‘दुनिया की बुरी ताकतों का अंत भारत में होता है’, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्‍यों सुनाई अमेरिका के सांस्‍कृतिक पतन की कहानी?

‘दुनिया की बुरी ताकतों का अंत भारत में होता है’, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्‍यों सुनाई अमेरिका के सांस्‍कृतिक पतन की कहानी?

अयोध्या राम मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान 16 महीनों तक चार वेदों के ‘अनुष्ठान’ में भाग लेने वाले 200 गुरू जी को सम्मानित करने के लिए वेदसेवक सम्मान सोहाला समारोह का आयोजन किया गया. जहां आरएसएस प्रमुख भागवत भी पहुंचे. वहां उन्होंने बांग्लादेश और अमेरिका समेत और देशों का जिक्र किया.

उन्होंने कहा कि बुरी ताकतें हमेशा सक्रिय और एकजुट रहती हैं, उन्हें किसी कोचिंग की जरूरत नहीं होती है. अच्छे लोगों के उलट, जिन्हें मार्गदर्शन और समर्थन की जरूरत होती है. बुरी ताकतें दुनियाभर में मौजूद हैं. उनके बुरे कृत्य हर जगह होते हैं. बांग्लादेश पहला मामला नहीं है. पहला मामला अमेरिका है.

मोहन भागवत ने आगे कहा कि मैंने एक अमेरिकी राइटर की कल्चरल डेवलपमेंट ऑफ अमेरिका नाम की एक किताब पढ़ी है, जिसमें पिछले कुछ समय, लगभग 100 सालों में अमेरिका में सांस्कृतिक पतन पर चर्चा की गई है. पहले यह पतन पोलैंड में दोहराया गया, फिर अरब वसंत के दौरान अरब देशों में फैला और हाल ही में यह बांग्लादेश में हुआ, जो दुनिया पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं और मानते हैं कि वह ही सही हैं और बाकी गलत हैं. वह लोग हैं जो अपने फायदे के लिए इन विभाजनकारी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते हैं.

काबू करने का ज्ञान

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी प्रवृत्तियां नाश और राष्ट्रों के पतन की वजह बनती हैं. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमें बिना किसी डर के इन प्रवृत्तियों पर नजर रखने की जरूरत है. इतिहास बताता है कि जब यह प्रवृत्तियां बढ़ती हैं और भारत तक पहुंचती हैं, तो यहां उनका अंतिम संस्कार करते समय वह कम हो जाती हैं. यह मुमकिन है क्योंकि हमारे पास उन्हें काबू करने का ज्ञान है.

शिक्षित लोगों को लेकर चिंता

आरएसएस प्रमुख ने रोल मॉडल की कमी के वजह से खासकर शिक्षित लोगों में बढ़ते अविश्वास अनास्था और अश्रद्धा पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि आदर्श मौजूद हैं लेकिन अगर किसी शख्स को बदलना है, तो उसके मार्गदर्शन देने के लिए आसपास कोई होना चाहिए. उन्होंने आगे सवालिया लहजे में कहा कि अस्पृश्यता का शास्त्रों में कोई आधार नहीं है फिर भी यह कायम है. अगर कोई हिंदू धर्म के अंदर की प्रथाओं से निराश होकर दूसरे धर्म में चला जाता है, तो इसका दोषी कौन है?

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