अगर दरगाह में मिलता सुअर का मांस तो जल उठता देश! मोदी सरकार होती तानाशाह करार, पर तिरुपति लड्डू में बीफ पर चुप्पी क्यों?

अगर दरगाह में मिलता सुअर का मांस तो जल उठता देश! मोदी सरकार होती तानाशाह करार, पर तिरुपति लड्डू में बीफ पर चुप्पी क्यों?

भारत एक विविधता से भरा हुआ देश है, जहां हर धर्म और संस्कृति को अपने-अपने तरीकों से आदर और सम्मान मिलता है। यहां के धार्मिक स्थल केवल आस्था के केंद्र नहीं होते, बल्कि राष्ट्रीय एकता और भाईचारे के प्रतीक भी होते हैं।

ऐसे में जब भी किसी धर्म के साथ किसी प्रकार का अनादर होता है, तो पूरा देश संवेदनशील हो जाता है। लेकिन जब तिरुपति मंदिर के प्रसाद में बीफ और सूअर की चर्बी (लार्ड) का इस्तेमाल होने की बात सामने आई, तो इस मुद्दे पर देशभर में अपेक्षित आक्रोश नहीं दिखाई दिया।

दरगाह और मस्जिद में सुअर का मांस – तत्काल विवाद

ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर किसी मुस्लिम धार्मिक स्थल जैसे अजमेर शरीफ या किसी मस्जिद में सुअर के मांस या शराब का प्रयोग हुआ होता, तो देश में बड़े पैमाने पर विरोध और हिंसा देखने को मिलती।

धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए ऐसी घटनाओं को न केवल एक सांस्कृतिक अपराध माना जाता, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता के रूप में भी देखा जाता। मीडिया और राजनीतिक दल भी इस तरह की घटना को गंभीरता से उठाते और इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बना देते।

तिरुपति लड्डू में बीफ का मुद्दा – क्यों है चुप्पी?

हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई जिसमें कहा गया कि तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसिद्ध प्रसाद तिरुपति लड्डू में बीफ, सूअर की चर्बी और मछली का तेल मिला है। यह जानकारी एक प्रयोगशाला रिपोर्ट के आधार पर दी गई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, तिरुपति मंदिर के प्रसाद में गाए जाने वाले घी में ये बाहरी तत्व पाए गए।

यह जानने के बावजूद कि तिरुपति लड्डू हिंदुओं के लिए एक अत्यधिक पवित्र प्रसाद है, इस पर उतनी तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई जितनी दरगाह या मस्जिद में किसी विवादित घटना पर आती। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर क्यों धार्मिक असहिष्णुता और नैतिकता के मानक एक धर्म के लिए अलग और दूसरे के लिए अलग होते हैं?

मोदी सरकार पर सवाल

मोदी सरकार पर अकसर तानाशाही के आरोप लगाए जाते हैं, खासकर जब बात धार्मिक मुद्दों की होती है। लेकिन जब तिरुपति जैसे प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल के प्रसाद में बीफ और अन्य अमान्य तत्वों की बात आई, तो इस मुद्दे को बड़ी राजनीतिक चर्चा का रूप नहीं दिया गया।

यदि ऐसी ही घटना किसी मुस्लिम धार्मिक स्थल के साथ होती, तो सरकार और प्रशासन पर कड़ी प्रतिक्रिया देने के लिए दबाव बनाया जाता। सवाल यह है कि क्या धार्मिक स्थलों और पवित्रता के मामलों में हम दोहरे मापदंड अपना रहे हैं?

धार्मिक स्थलों की पवित्रता को लेकर किसी भी प्रकार की अनदेखी नहीं होनी चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो। तिरुपति लड्डू में बीफ और सूअर की चर्बी के प्रयोग का मुद्दा केवल एक धार्मिक मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की नैतिकता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करता है। जिस तरह से इस मुद्दे पर चुप्पी साधी गई है, वह हमारी धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता को दर्शाता है।

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