दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे कांग्रेस के लिए एक ऐतिहासिक झटका साबित हुए हैं। पार्टी न केवल लगातार तीसरी बार एक भी सीट नहीं जीत पाई, बल्कि 70 में से 67 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई। यह परिणाम कांग्रेस के लिए न केवल राजधानी में उसके “सुनहरे दौर” (1998-2013) के अंत का प्रतीक है, बल्कि यह पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर बदलती प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े करता है।
चुनावी आँकड़ों की कहानी: शून्य सीट, जमानत जब्ती और मामूली सुधार
जीत से कोसों दूर: 2013 में 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 2015, 2020 और अब 2025 में लगातार तीसरी बार शून्य पर रही47।
जमानत जब्ती का रिकॉर्ड: 67 उम्मीदवारों को कुल वोटों का 16.67% (छठा हिस्सा) भी नहीं मिला, जिससे उनकी जमानत राशि (सामान्य उम्मीदवारों के लिए ₹10,000) जब्त हो गई59। केवल 3 सीटों (बादली, कस्तूरबा नगर, नांगलोई जाट) पर ही पार्टी ने जमानत बचाई, जहाँ उम्मीदवारों ने 20-32% वोट हासिल किए37।
वोट शेयर में मामूली उछाल: 2020 के 4.26% की तुलना में इस बार कांग्रेस को 6.4% वोट मिले, लेकिन यह बढ़त भी सीटों में तब्दील नहीं हो सकी59।
अमित शाह का तंज: “परिवार वंदन” से जुड़ी दुर्दशा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के प्रदर्शन को “परिवारवाद की राजनीति” से जोड़ते हुए कहा कि “नेहरू-गांधी परिवार की सेवा में लगी पार्टी 2014 से दिल्ली के छह चुनावों में खाता तक नहीं खोल पाई”110। उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व को “शून्य में स्थायित्व” बताकर पार्टी की राष्ट्रीय स्थिति पर सवाल उठाए10।
राहुल गांधी की प्रतिक्रिया: हार स्वीकार, लेकिन लड़ाई जारी
चुनावी हार के बाद राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा: “दिल्ली का जनादेश हम विनम्रता से स्वीकार करते हैं… प्रदूषण, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी”68। हालाँकि, उनकी और प्रियंका गांधी की 58 रैलियों का भी कोई असर नहीं दिखा, जिससे पार्टी के संगठनात्मक कमजोरी का पता चलता है612।
क्यों डूबी कांग्रेस? मुख्य कारण
AAP-BJP के बीच ध्रुवीकरण: कांग्रेस न तो BJP के “मोदी मॉडल” का मुकाबला कर पाई, न ही AAP के स्थानीय मुद्दों (जैसे स्कूल-क्लिनिक) से जुड़ सकी8।
रणनीतिक विफलता: 14 सीटों पर AAP की हार का अंतर कांग्रेस के वोटों से कम था। अगर दोनों ने गठबंधन किया होता, तो BJP की 14 सीटें कम हो सकती थीं48।
नेतृत्व संकट: शीला दीक्षित के बाद पार्टी में कोई प्रभावी चेहरा नहीं उभरा। संदीप दीक्षित (शीला के बेटे) जैसे नेता भी मात्र 4,568 वोट ही जुटा पाए39।
भविष्य की चुनौतियाँ: क्या संभव है पुनरुत्थान?
संगठनात्मक सुधार: महाराष्ट्र कांग्रेस नेता हुसैन दलवई के अनुसार, पार्टी को “शीर्ष नेतृत्व की बात मानने वाले कार्यकर्ताओं” पर ध्यान देना होगा12।
मुद्दों पर फोकस: जयराम रमेश ने कहा कि पार्टी को यमुना सफाई, बिजली-पानी जैसे स्थानीय मुद्दों पर काम करना होगा8।
2029 का लक्ष्य: कांग्रेस ने दावा किया है कि वह अगले 5 साल में सत्ता में वापसी करेगी, लेकिन इसके लिए रणनीति और जमीनी कार्यशैली में बदलाव जरूरी है79।
क्या यह कांग्रेस का ‘मर्सिया’ है?
दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस का पतन न केवल पार्टी के “परिवारवाद” को दर्शाता है, बल्कि यह उसकी जनता से दूरी का भी संकेत है। अगर पार्टी ने समय रहते संगठन और नीतियों में बदलाव नहीं किए, तो दिल्ली में उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। फिलहाल, BJP के लिए यह जीत “कमल” का पुनर्जन्म है, तो कांग्रेस के लिए शून्य का अध्याय बन गई है।