भोपाल की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर हाल ही में स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में भर्ती हुई हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया कि कांग्रेस द्वारा उनके साथ किया गया टॉर्चर आज भी उनके लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बना हुआ है। साध्वी प्रज्ञा ने अपनी पोस्ट में लिखा, “कांग्रेस_का_टॉर्चर सिर्फ ATS कस्टडी तक ही नहीं, बल्कि मेरे जीवन भर के लिए मृत्यु दाई कष्ट का कारण हो गया।”
2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके के मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर आरोपी हैं। इस केस में वे लंबे समय से मेडिकल आधार पर अदालत में पेश नहीं हो रही थीं। हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है। अदालत का कहना है कि इस मामले में फाइनल बहस जारी है और साध्वी का कोर्ट में मौजूद रहना अनिवार्य है।
#कांग्रेस_का_टॉर्चर सिर्फ ATS कस्टडी तक ही नहीं मेरेजीवन भर के लिए मृत्यु दाई कष्ट का कारण हो गएl ब्रेन में सूजन,आँखों से कम दिखना,कानो से कम सुनना बोलने में असंतुलन स्टेरॉयड और न्यूरो की दवाओंसे पूरे शरीर में सूजन एक हॉस्पिटल में उपचार चल रहा हैl जिंदा रही तो कोर्ट अवश्य जाउंगीl pic.twitter.com/vGzNWn6SzX
— Sadhvi Pragya Singh Thakur (@sadhvipragyag) November 6, 2024
साध्वी ने बताया कि उन्हें मस्तिष्क में सूजन, आंखों की दृष्टि कम होना, कानों से सुनने में कमी और शरीर में गंभीर सूजन जैसी समस्याएं हैं। उन्हें स्टेरॉयड और न्यूरो दवाओं का सेवन करना पड़ता है। साध्वी ने कहा, “जिंदा रही तो कोर्ट अवश्य जाऊंगी।” उनके स्वास्थ्य की गंभीरता को देखते हुए यह एक भावनात्मक और न्यायिक मुद्दा बन गया है.
साध्वी प्रज्ञा के वकील जेपी मिश्रा ने अदालत में दलील दी कि उनके मुवक्किल का स्वास्थ्य बेहद खराब है, और इसलिए उन्हें पेश होने से छूट दी जाए। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस महत्वपूर्ण बहस के दौरान उनकी उपस्थिति आवश्यक है, इसलिए जमानती वारंट जारी किया गया। यह स्थिति पहले भी बनी थी, जब मार्च में उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ था।
साध्वी प्रज्ञा के मामले में राजनीतिक संदर्भ भी शामिल हैं। बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार के रहते हुए भी एक साध्वी को न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। साध्वी का आरोप है कि कांग्रेस ने उन्हें कस्टडी में यातनाएं दीं, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया।
यह मुद्दा तब और भी संवेदनशील बन जाता है जब साध्वी प्रज्ञा की हालत की तुलना भारत में आतंकी आरोपियों से की जाती है, जिन्हें कई बार बेहतर सुविधाएं और अधिकार मिलते हैं। इस संदर्भ में सवाल उठता है कि क्या देश में न्याय और मानवाधिकारों का मापदंड सबके लिए समान है?
साध्वी का संघर्ष और बीजेपी सरकार
यह भी ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान में केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार है। इसके बावजूद, साध्वी प्रज्ञा को न्याय और सम्मान के लिए जूझना पड़ रहा है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो सरकार की भूमिका और न्यायिक तंत्र की संवेदनशीलता पर सवाल उठाता है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि साध्वी प्रज्ञा को किस तरह से न्याय मिलता है। क्या अदालत उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए फैसला करेगी, या उन्हें अपनी खराब हालत में भी अदालत का सामना करना पड़ेगा? यह मुद्दा न केवल साध्वी के लिए बल्कि भारतीय न्याय और समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का मामला उन कई मुद्दों को उजागर करता है जो भारतीय समाज, राजनीति और न्याय तंत्र में मौजूद हैं। उनके स्वास्थ्य, आरोपों और राजनीतिक संघर्ष ने इस केस को एक संवेदनशील और चर्चित विषय बना दिया है। जब तक साध्वी प्रज्ञा को न्याय नहीं मिलता, यह मामला भारतीय समाज में चर्चा का केंद्र बना रहेगा।