skip to content
क्या सेकुलर से दोबारा हिंदू देश बनने जा रहा है नेपाल, कौन-कौन से हिंदू संगठन एक्टिव?

क्या सेकुलर से दोबारा हिंदू देश बनने जा रहा है नेपाल, कौन-कौन से हिंदू संगठन एक्टिव?

धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से हिंदू राष्ट्र की मांग: क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

2008 तक दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र रहने वाला नेपाल अब एक बार फिर इस मुद्दे के चौराहे पर खड़ा है। जहां धर्मनिरपेक्षता को अपनाने के 16 साल बाद अब हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है। इस चर्चा को हवा दे रहे हैं कई कारक:

हिंदू आबादी का बहुमत:

नेपाल में 80% से अधिक आबादी हिंदू धर्म मानती है। यह आंकड़ा कुछ लोगों के लिए धर्मनिरपेक्षता से हटकर हिंदू राष्ट्र की स्थापना को “स्वाभाविक” बनाता है।

संस्कृति और परंपराओं पर खतरा:

कुछ वर्गों का मानना है कि धर्मनिरपेक्षता नेपाल की सदियों पुरानी हिंदू संस्कृति और परंपराओं के लिए खतरा है। उनका तर्क है कि हिंदू राष्ट्र इन मूल्यों की रक्षा करेगा।

नेपाली कांग्रेस का समर्थन:

देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी नेपाली कांग्रेस ने भी हाल ही में हिंदू राष्ट्र की मांग का समर्थन किया है। यह कदम चुनावी रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है।

दूसरी ओर क्या कहानी है?

हिंदू राष्ट्र की मांग का विरोध भी कमजोर नहीं है। इसके खिलाफ खड़े हैं कुछ अहम तर्क:

अल्पसंख्यक अधिकारों की चिंता:

नेपाल में बौद्ध, मुस्लिम, किरात आदि अल्पसंख्यक धर्मों के लोग भी रहते हैं। उन्हें डर है कि हिंदू राष्ट्र उन्हें हाशिये पर धकेल सकता है और उनके धार्मिक अधिकारों का हनन हो सकता है।

बहु-धार्मिक पहचान का खतरा:

नेपाल को सदियों से उसकी बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। हिंदू राष्ट्र इस पहचान को नष्ट कर सकता है।

संविधान में धर्मनिरपेक्षता का प्रावधान:

नेपाल का वर्तमान संविधान देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करता है। इसे बदलने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत होगी, जिसके लिए पर्याप्त बहुमत हासिल करना आसान नहीं है।

सक्रिय हिंदू संगठन और अनिश्चित भविष्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे हिंदू संगठन नेपाल में सक्रिय हैं और हिंदू राष्ट्र की मांग का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन क्या नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बनेगा? इसका जवाब फिलहाल अनिश्चित है। यह कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे:

नेपाली कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन:

आगामी चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन इस मांग की दिशा को प्रभावित कर सकता है।
अल्पसंख्यकों का रुख: अल्पसंख्यक समुदायों की प्रतिक्रिया और विरोध इस मांग की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्मनिरपेक्षता के समर्थन का दबाव भी इस मांग को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष रूप में, नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग एक जटिल और बहुपक्षीय मुद्दा है। सभी पहलुओं पर विचार करना जरूरी है। यह देखना बाकी है कि नेपाल का भविष्य किस दिशा में जाएगा। क्या वह धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखेगा या फिर इतिहास खुद को दोहराते हुए एक बार फिर हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित होगा? समय ही इसका उत्तर देगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top

BJP Modal