अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का एक लंबा और विवादास्पद इतिहास रहा है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के निर्माण के पक्ष में फैसला दिया, जिससे देश भर में खुशी की लहर दौड़ गई। 22 जनवरी, 2024 को, राम मंदिर के गर्भगृह में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। इस ऐतिहासिक अवसर में शामिल होने के लिए देश भर के नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है।
कांग्रेस का बहिष्कार
कांग्रेस पार्टी ने इस कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया है। पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह कार्यक्रम बीजेपी और आरएसएस का आयोजन है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस धर्म को व्यक्तिगत मामला मानती है और इसे राजनीतिक रूप से नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
कांग्रेस के फैसले पर प्रतिक्रिया
कांग्रेस के फैसले पर राजनीतिक दलों और लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली हैं। कुछ लोग कांग्रेस के फैसले का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य इसे आलोचना करते हैं।
आलोचना
कांग्रेस के फैसले की आलोचना करने वाले लोगों का कहना है कि यह एक राजनीतिक फैसला है। उनका कहना है कि कांग्रेस इस कार्यक्रम में शामिल होकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना चाहती है।
समर्थन
कांग्रेस के फैसले का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि यह एक धार्मिक फैसला है। उनका कहना है कि कांग्रेस धर्म को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल नहीं करना चाहती है।
असम के सीएम का कांग्रेस पर निशाना
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस के फैसले पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अयोध्या के निमंत्रण की “हकदार” नहीं थी। लेकिन इसे अस्वीकार करके कांग्रेस ने “अपने कुछ पापों को धोने का एक सुनहरा अवसर” खो दिया है।
कांग्रेस के लिए परिणाम
कांग्रेस के इस फैसले के राजनीतिक परिणामों का अभी से अनुमान लगाया जा रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि यह फैसला कांग्रेस को हिंदू वोट बैंक से दूर कर सकता है। अन्य का कहना है कि यह फैसला कांग्रेस को एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी के रूप में मजबूत करने में मदद कर सकता है।
निष्कर्ष
अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस के बहिष्कार के राजनीतिक और धार्मिक दोनों पहलू हैं। यह देखना बाकी है कि इस फैसले का देश की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा।
कुछ विशेषज्ञों की राय
- राजनीतिक विश्लेषक विनय कपूर का कहना है कि कांग्रेस का यह फैसला एक राजनीतिक रणनीति है। उनका कहना है कि कांग्रेस इस कार्यक्रम में शामिल होकर बीजेपी को हिंदुओं के बीच मजबूत होने का मौका नहीं देना चाहती है।
- धर्मशास्त्री प्रोफेसर श्याम सुंदर का कहना है कि कांग्रेस का यह फैसला एक धार्मिक विश्वास है। उनका कहना है कि कांग्रेस धर्म को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल नहीं करना चाहती है।