Major Somnath Sharma: एक हाथ में प्लास्टर, दूसरे में मशीन गन लेकर 700 पाकिस्तानी सैनिकों को चटाई धूल… प्रथम परमवीर चक्र पाने वाले मेजर सोमनाथ की कहानी

परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा: एक वीर योद्धा की अमर गाथा

हमारा देश उन वीर सपूतों की जन्मभूमि रहा है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस और बलिदान से इतिहास के पन्नों में अमिट छाप छोड़ी। लेकिन कई ऐसे महापुरुष भी हुए हैं, जिनका नाम इतिहास में कहीं गुम हो गया। भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा ऐसे ही एक वीर योद्धा थे, जिनका बलिदान देश की रक्षा में मील का पत्थर साबित हुआ। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनकी गौरवगाथा को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प दोहराते हैं।

प्रारंभिक जीवन और परिवार

मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को दध, कांगड़ा (अब हिमाचल प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता अमरनाथ शर्मा भारतीय सेना में एक अधिकारी थे और उनका पूरा परिवार देशसेवा के प्रति समर्पित था। उनके छोटे भाई विश्वनाथ शर्मा भी भारतीय सेना के 14वें सेनाध्यक्ष बने।

शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में पूरी की और फिर प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज, देहरादून में दाखिला लिया। बाद में, उन्होंने रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट (इंग्लैंड) से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया। बचपन से ही वे भगवद गीता में भगवान कृष्ण और अर्जुन के संवादों से प्रेरित थे, जिसे उनके दादा ने उन्हें सिखाया था।

भारतीय सेना में योगदान

22 फरवरी 1942 को रॉयल मिलिट्री कॉलेज से स्नातक होने के बाद, उनकी नियुक्ति 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट (अब 4 कुमाऊं रेजिमेंट) में हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, उन्होंने अराकन अभियान (बर्मा) में जापानी सेना के खिलाफ वीरता से युद्ध लड़ा। उनके इस अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें ‘मेंशन इन डिस्पैचेस’ सम्मान मिला।

1947 का युद्ध और बडगाम की लड़ाई

23 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया, तब भारतीय सेना के जवानों को हवाई मार्ग से श्रीनगर भेजा गया। 31 अक्टूबर को मेजर सोमनाथ शर्मा भी वहां पहुंचे, हालांकि उस समय उनका दायां हाथ फ्रैक्चर था। डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने युद्ध में जाने की अनुमति मांगी और उन्हें आदेश मिल गया।

3 नवंबर 1947 को उन्हें बडगाम में पाकिस्तानी कबाइलियों के बढ़ते हमले को रोकने का आदेश मिला। उनके नेतृत्व में 50 भारतीय सैनिकों की टुकड़ी दुश्मन से लोहा लेने के लिए आगे बढ़ी। दोपहर के समय, लगभग 700 कबाइली हमलावरों ने बडगाम में भारी हमला कर दिया।

मेजर शर्मा का अदम्य साहस और बलिदान

तीन तरफ से घिरे होने के बावजूद, मेजर शर्मा ने अपने सैनिकों का हौसला बनाए रखा। एक हाथ में प्लास्टर लगे होने के बावजूद, वे खुद हर मोर्चे पर पहुंचे, सैनिकों को गोलियां और गोला-बारूद उपलब्ध कराते रहे। उन्होंने अंतिम क्षण तक अपने सैनिकों का नेतृत्व किया और भारी गोलाबारी के बीच शहीद हो गए।

उनके अंतिम शब्द थे:

“कोई भी सैनिक युद्ध में अपने साथियों को मरते हुए नहीं छोड़ता, जब तक कि वह स्वयं शहीद न हो जाए।”

परमवीर चक्र सम्मान

मेजर सोमनाथ शर्मा को उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वे इस सर्वोच्च वीरता पुरस्कार को प्राप्त करने वाले भारत के पहले सैनिक बने।

नमन उस अमर योद्धा को!

मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान हमें सिखाता है कि देश की रक्षा से बढ़कर कुछ नहीं। उनका जीवन हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हम सभी को उनके अद्वितीय साहस, कर्तव्यपरायणता और राष्ट्रप्रेम से सीख लेनी चाहिए।

जय हिंद!

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