अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस पार्टी ने भाग लेने से मना कर दिया है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक बयान जारी कर कहा कि यह आयोजन बीजेपी और आरएसएस का राजनीतिक कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि धर्म एक निजी मामला है और कांग्रेस इस कार्यक्रम में भाग लेकर इसकी राजनीतिक उपयोगिता को बढ़ाना नहीं चाहती।
कांग्रेस के इस फैसले पर पार्टी के कई नेताओं ने नाराजगी जताई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता की आड़ में देश की आस्थाओं से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर कांग्रेस के फैसले की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह फैसला देश की आस्थाओं के साथ विश्वासघात है।
कांग्रेस के इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। कई लोगों ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी ने हिंदू वोट बैंक को खोने का रास्ता खोल दिया है। वहीं, कुछ लोगों ने कांग्रेस के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन किया है।
कांग्रेस के इस फैसले के कई संभावित परिणाम हो सकते हैं। एक संभावना यह है कि इससे पार्टी के हिंदू वोट बैंक को नुकसान पहुंच सकता है। कई हिंदू वोटरों का मानना है कि कांग्रेस ने राम मंदिर के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय नहीं दिया है। इससे इन वोटरों का कांग्रेस से मोहभंग हो सकता है।
दूसरी संभावना यह है कि इस फैसले से कांग्रेस की अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ सकता है। कई अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस के इस फैसले से भारत के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठेंगे।
कुल मिलाकर, कांग्रेस के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का फैसला एक बड़ा राजनीतिक फैसला है। इस फैसले के परिणाम आने वाले समय में ही पता चलेंगे।