भारत में मानवता की एक अनोखी तस्वीर सामने आई है। जहां एक पाकिस्तानी लड़की को मुफ्त हार्ट ट्रांसप्लांट कर नई जिंदगी दी गई है। इस नेक काम में भारत के डॉक्टरों और एक एनजीओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लेकिन इस नेक काम की खुशी पाकिस्तान के सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाई। कुछ लोगों ने इस पर विरोध भी जताया है। कराची के एक इमाम ने कहा कि “यह दिल काफिर का है, इसकी वजह से उस इंसान के लिए अल्लाह ताला का दरवाजा नहीं खुलेगा.”
उन्होंने यह भी कहा कि “अगर वह किसी मुस्लिम ने दिल दिया होता, अल्लाह उसकी फिक्र करते।”
गरीब लड़की को मिली नई जिंदगी:
यह 19 साल की लड़की आयशा रशीद है, जो दिल की गंभीर बीमारी से पीड़ित थी। इलाज के लिए वो भारत आई थीं। यहां डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की सलाह दी।
आयशा के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण, भारत की एक एनजीओ ने उनके इलाज का पूरा खर्च उठाया। 31 जनवरी, 2024 को चेन्नई के एमजीएम हेल्थकेयर में आयशा का सफल हार्ट ट्रांसप्लांट ऑपरेशन हुआ।
गौरतलब है कि पाकिस्तान के एक इमाम ने कहा कि यह दिल काफिर का है। इसकी वजह से उस इंसान के लिए अल्लाह ताला का दरवाजा नहीं खुलेगा। मस्जिद के इमाम ने कहा कि अल्लाह ने फरमाया है कि काफिर के बड़े से बड़े नेक काम का कोई फायदा नहीं है. इमाम ने कहा कि अगर वह किसी मुस्लिम ने दिल दिया होता, अल्लाह उसकी फिक्र करते।
दरअसल, एक पाकिस्तानी 19 साल की गरीब लड़की का भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है. इस पूरे ऑपरेशन का खर्च भारत की एक एनजीओ ने उठाया है. वहीं पाकिस्तानी लड़की के शरीर में किसी भारतीय हिंदू शख्स का दिल लगाया गया है, जिन्होंने मरने से पहले अपने अंगो को दान कर दिया था।
इस पर पाकिस्तान यूट्यूबर मुजफ्फर चौधरी ने पाकिस्तान के लोगों से बात की है. इस दौरान पाकिस्तान के एक इमाम ने कहा कि गैर जरूरत के कोई चीज दान करना गलत है। इमाम ने बताया कि अगर कोई इंसान इस्लाम धर्म में रहकर कोई नेक काम करता है तो उसे उसका अच्छा फल मिलता है, लेकिन काफिरों को किसी भी नेक काम का फल नहीं मिलता है।
काफिरों का नेक काम नहीं होता कबूल- पाकिस्तानी इमाम
पाकिस्तानी इमाम ने बताया कि आज के डॉक्टर ऑपरेशन होने से पहले दो-चार यूनिट खून निकालकर रख लेते हैं, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है। इमाम ने कहा कि जबतक ऐसी हालत न हो कि किसी इंसान की जान जाने वाली है तब तक खून या शरीर के किसी अंग को देना गलत है।
इमाम ने कहा कि ऐसी हालत में भी दान करने वाले शख्स का मुसलमान होना जरूरी है। हॉर्ट ट्रांसप्लांट के मामले में इमाम ने कहा कि दिल दान करने वाले शख्स से अल्लाह खुश नहीं होगा, क्योंकि वह काफिर का दिल है।