा सकती। यदि ये शरणार्थी या अवैध घुसपैठिये देश के लिए बोझ बन जाते हैं या उसकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं, तो उन्हें समय रहते बाहर निकालना ही राष्ट्र के हित में होता है।
भारत में भी शरणार्थियों और अवैध घुसपैठियों की समस्या गंभीर होती जा रही है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में। यह आवश्यक है कि सरकार और जनता इस मुद्दे को गंभीरता से ले और देश की सुरक्षा और सामाजिक संरचना को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए।