दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय आतिशी के बगल में एक खाली कुर्सी का विवाद गहराता जा रहा है। आतिशी ने कहा कि यह कुर्सी अरविंद केजरीवाल की प्रतीकात्मक वापसी का प्रतीक है।
वहीं, बीजेपी ने इस कदम को चमचागीरी करार दिया। दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आरोप लगाया कि इस हरकत से आतिशी ने मुख्यमंत्री पद की गरिमा को ठेस पहुंचाई है और यह कोई आदर्श पालन नहीं, बल्कि साफ़-साफ़ चमचागीरी है।
विवाद का केंद्र
यह मामला तब उठा जब आतिशी ने दिल्ली सीएम पद संभालने के दौरान अपने बगल में एक खाली कुर्सी रखी, यह कहते हुए कि कुर्सी अरविंद केजरीवाल की प्रतीक्षा करेगी। इस फैसले के पीछे आतिशी का तर्क था कि वे भरत की तरह प्रतीक्षा कर रही हैं, जैसे भरत ने भगवान राम के लिए खड़ाऊं रखी थी। परन्तु, विपक्ष और खासतौर पर बीजेपी ने इसे तीव्र आलोचना का विषय बना दिया।
बीजेपी का आरोप
बीजेपी का कहना है कि आतिशी का यह कदम न केवल राजनीति में असमानता का परिचायक है, बल्कि यह दिल्ली की जनता का भी अपमान है। उनका कहना है कि यह आदर्श पालन नहीं है, बल्कि सीधा-सीधा केजरीवाल की चमचागीरी है।
वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि आतिशी का यह कदम दिखाता है कि अरविंद केजरीवाल ही असल में दिल्ली की सरकार को नियंत्रित कर रहे हैं और आतिशी महज उनकी कठपुतली हैं।
यह कदम आदर्श या राजनीतिक चाल?
आदर्श पालन और चमचागीरी के बीच का अंतर कभी-कभी धुंधला हो सकता है। आतिशी का यह कदम उनके आदर्शों के प्रति सम्मान और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के प्रति वफादारी दिखाने के उद्देश्य से हो सकता है। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या किसी मुख्यमंत्री को अपने कार्यों में स्वतंत्रता और निर्भरता का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए? क्या यह दिखाने की जरूरत है कि वे अपने पद पर किसी और के संरक्षण में हैं?
आतिशी का जवाब
इस विवाद पर आतिशी का कहना है कि अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में उनके विचारों को आगे बढ़ाना उनका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि जब तक दिल्ली की जनता केजरीवाल की ईमानदारी साबित नहीं करती, तब तक यह कुर्सी प्रतीकात्मक रूप से खाली रहेगी।
इस तरह, आतिशी और बीजेपी के बीच का यह विवाद लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है, जिससे दिल्ली की राजनीति और अधिक गरमा गई है।