पूरे जामनगर को पीने का पानी मुहैया कराने वाले रणजीत सागर डैम के किनारे एक गंभीर साजिश का पर्दाफाश हुआ है। यहां पिछले कुछ वर्षों से अवैध रूप से मजारें बनाई जा रही हैं, जिनका आकार अब 31 फुट तक पहुंच चुका है।
ये मजारें न केवल सरकारी जमीन पर बनाई गई हैं, बल्कि इन्हें अब तक रोकने के लिए प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। स्थानीय समाजसेवी युवराज सोलंकी ने कई बार प्रशासन को इस मुद्दे पर चेताया, लेकिन उनकी शिकायतों को अनदेखा कर दिया गया।
मामला क्या है?
रणजीत सागर डैम, जो जामनगर के लिए जीवनरेखा है, के पास अवैध रूप से मजारें बनाई गई हैं। डैम के किनारे की जमीन पर तीन 31 फुट लंबी मजारों का निर्माण किया गया है, जिन पर टिन शेड भी डाल दिया गया है।
यह निर्माण लगभग चार-पांच साल पहले शुरू हुआ था और अब पूरी तरह से तैयार हो चुका है। स्थानीय समाजसेवी युवराज सोलंकी ने बताया कि उन्होंने इस अवैध निर्माण के खिलाफ कई बार ज्ञापन दिए, लेकिन प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
युवराज सोलंकी का दावा
युवराज सोलंकी का कहना है कि जलाशय के पास किसी भी प्रकार का निजी निर्माण गैरकानूनी है, बावजूद इसके यहां मजारें बनाई गईं। उनका कहना है कि इस मजार पर लोग इत्र और अन्य सामग्री चढ़ाते हैं, जिससे डैम का पानी प्रदूषित हो रहा है। उन्होंने बताया कि डैम के आस-पास के गांवों में मुस्लिम आबादी नहीं है, फिर भी यहां बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता है। पिछले 3-4 सालों में यह मजारें अचानक से उभरकर सामने आई हैं, जिनका निर्माण तेजी से हुआ है।
पर्यावरणीय खतरा
सोलंकी का कहना है कि जब डैम में पानी भरता है, तो ये मजारें छह फुट तक पानी में डूब जाती हैं। इस दौरान मजार पर चढ़ाए गए इत्र और अन्य केमिकल्स पानी में मिलकर जलीय जीवों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। इससे मछलियों और अन्य जलीय जीवों की मौत हो रही है, जिससे पानी दूषित हो रहा है। यह पानी जामनगर के निवासियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा कर सकता है।
प्रशासन की उदासीनता
जब इस अवैध निर्माण की शुरुआत हुई, तो सोलंकी ने तत्कालीन कलेक्टर को शिकायत दी थी। इसके बाद, सर्कल ऑफिसर ने उस स्थल का दौरा कर अवैध निर्माण की पुष्टि की थी, लेकिन इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। 2022 से अब तक जामनगर में तीन कलेक्टर बदल चुके हैं, लेकिन इस मुद्दे पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
उठते सवाल
इस मामले से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकारी नियमों के अनुसार, जलाशयों, नदियों, डेम्स आदि के किनारे किसी भी प्रकार का निर्माण अवैध और गैरकानूनी होता है। ऐसे में यह मजारें कैसे और क्यों बनाई गईं? जब आस-पास के गांवों में मुस्लिम आबादी नहीं है, तो फिर मजार बनाने का उद्देश्य क्या है? ये सवाल स्थानीय प्रशासन और समाज के लिए सोचने का विषय हैं।
जामनगर के लिए यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है, और समय रहते प्रशासन को इसके खिलाफ कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा इसका खामियाजा पूरे शहर को भुगतना पड़ सकता है।