क्या हमें पता है कि मुस्लिम संगठनों ने प्रत्येक दुकान, उद्योग, भोजनालय, रेस्टोरेंट, होटल आदि के लिए ‘हलाल प्रमाणपत्र’ का प्रावधान किया हुआ है? यदि किसी छोटे या बड़े व्यापारी ने अपने व्यवसाय स्थल पर ‘हलाल सर्टिफिकेट’ प्रदर्शित नहीं किया है, तो मुसलमान वहां न तो खाना-नाश्ता करते हैं और न ही वहां से किसी प्रकार का सामान खरीदते हैं।
‘हलाल’ का तात्पर्य है कि उक्त होटल, रेस्टोरेंट में भोजन-नाश्ता या अन्य उत्पाद मुस्लिम आस्था के अनुसार बनाए गए हैं। यदि कोई व्यवसायी, दुकानदार या उद्योगपति हिंदू है, तो भी उसे हलाल सर्टिफिकेट लेना होगा, यदि हिंदू को ‘हलाल’ में विश्वास नहीं है तो भी।
हलाल शब्द विशेष रूप से मांस के लिए उपयोग किया जाता है। हलाल मांस वह होता है जिसमें जानवर को धीरे-धीरे काटकर मारा जाता है, जबकि झटका मांस में जानवर को एक ही झटके से मारा जाता है।
किसी भी विपक्षी दल, वाम-सेक्युलर बिरादरी के पत्रकार या लेखक ने इसका विरोध नहीं किया। क्यों? मुस्लिम धार्मिक आस्था का सम्मान और हिंदू धार्मिक आस्था पर प्रश्न चिह्न! आखिर ऐसा क्यों? देश को, विशेषकर हिंदुओं को, इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में खाने-पीने की वस्तुओं के विक्रेताओं को अपने व्यवसाय स्थल पर अपना नाम, पता तथा मोबाइल नंबर प्रदर्शित करने के निर्देश दिए हैं। इसका उद्देश्य कांवड़ियों को अपनी धार्मिक आस्था के अनुसार भोजन, फल आदि सामग्री खरीदने में सुविधा देना बताया जा रहा है। इस प्रावधान का विरोध कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे विपक्षी दलों और तथाकथित वाम-सेक्युलर बिरादरी के पत्रकारों और लेखकों द्वारा किया जा रहा है। इसे मुस्लिम विरोधी और सेक्युलरिज्म विरोधी बताया जा रहा है, और यह कहा जा रहा है कि भाजपा हिंदू-मुसलमान के नाम पर सांप्रदायिकता फैला रही है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश सरकार ने नियम बनाकर प्रत्येक रेस्तरां या ढाबा संचालक को अपनी फर्म का नाम, अपना नाम और लाइसेंस संख्या लिखना अनिवार्य कर दिया था। देखा जाए तो, उसी नियम की पालन अब करवाई जा रही है। फिर, जो भी सार्वजनिक स्थल पर कार्य करता है, जैसे कलेक्टर, पुलिस अधिकारी, प्राचार्य आदि, उनके ऑफिस के बाहर उनकी नेम प्लेट लगी रहती है। यदि फल-सब्जी विक्रेता सहित सभी व्यापारियों के नाम सार्वजनिक हो जाएंगे, तो क्या होगा?
सांप्रदायिकता तो मुसलमानों को भड़काने का काम करने वाले विपक्षी दल और वाम-सेक्युलर बिरादरी के लोग कर रहे हैं। जब तक मुस्लिम मतदाता संगठित और हिंदू मतदाता जातियों में बिखरे रहेंगे, तब तक विपक्ष और सेक्युलर बिरादरी हिंदू-मुसलमान के नाम पर मुसलमानों को भड़काते रहेंगे और उनके मन में भाजपा के प्रति भय उत्पन्न कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहेंगे।
इस विषय पर सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हुई है। कुछ बानगी इस प्रकार है:
एक मुस्लिम को यह अधिकार है कि वह जान सके कि वह क्या खा रहा है—हलाल या अन्य। क्या वह खाना उसके धार्मिक निर्देशानुसार है या नहीं? तो यह सेक्युलर माना गया। लेकिन अगर एक हिंदू को यह अधिकार मिलता है कि जो खाना वह खरीद रहा है, वह उसकी धार्मिक आस्था के अनुसार है या नहीं, तो यह सांप्रदायिक हो जाता है। यह डबल स्टैंडर्ड क्यों?
यह केवल भारत में ही संभव है—खाने (भोजन) की धार्मिक पहचान प्रदर्शित करना सेक्युलरिज्म है, जबकि भोजन विक्रेता की पहचान प्रदर्शित करना सांप्रदायिक माना जाता है। क्या यह ढकोसला नहीं है?
यहूदियों द्वारा ‘कोशर’ और मुस्लिमों द्वारा ‘हलाल’ भोजन की मांग सेक्युलर है, जबकि हिंदुओं द्वारा उनके धार्मिक उत्सवों पर ‘सात्विक भोजन’ की मांग सांप्रदायिक कैसे हो गई? यह दोगलापन कब बंद होगा?
योगी सरकार द्वारा विक्रेता का नाम प्रदर्शित करने के निर्णय से विकृत सेक्युलर लोगों को धक्का सा (shock) लगा है। उनकी किताबों में केवल ईसाई और इस्लामी परंपराओं का आदर सेक्युलरिज्म है, जबकि हिंदू परंपराओं का आदर अपमानजनक है।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक युवा ने प्रश्न उठाया कि विपक्ष जातीय जनगणना की मांग कर रहा है, जिसमें सभी की जाति पूछी जाएगी। लेकिन उन्हें नाम पूछने पर ऐतराज है।