13 सितंबर 1948 का दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद रियासत पर कब्जा कर लिया था। यह रणनीतिक अभियान भारत के राजनीतिक एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
हैदराबाद रियासत भारत की सबसे बड़ी रियासतों में से एक थी, जिसकी आबादी 1.7 करोड़ से अधिक थी। रियासत के शासक, नवाब मीर उस्मान अली खान, भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे। वे चाहते थे कि हैदराबाद एक अलग मुस्लिम देश बन जाए।
निजाम ने जिन्ना को क्या संदेश भेजा
बता दें, हैदराबाद की आबादी के अस्सी फ़ीसदी हिंदू थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे. इतिहासकार केएम मुंशी की किताब ”एंड ऑफ एन एरा” में लिखा है कि निजाम ने जिन्ना को संदेश भेजकर जानने की कोशिश की क्या भारत के खिलाफ लड़ाई में वह हैदराबाद का समर्थन करेंगे?
पटेल चाहते थे किसी भी सूरत में हैदराबाद का विलय
प्रधानमंत्री नेहरू और माउंटबेटन इस पक्ष में थे कि पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए. सरदार पटेल इससे सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था’, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. पटेल को अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फिऱाक़ में था जिसके बाद वो गोवा में अपने लिए बंदरगाह बनवाना चाहता था.
निजाम अलग देश बनाना चाहते थे
और तो और हैदराबाद के निजाम ने अलग देश के तौर पर राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा जाहिर की थी, जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दिया था. निज़ाम के सेनाध्यक्ष मेजर जनरल एल एदरूस ने अपनी किताब ”हैदराबाद ऑफ़ द सेवेन लोव्स” में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें ख़ुद हथियार खऱीदने यूरोप भेजा था. वह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाए थे.
करियप्पा ने पटेल से क्या कहा था
एक समय जब निज़ाम को लगा कि भारत हैदराबाद के विलय के लिए दृढ़संकल्प है तो उन्होंने ये पेशकश भी की कि हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य रखते हुए विदेशी मामलों, रक्षा और संचार की जिम्मेदारी भारत को सौंप दी जाए. पटेल हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे.
उसी दौरान पटेल ने जनरल केएम करियप्पा को बुलाकर पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे? करियप्पा ने इसका एक शब्द का जवाब दिया- हां…और इसके बाद बैठक ख़त्म हो गई.
दो बार क्यों रद्द हुई सेना की कार्रवाई
इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फ़ैसले के खिलाफ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकती है. दो बार भारतीय सेना की हैदराबाद में घुसने की तारीख तय की गई लेकिन लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसे रद्द करना पड़ा. निज़ाम ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से व्यक्तिगत अनुरोध किया कि वे ऐसा न करें.
पटेल ने गुप्त योजना बनाई
इसी बीच पटेल ने गुप्त तरीके से योजना को अंजाम देते हुए भारतीय सेना को हैदराबाद भेज दिया. जब नेहरू और राजगोपालाचारी को भारतीय सेना के हैदराबाद में प्रवेश कर जाने की सूचना दी गई तो वो चिंतित हो गए. पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है. इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता. दरअसल नेहरू की चिंता ये थी कि कहीं पाकिस्तान कोई जवाबी कार्रवाई न कर बैठे.
क्यों इसे दिया गया नाम ऑपरेशन पोलो
भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे. पाकिस्तान भी चुपचाप नहीं बैठा था. जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली खान ने डिफ़ेंस काउंसिल की मीटिंग बुलाई. उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ऐक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी (जो बाद में एयर चीफ़ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ़ ऑफ डिफ़ेंस स्टाफ़ बने) ने कहा ‘नहीं.’
लियाक़त ने ज़ोर दे कर पूछा ‘क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं?’ एलवर्दी का जवाब था कि हां, ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं, जिनमें से सिर्फ दो काम कर रहे हैं. इनमें से एक शायद दिल्ली तक पहुंच कर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें कोई वापस नहीं आ पाएगा.
ऑपरेशन पोलो के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- भारतीय सेना ने इस अभियान में 60,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया था।
- हैदराबाद की रज़ाकार सेना, जो निज़ाम की निजी सेना थी, का भारतीय सेना ने कड़ा मुकाबला किया।
- ऑपरेशन पोलो में कई भारतीय सैनिक शहीद हुए।
- हैदराबाद के निज़ाम को भारत सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बम्बई भेज दिया गया।
ऑपरेशन पोलो भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने भारत को एकजुट करने और एक मजबूत राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।